स्वस्थ रहने के नियम / swasth rahne ke niyam

स्वस्थ रहने के नियम / swasth rahne ke niyam

( यदि पूरे सौ-वर्ष जीना चाहें तो इन्हें पढ़िये और इन swasth rahne ke niyam पर चलिये):--

(१) प्रातः उठकर इंद्रदेव का स्मरण करके अपने दोनों हाथों की हथेलियाँ आमने-सामने मिलाकर देखें। जैनों का कहना है, कि इससे 'सिद्ध-शिला' का ~ आकार-सा बन जाता है, अतः उसके दर्शन करे।
 
   ज्योतिष मे बताया है कि प्रातः उठकर दर्पण या दाहिने हाथ का अग्र-भाग देखे। आयुर्वेद मे भी मंगल-द्रव्य देखना लिखा है। जैसे-श्वेत सरसों, दही, घी, श्वेतमाला, चांदी, कन्या प्रभृति ।

swasth rahne ke niyam


(२) विद्यार्थी अवश्य ही प्रातः शीघ्र उठे। उस समय याद बड़ा अच्छा होता है। उलझी-गुत्थियां सुलझाने के लिये प्रातःकाल अत्युत्तम है। सभी महापुरुष प्रातः शीघ्र उठकर भगवन्नाम जपते है।

(३) प्रातः उठकर थोड़ा घूमो, फिर शौच जाओ। शौच में जोर लगाकर किछौ मत; इससे पेट बिगड़ता और आंते खराब होती हैं और कभी-कभी तो वीर्यपात भी हो जाता है। कब्ज रहता हो, तो जब कभी औपध-प्रयोग से दूर कर लो। नं०८ और ४४ की बातें ध्यान में रखो, तो 'कन्ज' प्रभृति विकारो से अवश्य बचाव रहेगा।

(४) प्रतिदिन प्रातः घूमा करो। प्रातःकालीन-पवन शुद्ध एवं ताजा होता है। उसमें धूल-कण नहीं होते। पर्याप्त 'ऑक्सीजन' होता है। इससे शरीर सशक्त होगा। बाहरी कीटाणु कोई हानि न पहुंचा सकेंगे, शुद्ध वायु उन्हें टिकने न देगा। रहे-सहे कीट गलकर नाक के पानी के रास्ते शीघ्र बाहर हो जाएगे। अतः प्रातः रोज घूमने जाइये।

(५) खुले मैदान मे सांस लेकर, जितनी देर भी रोक सको, रुधिर उतना ही 'ऑक्सीजन' खीचेगा और उससे उतनी ही अधिक रक्त-शुद्धि होगी।नौसिखिये एकदम ही सांस न रोकने लगे, किन्तु प्रारम्भ मे धीरे-धीरे अभ्यास करके फिर आगे बढ़ें।

(६) हमेशा नाक से सांस लो। गहरी सांस लो और कुछ-देर उसे रोके भी रहो; फिर धीरे-धीरे निकालो। प्रातः खुले मैदान मे इसका अभ्यास करो। इससे रक्त शुद्ध होगा। खून लाल रहेगा। फेफड़े पुष्ट रहेगे। खुली हवा में प्रतिदिन कम से कम १५ मिनट गहरी-सांस अवश्य ही लो। इससे स्वस्थ और दीर्घजीवी रहोगे।

(७) नाक से सांस लेने के मुख्य लाभ ये है --
१-हवा मे मिले धूल-कण और रोग-बीज नाक के बालों के कारण फेफड़ों तक नहीं पहुँच सकते।
२-सीधी ठंडी-हवा जाकर 'जुकाम-सर्दी' नहीं पैदा कर पाती, क्योकि; ठंडी हवा नाक के रास्ते में गर्म हो जाती है। याद रखिये, प्रकृति ने मुँह खाने, पीने, बोलने के लिए और नाक सांस लेने, सूंघने के लिए बनाई है। मुंह से सांस लेने वाले अपना मुंह बन्द रखें।

