हस्तमैथुन के नुकसान / hastmathun ke nuksan

हस्तमैथुन के नुकसान / hastmathun ke nuksan


परिचय

आजकल समाज में उपर्युक्त अष्ट मैथुनों के अलावा और भी एक मैथुन नवयुवकों मे बड़े भीषणरूप से फैल गया है। इस मैथुन से तो बालकों का बड़ा ही भारी संहार हो रहा है; प्लेग और इनफ्लुएञ्जा से कहीं बढ़कर यह नया रोग नवयुवकों को जान से मार रहा है। यही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े लिखे-पढ़े हुये लोग भी इस काल के कराल पंजे मे 'मोहवश' जा रहे हैं। हा! यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है । इस महारोग से पिण्ड छुड़ाना प्लेग इन्फ्लुएञ्जा से भी महा कठिन हो गया है। इस महारोग को "हस्तमैथुन"* का रोग कहते हैं । 

hastmathun ke nuksan


हस्तमैथुन रूपी राक्षस मनुष्य को बड़ी क्रूरता से बिलकुल निचोड़ डालता है।

hastmathun ke nuksan यह रोग बड़ा ही भयानक है ! यह राक्षस मनुष्य को बड़ी क्रूरता से बिलकुल निचोड़ डालता है। यह भी एक प्रकार को नो की नवविधा भक्ति ही है। फर्क इतना ही है कि परमात्मा की नवविधा भक्ति से मनुष्य को मुक्ति होती है और स्त्री की किंवा विषय को इस नवविधा भक्ति से मनुष्य को नरक की प्राप्ति होती है। हस्तमैथुन के कारण जितनी हानियाँ 'उठानी पड़ती हैं यदि केवल उनके नाम ही लिखे जाँय तो एक छोटी सी पुस्तिका तैयार हो सकती है। हम यहाँ पर इस नष्टकारी कुटेव का संक्षेप मे ही वर्णन करते है। किसी लकड़ी को घुन ल गने से जैसे वह बिलकुल खोखली पड़ जाती है वैसे ही इस अधम कुटेव से मनुष्य की अवस्था जर्जरी भूत होती है ।

नपुंसकता का चिन्ह

हस्तमैथुन को अगरेजी मे ( Masturbation ) मास्टरवेशन कहते हैं । कोई इसे मुष्टमैथुन, हस्त-क्रिया अथवा आत्म-मैथुन भी कहते है । हस्तमैथुन से इन्द्री की सव नसें ढीली पड़ जाती हैं । फल यह होता है कि स्नायुओं के दुर्वल होने से जननेन्द्रिय टेढ़ा, लघु व ढीला पड़ जाता है । मुख की ओर मोटा और की ओर पतला पड़ जाता है, इन्द्री पर एक नस होती है वह उभर आती है और मुंह के पोस बाई ओर कटिया की तरह टेढ़ी बन जाती है । यह नितान्त नपुंसकता का चिन्ह है।

वीर्य पानी की तरह इतना पतला पड़ जाना

 ऐसे एक वालक को हमने स्वयं देखा है। नस-दौर्वल्य से वार वार स्वप्न-दोष होने लगता है। सामान्य कामसंकल्प से ही अथवा शृङ्गारिक वर्णन, गायन के दृश्य मात्र से ही ऐसे पतित पुरुष का वीर्य नष्ट होने लगता है। उसका वीर्य पानी की तरह इतना पतला पड़ जाता है कि स्वप्न-दोप के वाद वस्त्र पर उसका चिन्ह तक नहीं दिखाई देता । इन्द्री मे वीर्यधारण करने की शक्ति नहीं रह जाती। ऐसा पुरुष स्त्री-समागम के सर्वथा अयोग्य वन जाता है।


धातु-दौर्बल्य, प्रमेह, स्वप्न-मेह, मधुमेहादि कठिन रोगों का आना 

शरीर के भीतर 'मनोवहा' नामक एक नाड़ी है। इस नाड़ी के साथ शरीर की संपूर्ण नाड़ियों का सम्बन्ध है ! काम-भाव जागृत होते ही ये सव नाड़ियाँ कॉप उठती हैं और शरीर के पैर से सिर तक के सव यंत्र हिल जाते हैं, फिर रक्त का व संपूर्ण शरीर का मथन होकर वीर्य उनसे भिन्न होकर नष्ट होने लगता है जिससे धातु-दौर्बल्य, प्रमेह, स्वप्न-मेह, मधुमेहादि कठिन रोग शरीर मे घर कर लेते हैं। शरीर के खून मे एक सफेद ( White corpuscle ) और दूसरी लाल ( Red corpuscle ) कीट होते है। सफ़ेद कीटों मे रोगों के कीटों से लड़ने की शक्ति होती है। 


