हमेशा गुस्से में रहने वाली पत्नी को त्याग देना चाहिए
ऐसा माना जाता है कि पति और पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता है। कई विपरित परिस्थितियों में भी पति-पत्नी एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। यदि पत्नी सर्वगुण संपन्न है तो तब तो दोनों का जीवन सुखी बना रहता है लेकिन पत्नी हमेशा क्रोधित रहने वाली है तो दोनों के जीवन में हमेशा ही मानसिक तनाव बना रहता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
ऐसा माना जाता है कि पति और पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता है। कई विपरित परिस्थितियों में भी पति-पत्नी एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। यदि पत्नी सर्वगुण संपन्न है तो तब तो दोनों का जीवन सुखी बना रहता है लेकिन पत्नी हमेशा क्रोधित रहने वाली है तो दोनों के जीवन में हमेशा ही मानसिक तनाव बना रहता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
त्यजेद्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखं भार्यां नि:स्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत्।।
जिस धर्म में दया का उपदेश न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए। जो गुरु ज्ञानहीन हो उसे त्याग देना चाहिए। यदि पत्नी हमेशा क्रोधित ही रहती है तो उसे छोड़ देना चाहिए और जो भाई-बहन स्नेहहीन हो उन्हें भी त्याग देना चाहिए।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि किसी धर्म में दया उपदेश नहीं दिया गया हो तो उसे छोड़ देना चाहिए। क्योंकि दया ही मानवता का मुख्य कर्तव्य है। प्रेम और दया के अभाव में धर्म अहिंसा का ही उपदेश दे सकता है। किसी भी गुरु का प्रमुख कर्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थी को ज्ञान दें। यदि कोई गुरु विद्वान नहीं है तो उसे छोड़ देना चाहिए। अज्ञानी गुरु का महत्व नहीं है। ठीक इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की पत्नी हमेशा क्रोध में रहती है, पति को प्रेम नहीं करती है, पतिव्रत धर्म का पालन नहीं कर रही है, हमेशा पति को दुख देती रहती है तो ऐसी पत्नी को तुरंत त्याग देना चाहिए। जो रिश्तेदार, भाई-बहन दुख के समय साथ छोड़ देते हैं उनसे दूर रहने में ही भलाई है। जहां प्रेम का अभाव वहां कोई रिश्ता नहीं रखना चाहिए
त्यजेत्क्रोधमुखं भार्यां नि:स्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत्।।
जिस धर्म में दया का उपदेश न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए। जो गुरु ज्ञानहीन हो उसे त्याग देना चाहिए। यदि पत्नी हमेशा क्रोधित ही रहती है तो उसे छोड़ देना चाहिए और जो भाई-बहन स्नेहहीन हो उन्हें भी त्याग देना चाहिए।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि किसी धर्म में दया उपदेश नहीं दिया गया हो तो उसे छोड़ देना चाहिए। क्योंकि दया ही मानवता का मुख्य कर्तव्य है। प्रेम और दया के अभाव में धर्म अहिंसा का ही उपदेश दे सकता है। किसी भी गुरु का प्रमुख कर्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थी को ज्ञान दें। यदि कोई गुरु विद्वान नहीं है तो उसे छोड़ देना चाहिए। अज्ञानी गुरु का महत्व नहीं है। ठीक इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की पत्नी हमेशा क्रोध में रहती है, पति को प्रेम नहीं करती है, पतिव्रत धर्म का पालन नहीं कर रही है, हमेशा पति को दुख देती रहती है तो ऐसी पत्नी को तुरंत त्याग देना चाहिए। जो रिश्तेदार, भाई-बहन दुख के समय साथ छोड़ देते हैं उनसे दूर रहने में ही भलाई है। जहां प्रेम का अभाव वहां कोई रिश्ता नहीं रखना चाहिए
चाणक्य नीति - हमेशा गुस्से में रहने वाली पत्नी को त्याग देना चाहिए
Reviewed by Naresh Ji
on
March 01, 2022
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