(८) पाराडु (पीलिये) का रोगी यदि प्रातः सायं शुद्ध-वायु में गहरी-सास ले और छिलके वाली मूङ्ग की दाल, पालक, पपीता, सन्तरा, अनार, टमाटर, रसभरी, तरबूज, चुकन्दर, ककड़ी-खीरा, शलगम के पत्तो का आहार में उपयोग करे, तो बिना औषध-प्रयोग के अवश्य ही स्वस्थ हो जाएगा।

(९) प्रतिदिन 'नीम की दतौन' से दाँत साफ करो। 'नीम' कीटाणु-नाशक है। जो लोग रोज दाँत साफ नहीं करते, उनके दाँतों की कलई नष्ट हो जाती है और उनमें कीड़े पड़ जाते हैं। दाँत ऊपर से तो हड्डी-से कड़े हैं, किन्तु उनमे मांस की भांति नर्म चीज भी भरी है। सफाई न होने से उसका क्षय होने लगता है और दाँतों में गड्ढे हो जाते हैं। इनमें भोजन-कण भरते हैं और सफाई न होने से वे सड़ते रहते है। साथ ही मुंह से बदबू आती व पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है।

(१०) 'त्रुश' से दांत साफ करना कभी अच्छा नहीं, क्योंकि; वह थूक से सन जाता है और उसमें असंख्य-कीट चिपट जाते हैं, जो नमक या सोड़े के पानी से बिना धोये नहीं छूटते। इसलिए नीम, बबूल या जामुन की दातौन करो। बबूल, जामुन कड़वे भी नहीं होते। साथ ही उनसे जो रस निकलता है, वह हमारे दांतों को साफ करने के साथ-साथ कीटाणुनाशक भी है और दांतों को मजबूत भी बनाता है।

(११) दांतों की रक्षा के विषय में इन बातों का भी ध्यान रखें --
१- दातौन करना 'धर्म' मे शामिल है, अतः रोज उसे अवश्य करें।
२- दातौन से मुंह की बदबू , मैल और कफ निकल जाते हैं। जायका सुधरता है और प्रसन्नता होती है।

३- दातौन हरी-गीली, छोटी अंगुली-सी मोटी ले। 

४- आयुर्वेदानुसार आक (अकौआ), करंज, पीपल, बेर, खैर, गूलर, वेल, आम, कदम्ब, चंपा,मौलसिरी, बबूल, महुआ प्रभृति की दातोने उनग मानी है, जो मिल जांए उसका उपयोग कर ले।

५- दातौन का 'प्रभाग दांतो से कुचलकर बारीक कूचीसी बना ले; उससे दांत साफ करें।

६- दांतों की सफाई के बाद दातोन को बीच से चीर ले और उससे जीभ भी साफ करें।

(१२) निम्नलिपित रोगी दातोन न करे गला-बालु, व्योंठ-जीम में कष्टप्रद रोग हो या छाले हो रहे हो; श्वास-काम रोगी, हिचकी-मूच्छृ-सृगी के रोगी, तेज सर-दर्द में, प्यासा, शराब पिया, कर्ण या नेत्र रोगी, अदितेवात-परत, नया ज्वरवाला और हृदय-रोगी।

(१३) अधिक तादाद में पान, कत्था, सुपारी, चूना आदि। खाना भी दांतो को बरबाद करना है। इसी प्रकार बहुत ही खट्टी चीजे या मिठाइयां अथवा एकदम गर्मागर्म दूध पीकर एकदम ठण्डे पानी से कुल्ले करना, दानो के लिए घातक है। प्रतिदिन सोने से पहले नीम की दातौन करने वाला दांत-रोगों के अतिरिक्त, अन्य रोगों से भी बचा रहेगा। प्रात. भी इसी की दातौन करे।

(१४) चाहे जहां मत थूका करो। इससे बीमारी फैलती है। दय-रोगियों के थूक मे असंख्य क्षय-कीट हवा में फैलते हैं और अनेको को, सांस के साथ हवा मे पहुंचकर, क्षय-ग्रस्त बना देते है। हैजा, इन्फ्ल्युएंजा, लेग प्रभृति संक्रामक रोग ऐसे ही प्रसार पाते हैं।