वीर्य में विष को पचा डालने की शक्ति है 

वीर्य जितना ही पुष्ट व अधिक होता है उतने ही ये शुभ्र कीट महान् बलवान होते और विष को पचा डालने की शक्ति रखते हैं। परन्तु ज्योंही वीर्य क्षीण होता है त्योंही ये कोट भी दुर्बल बनकर हैज़ा, प्लेग, मलेरिया के कीटाणुओं से दब जाते हैं और फिर मनुष्य भी काल के गाल में प्रवेश करता है । ये वीर्यनाश के ही दारुण फल हैं। हस्तमैथुन से जो वीर्यनाश किया जाता है उससे शरीर और दिमाग के समस्त स्नायुओं पर बड़ा भारी धक्का पहुँचता है । जिससे पक्षाघात, ग्रन्थिवात, सन्धिवात, अपस्मार-मृगी और पागलपन आदि भीषण रोगों की उत्पत्ति होती है। 


कलेजे में विशेष धक्का लगना 

hastmathun ke nuksan व्यभिचार तो सर्वथा निन्ध है ही परन्तु उससे भी महानिन्द्य यह हस्तमैथुन का कर्म है । हस्तमैथुन द्वारा वीर्य के निकालने से कलेजे में विशेष धक्का लगता है । जिससे क्षय, खाँसी, श्वास, यक्ष्मा और "हार्ट डिजीज़" नामक महा भयानक हृदय-रोग हो जाते हैं । हृद्रोग से ऐसे अभागे मनुष्य की कौन से समय में मृत्यु होगी इसका कुछ भी निश्चय नहीं होता । अकाल ही में वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। मस्तिष्क पर तो बिजली का सा धक्का लगता है। 


हस्तमैथुन से स्मृति सु-बुद्धि, प्रतिभा सभी चौपट हो जाते हैं

हस्तमैथुन से सिर फौरन हलका और खाली पड़ जाता है। स्मृति ( याददास्त) सु-बुद्धि, प्रतिभा सभी चौपट हो जाते हैं और अन्त मे ऐसा नष्ट-वीर्य पुरुष पागल सा बन जाता है। पागल-खानों मे सौ में १५ आदमी ब्यभिचार और हस्तमैथुन के ही कारण पागल बने होते हैं । यही हालत अपनी स्त्री से अनि रति करने वालों की भी हुआ करती है। टारेन्टों के डाक्टर बर्कमान कहते हैं "सैकड़ों पागलखानों की जाँच करने पर हमे यही ज्ञात हुआ कि जिनको हम आप नीति भ्रष्ट अशिक्षित व मूर्ख समझते हैं उनमें नहीं; किन्तु धर्म से व स्वच्छता से रहनेवाले शिक्षित लोगों मे ही यह हस्तमैथुन का रोग विशेष रूप से फैला हुआ है ।" खेतों मे शारीरिक परिश्रम करनेवाले मूों में नहीं किन्तु शहरों के पुस्तक-कीट बने हुए नवयुवकों और आदमियों मे ही यह घृणित रोग विशेष फैला हुआ।


हस्तमैथुन से कान व दांत की शक्ति भी कमज़ोर हो जाती है 

माता पिता इस भीतरी कारण को नहीं जानते । वे समझते हैं कि परिश्रम की अधिकता से ही चालकों की ऐसी दुर्दशा हुई है ! मस्तिष्क कमज़ोर होते ही आँखों की ज्योति और कान व दांत की शक्ति भी कमज़ोर हो जाती है । वाल झड़ने और पकने लगते हैं । राजा के घायल होते ही जैसे संपूर्ण सेना एकवारगी घवड़ा जाती है उसी प्रकार वीर्यरूपी राजा को आघात पहुँचते ही शरीर की इन्द्रियरूपी सेना एकवारगी अस्वस्थ व कमजोर हो जाती है । आँख, कान, नाक, जिह्वा, वाणी, पैर, त्वचा, आँते और मलमूत्रेन्द्रिय अपना काम करने में असमर्थ हो जाती हैं, फिर ऐसे पुरुष का बहुत जल्द नाश होता है। 


मुख तेजहीन हो जाना 

हस्तमैथुन से सम्पूर्ण शरीर पीला, ढीला, फीका, दुर्बल व रोगी वन जाता है। मुख कान्ति-हीन व पीला पड़ जाता है। ऐसा पुरुष जीवित रहते हुये भी मुर्दा होता है। हाय ! जिस विपयानन्द को कामी लोग ब्रह्मानन्द से भी बढ़कर समझते हैं, वह विपयानन्द भी ऐसे पतित पुरुप ज्यादा दिन तक नहीं भोग सकते । इन्द्रिय दुर्वलता के और अन्यान्य रोगों के कारण वे गार्हस्थ्य सुख भी नहीं भोग सकते । उनकी सन्तानोत्पादन शक्ति नष्ट हो जाती है । जिससे इनकी स्त्रियाँ वन्ध्या बनी रहती हैं। अथवा सन्तान हुई तो कन्या ही कन्या होती हैं। ऐसे लोग काम के मारे वेकाम बन जाते है । सन्ततिसुख से वे हाथ धो बैठते हैं। उनकी स्त्रियों को कभी सन्तोष नहीं होता है ! फिर वे व्यभिचार करने लगती हैं। स्त्रियों के बिगड़ने से सन्तान भी दुःसाध्य होती है व अधर्म की वृद्धि होती है। अधर्म के फैलते ही घर में व देश में दारिद्रय, अकाल व अशान्ति आदि फैलते हैं । फिर सुख की आशा कहाँ ? अन्त मे सब कुल नरकगामी होता है। (गीता अ० १ ला श्लोक ४१ से


हस्तमैथुन करने वाला अभागा ही होता है  

hastmathun ke nuksan इस महा पाप के मूल कारण व भागी दुराचारी पुरुष ही होते हैं। हाय ! यह बड़ा ही अधर्म और दुष्ट कर्म है। जिस अभागे को इसके करने का एक बार भी दुर्भाग्य प्राप्त हुआ तो धीरे धीरे यह "शैतान" हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाता है, यहाँ तक कि प्राण बचना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे पुरुष इस महानिन्ध कुटेव के पूर्ण गुलाम बन जाते हैं। दुर्बल चित्त के कारण इच्छा करने पर भी वे संयम नहीं कर सकते । हज़ारों प्रतिज्ञायें करने पर भी एक भी प्रतिज्ञा पूरी नहीं होने पाती। विषयों के सामने आते ही सभी प्रतिज्ञायें ताक पर धरी रह जाती हैं। 


स्वास्थ्य की भारी कमी 

इस प्रकार वीर्य को नष्ट करने से मनुष्य का मनुष्यत्व लोप हो जाता है और उसका जीवन उसी को भारस्वरूप मालूम होने लगता है । आबोहवा का परिवर्तन थोड़ा भी सहन नहीं होता। हर समय सर्दी गर्मी मालूम होने लगती है, जुकाम सिर-दर्द और छाती में पीड़ा होने लगती है । ऋतुओं के बदलते ही उसके स्वास्थ्य में भी फर्क होता है और अन्यान्य रोग उत्पन्न हो जाते हैं । देश में जब कभी बीमारी फैलती है तब सबसे पहले ऐसा ही- पुरुष बीमार पड़ता और अक्सर को काल का शिकार बनता है।


हे ऋषि सन्तानो ब्रह्मचर्य को जगाओ 

हा! ऋषि-सन्तानों के दिव्यनेत्र व ज्ञाननेत्र सब नष्ट हो गये और उनको अब उपनेत्र के विना देखना भी मुश्किल हो गया है। अज्ञान की घनघोर घटा भारत-आकाश को चारों ओर से आच्छन्न कर रही है । आर्य-सन्तान आज पूर्णतया तेजोहीन व गुलाम बन कर भारत माता का मुख कलंकित कर रही है ! हा! शोक !! शोक !! शोक !!! वस, अब हम इससे अधिक वर्णन करना नहीं चाहते । केवल वीर्यभ्रष्टता के प्रमुख चिन्ह ही कह कर इस विषय को समाप्त करते है, जिससे कि हम लोग पतित वालक, वालिका, व स्त्री-पुरुप को फ़ौरन पहचान सकें।