(१५) हजामत ४-५ दिन मे अवश्य बनवा ले। कई व्यक्ति रोज हजामत बनवाते हैं, यह प्रायः ठीक नहीं। इससे बाल कड़े हो जाते हैं। २-३ दिन का अंतर तो रखें। आयुर्वेदानुसार इससे सौन्दर्य बढ़ता, पुष्टि होती एवं पवित्रता होती है। सिर पर बाल थोडे़ रखो। याद रखो, कि बालो को चिमटी या अंगुलियो से मत उखाड़ो। कई लोग मूछों के या दाढ़ी के बाल उखाड़ते रहते हैं, कई नाक के बाल उखाड़ते , यह बिलकुल ठीक नहीं। इससे नेत्रों की शक्ति कमजोर होती है और 'बाल-तोड़' हो जाने का भय रहता है।

(१६) प्रतिदिन थोडा-थोड़ा व्यायाम अवश्य करो। ठंड और वसन्त-ऋतु मे व्यायाम अवश्य ही करना चाहिए। स्कूलों की ड्रिल, प्रातः हलकी दौड़,   दण्ड- बैठक, मुद्गर प्रभृति व्यायामो मे से कोई भी व्यायाम करो। ध्यान रहे, कि व्यायाम से एकदम थका मत'लो ।

(१७) कसरत की प्रशंसा में आयुर्वेद में लिखा है, कि सौन्दर्य, सामर्थ्य, पलवानपन, सहन-शीलता, व्यायाम से ही रहते है। इससे कफ, अपच, मोटापा, आलस्य, भय आदि मिटते है। व्यायामी की सन्तान सुन्दर एवं हृष्ट-पुष्ट होगी। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारी पुरुषार्थ सिद्ध होगे।

(१८) कसरत के विषय मे आवश्यक बाते --
१- व्यायाम करने के आधा घण्टे बाद ही भोजन करो।
२- गरीब-लोग ताजा तक्र और अमीर लोग दूध-शिखरन, बाद में लें।
३- लंगोट या जांघिया या अण्डरवीयर पहनकर ही व्यायाम करें, ताकि अण्ड-कोप ढीले न हों।
४- कसरत के आगे या बाद मे तेल की मालिश भी अवश्य करे, चाहे वह तेल सरसों का हो या तिलों का हो ।

(१९) 'अति' सब जगह बुरी है, यही हाल आप व्यायाम में भी समझिए। यदि अति की गई तो उरःक्षत (क्षय), चोट, प्यास, रक्तपित्त, खांसी-श्वास, ज्वर प्रभृति हो सकते हैं। याद रहे, कि इन रोगो के होने पर कसरत हरगिज़ न करे। इनके अतिरिक्त वमन, अरुचि, भ्रम (चकर आना), प्राधा-मीसी, अत्यन्त कमजोरी, मियादी रोग से उठने पर, संभोग के बाद की स्थिति में भी व्यायाम न करे।

(२०) मालिश भी अवश्य करिए। मिट्टी का घड़ा जैसे तेल या घी से मजबूत हो जाता है, वैसे ही मालिश से शरीर भी। तेल मे, घी मे सौ-गुनी शक्ति है, मालिश करने मे अर्थात् १०० तोले घी को पचाकर जो शक्ति मिलेगी, वह एक तोले तेल को हलकी मालिश द्वारा शरीर मे पहुंचाने पर मिलेगी। आयुर्वेद का यह वाक्य याद रखिये --
      'घृनाच्छतगुणं तैलं, मर्दने न तु भक्षणे ।'

(२१) निम्नलिखित रोगों में तेल लगाना वर्जिन है-नवीन ज्वर, चेचक, मोतीझरा, अजीर्ण, विरेचन (जुलाब) और वमन होने पर; किन्तु जीर्ण-ज्वर (पुराने बुखार) मे मालिश अत्युत्तम है।