हस्तमैथुन के नुकसान और लक्षण / hastmathun ke nuksan or lakshan

(१) हस्तमैथुन के नुकसान काम पीड़ित वीर्यन्न (वीर्य को नष्ट करने वाला) वालक बड़े आदमियों की तरफ आँख से आँख मिला कर नहीं देख सकता । किसी अपराधी की तरह शर्मिन्दा होकर नीचे देखता है अथवा इधर उधर मुंह छिपाना चाहता है।

(२) वहुत से चालाक या धूर्त लड़के झूठे ही छाती निकाल कर समाज मे इतस्तत: ऐठते हुये अकड़ कर घूमा करते हैं। वे ज़रूरत से अधिक ढीठ बन जाते है, कारण यह कि ऐसा करने से उनसे दुर्गुण छिप जायेंगे और लोगों की दृष्टि मे वे निर्दोष जचेंगे।

(३) उसका आनन्दमय व हँसमुख चेहरा दुःखी व उदास बन जाता है । सूरत रोनी बन जाती है। प्रसन्न-स्वभाव नष्ट होकर चिडचिडा, क्रोधी व रुक्ष ( रूखा ) बन जाता है। चेहरा .फीका, पीला व मुर्दे की तरह निस्तेज वन जाता है।

(४) गालों पर की पहले की वह गुलाबी छटा नष्ट होकर गालों पर झाई पड़ने ( काले दाग पड़ना) लगती है। यह अत्यन्त वीर्यनाश का निश्चित लक्षण है।

(५) आखें व गाल अन्दर धंस जाते हैं और गाल की हड्डियाँ खुल जाती हैं।

(६) बाल पकने व झड़ने लगते हैं । मृछे पीली व सुर्ख यानी लाल बन जाती हैं। बारह वर्ष के उपरान्त बाल का सफेद होना वीर्यनाश का स्पष्ट लक्षण है।

(७)  हस्तमैथुन के नुकसान कोई भी रोग न रहते हुये अकाल ही मे वृद्ध पुरुष की तरह जर्जर, दुर्बल व ढोले बनना; किसी अच्छे काम मे दिल न लगना व नाताक़त वनना तथा थोड़े ही परिश्रम से व दौड़ने से हॉफने लगना और मृत्पिण्ड की तरह उत्साह-हीन बनना; दैनिक काम करना भी अच्छा न लगना; सामान्य से सामान्य काम भी कठिन जान पड़ना ।

(८) चित्त मे कुचिन्ताओं का बढ़ना । थोड़े ही डर से छाती मे बेहद धड़कन आना तथा भयभीत हो जाना । थोड़ा सा भी दुख पहाड़ सा मालूम होना ।

(9) बार बार झूठी ही अस्वाभाविक भूख लगना अथवा भूख का मन्द पड़ जाना, यह भी वीर्यनाश का प्रमुख चिन्ह है। अपच और मलबद्धता ( कब्ज़ियत ) इसका निश्चित परिणाम है। चरपरे मसालेदार पदार्थ खाने में रुचि रखना।

(१०) नींद का न आना; यदि आई तो ऐसी आना "जैसी कुम्भकर्ण की निद्रा । उठते समय महा आलस्य व निरुत्साह . मालूम करना और आँखों का भारी पड़ना।

(११) रात्रि मे स्वप्नदोष होना, यह पापी व कामी मन का पूर्ण लक्षण है।

(१२) वोर्य का पानी जैसा पतला पड़ना और पेशाव के समय वीर्य का बूंद बूंद बाहर निकलना, यह भी हस्तमैथुन का एक मुख्य चिन्ह है। इसका अन्तिम भयानक परिणाम पुरुपत्व का नाश अर्थात् नपुंसकता है।

(१३) बार बार पेशाव होना तथा गरमी, परमा, प्रमेहादि उग्र रोग होना।

(१४) हाथ पैर और शरीर के पोर-पोर मे (सन्धि मे) दर्द मालूम होना। हाथ पैरों मे शिथिलता, जड़ता व सन-नी उत्पन्न होना तथा उनका मुर्दे की तरह ठंढा पड़ जाना ।

(१५) तलवे तथा हथेलियों का पसीजना, यह वीर्य-भ्रष्टता का मुख्य लक्षण है।

(१६) हाथ पैरों मे कंप मालूम होना, (हाथ मे पकड़ा हुआ कागज़ व कोई वस्तु हिलने लगना, हाथ काँपना)