(२२) 'उबटन' लगाना भी अत्यन्त आवश्यक है; चाहे सप्ताह में एक ही वार क्यों न लगाया जाए । बेसन, नीबू का रस और तेल मिलाकर बनाया गया उबटन उत्तम है। विवाहो मे उबटनों की प्रथा बड़ी पुरानी है। इससे कफ मिटता, रोम खुलते, रक्त दौड़ता और शक्ति बढ़ती है। सौन्दर्य बढ़ाने एवं रंग निखारने मे यह अत्युत्तमहै। जो मुंह पर प्रतिदिन उबटन करते है। उनके मुँहासे, चर्मकील और माई, सेहुओं प्रभृति चर्म-रोग नहीं होते।

(२३) कानो मे भी कभी-कभी तेल डालना चाहिए और दूसरे दिन उनकी सफाई कर लेनी चाहिए। कान मे तेल डालने से सिर-दर्द, मन्यारतंभ (वात-विकार भेद) आदि दूर होते है। ऐसे ही पैरों के तलवों में भी तेल मलो। इससे थकान, झुनझुनी, हड़फूटन नष्ट होगे। पांवों की अंगुलियों के बीच में भी तेल अवश्य लगा लिया करो।

(२४) अधिक बाल रखने वाले अवश्य ही कंघी किया करें। महिलाओं के लिये तो यह अत्यावश्यक है। इससे सफाई और सौन्दर्य दोनों रहते हैं। साथ ही सिरदर्द भी नहीं होता और नेत्र-ज्योति व्यवस्थित रहती है। बड़े-बूढ़े दिन में ४-५ बार कंघी अवश्य ही करें ।

(२५) स्नान के बाद बालों को भली-भांति पोंछकर सुखा लो, फिर तेल डालो। तेल धीरे-धीरे बालों की जड़ों में मलो। बाद में साफ किये हुए, कंधे से बालो को धीरे-धीरे काढ़ लो। बाल सिर पर पाव इंच से बड़े मत रखो। दिमागी काम करने वालों को चाहिए, कि वे दिन में ३-४ बार कंघी कर लिया करे। इससे सिर के रोम-कूप खुल जाते एवं दिमाग में ताजगी आती है। सप्ताह मे एक बार आंवलो से सिर अवश्य धो लो । इससे बाल काले व मजबूत रहेगे।

(२६) ब्रह्मचर्य का ध्यान रखना अत्यावश्यक है। इसके बिना पौष्टिक आहार, व्यायाम, शक्तिवर्धक औषधे, टॉनिक, श्रेष्ठ फलाहार, दूध प्रभृति का प्रयोग भी बेकार-सा होता है। ब्रह्मचर्य के साथ ये कई गुने अधिक फलप्रद हैं। ब्रह्मचर्य का व्यायाम से गाढ़ा मेल है। इसके बिना जीवन का कुछ भी आनन्द नही ।

(२७) स्नान और उसकी कतिपय विशेषतायें-
१- स्नान पवित्रताकारक, वीर्य-आयुवर्धक, श्रम-स्वेद नाशक, मलहारक, ओजदाता, निद्रा एवं दाह-निवारक, रक्तविकार (खाज-खुजली आदि) नाशकहै । यह प्रसन्नतोत्पादक, पुरूषार्थ वर्धक एवं अग्निदीपक है।

(२८) 'स्नान हमेशा सावधानी अथवा सतर्कता से करो, क्योंकि; शरीर का मल छोटे-छोटे रोम-कूपो से निकलता है। गर्मियों मे या परिश्रम के बाद पसीना भी इन्ही से निकलता है। हवा लगने से पसीना तो सूख जाता है, किन्तु मैल वही जम जाता है। यदि यह दूर न किया जांए, तो रोम-छिद्र बन्द हो जाते हैं। रोम-कूप 'घर की नालो' की भांति हैं, उन्हें हमेशा साफ रखिये। अन्यथा शरीर की सफाई न होगी और दाद, खाज, खुजली प्रभृति चर्म-विकार और हो जाएगे। हमेशा रगड़-रगड़ कर साफ पानी से स्नान करिये और शरीर-मन को स्वस्थ रखिये।