(१७) नाटक उपन्यास आदि शृङ्गारिक कितावें तथा चित्र पढ़ने व देखने की अत्यन्त रुचि रखना ।

(१८) स्त्रियों मे वार वार आना जाना; निर्लज्जता से गीध व ऊँट को तरह सर उठाकर या घुमा कर किंवा चोर-दृष्टि से छिपकर स्त्रियों की तरफ़ देखना ।

(१९) चेहरे पर पिटिका ( मुहरसा) उभड़ना यह पापी व कामी मन का पूर्ण लक्षण है ।

(२०) किसी समय ऊपर उठते समय एकाएक दृष्टि के सामने अन्धेरा छा जाना तथा मूर्खा आने से नीचे गिर पड़ना ।

(२१) मस्तिष्क का बिलकुल हलका वा खाली पड़ना। स्मरण शक्ति का ह्रास होना । देखे हुए स्वप्न का याद न आना। रक्खी हुई वस्तु का स्मरण न होना और कण्ठ की हुई कविता या पाठ भी भूल जाना और मानसिक दुर्बलता का बढ़ जाना।

(२२) आबो हवा का परिवर्तन न सहा जाना।

(२३) चित्त का अत्यन्त चंचल, दुर्बल, कामी व पापी बनना और कोई भी प्रतिज्ञा पूरी न कर सकना तथा सब काम अधूरे ही कर के छोड़ देना ।  हस्तमैथुन के नुकसान  एक भो अच्छा काम पूर्ण न करना, पर कुकर्म-प्रयत्न पूर्वक पूरा करना। गिरगिट की तरह सदा विचार व निश्चय बदलते रहना और सदा मन मलीन व अपवित्र बने रहना।

(२४) दिमाग मे गर्मी छा जाना । नेत्रों मे जलन उत्पन्न होना वा नेत्रों में पानी बहने लगना ।

(२५) क्षण ही मे रुष्ट व क्षण ही में तुष्ट होना ।

(२६) माथे मे, कमर में, मेरुदण्ड मे और छाती में बार बार दर्द उत्पन्न होना ।

(२७) दाँत के मसूड़े फूलना। मुख से महान् दुर्गन्धि का आना तथा शरीर से भी *बदबू निकलना । वीर्यवान् के शरीर से सुगन्धि निकलती है। ( अतः दॉत को बिलकुल साफ़. रखना चाहिये )।

(२८) मेरुदण्ड का झुक जाना; फिर हर समय झुककर वैठना।

(२६) वृषण की वृद्धि होना तथा उनका विशेष लटक जाना ।

(३०) आवाज़ की कोमलता नष्ट होकर आवाज़ मोटा, रूखा व अप्रिय वन जाना।

(३१) छाती का दुभंग हो जाना अर्थात् छाती पर का अंतर गहरा और विस्तृत वन जाना । और छाती की हड्डियाँ दीखना।

(३२) नेत्ररूपी चन्द्र-सूर्य को ग्रहण लगना । नाक के कोने में प्रथम कालिमा छा जाती है, फिर बढ़ते बढ़ते आँखों के चतुर्दिक ग्रहण लग जाता है अर्थात् चारों ओर से नेत्र काले पड़ जाते है। यह अत्यन्त वीर्यनाश का बड़ा भयानक और भीषण चिन्ह है।

(३३) हस्तमैथुन के नुकसान / hastmathun ke nuksan किसी बात मे कामयावी न होना तथा सर्वत्र निन्दित वह अपमानित बनना यह वीर्यनाश की पूरी निशानी है । सन्तति सम्पत्ति का धीरे धीरे नाश होना, अधर्म, व्यभिचार व पाप का बढ़ना; आयु का घट जाना; वेदशास्त्राज्ञाओं को कुछ भी न मानना और अपनी ही मनमानी करना अर्थात् "विनाश काले विपरीत बुद्धिः" इस न्याय से सव उल्टी ही वाते करना यह गुलामी के खास चिन्ह हैं । सम्पूर्ण अपयश, दुःख व गुलामी का कारण एक मात्र वीर्य का नाश ही है।

(३४) अन्त मे कभी कभी दुःख और पश्चाताप के मारे आत्महत्या करने का भी विचार करना । इति प्रमुख चिह्नानि ।

हस्तमैथुन के नुकसान / hastmathun ke nuksan हस्तमैथुन के नुकसान / hastmathun ke nuksan Reviewed by Chandra Sharma on December 31, 2020 Rating: 5

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