(२६) 'स्नान करने के कतिपय अनुभव'--
१- नियमित स्नान करने वाले के शरीर से दुर्गन्ध नही आती।
२- स्नान से मन प्रसन्न होता है और प्रातः नहाकर घूमने जाओ, कभी बीमार न पड़ोगे ।
३- गर्म पानी से मत नहाओ, कम से कम सिर पर तो गर्म पानी हरगिज मत डालो; इससे आंखों को हानि पहुँचती है।
४- बच्चे जाड़ों मे साधारण गर्म पानी से नहावे और कमजोर व बीमारी से उठे हुए भी ऐसा ही करे।
५- छाती से रगड़कर स्नान करो, अगोछा या गमछा पानी में भिगोकर उससे रगड़ो, फिर क्रमशः हाथो, सिर, पीठ, पैरों को रगड़-रगड़ कर धोओ। याद रहे, कि शरीर का हरभाग रगड़ने के बाद गमछा अवश्य ही धो डालो। देखोगे कि तुम्हारे शरीर में चमक दौड़ रही है। इससे तुम्हें स्फूर्ति एवं शक्ति प्राप्त होगी। बिना दवा के आप स्वस्थ और सुन्दर रहेगे।

(३०) स्नान के विषय में कतिपय याद रखने योग्य बात-
१- प्रतिदिन ठण्डे पानी से नहाने वाले, सप्ताह में १ दिन गर्म पानी से अवस्य नहा लें।
२-- जिनके शरीर पर काफी मैल जमा हो, वे गर्म पानी से नहावें ।
३- स्नान के बाद तुरन्त ठंडी या खुली हवा में न जाए।
४ - खुली हवा में रहकर गर्म पानी से स्नान हरगिज न करें। इससे सर्दी हो जाने का डर है।
५- साबुन लगाकर मत नहाओ, इससे शरीर खुरदरा होता है। यदि आदत ही है, तो नहाकर उत्तम तैल लगा लो और फिर दोबारा नहा लो।
६- नहाने के तुरन्त बाद ही भोजन करने मत बैठो,
आधा घण्टे बाद स्वस्थ होकर भोजन करो।

(३१) स्नान में निम्नलिखित बातें भी अवश्य ध्यान में रखो-
१- मुंह में पानी भर के आंखों को भली-भांति धोओ और साफ करो।
२- कान के पिछले भाग को एवं छेदों को भी धोना न भूलो।
३- नाक खूब साफ करो और नकुए भी खूब धोकर साफ कर लो।
४- बगलें सावधानी से साफ करो, उनमें मैल जमता है।
५- गर्दन भी खूब साफ करो।
६- लिनेन्द्रिय की भी प्रतिदिन सफाई करना हरगिज न भूलो।
७- पैर भी खूब रगड़-धोकर साफ किया करो।

(३२) ज्वर, अतिसार (दस्त), नेत्र रोग, कान के रोग, वायुरोग, आध्मान (अफारा), पीनस (बिगड़ा जुकाम), इन रोगो मे स्नान न करे। भोजन के बाद भी स्नान न करे। जब पसीने से तर हो, मैथुन किया हो, तब भी फौरन स्नान मत करो।

(३३) शरीर को स्वच्छ रखने के लिये गर्म पानी सर्वोत्तम है। किन्तु शरीर को कठोर, कष्ट-सहिष्णु एवं बलवान बनाने के लिये ठण्डा पानी उत्तम है। यह नहाने की बात है। नहाते समय शरीर को खूब रगड़ना चाहिए, ताकि सभी रोम-छिद्र खुल जाए।

(३४) पीने के पानी मे किसी प्रकार का अप्रिय-स्वाद एवं गन्द न हो। रंग स्वच्छ हो, मटमैला, दूधिया या पीला न हो। पानी को एकदम गटागट मत पियो। धीरे-धीरे स्वाद लेते हुए, दूध की तरह पियो। स्वास्थ्य-विशारद 'चुरकी' से पानी पीने की सलाह देते हैं। इससे जल-पाचन उचितता से होता है।

(३५) पानी को साफ करने के लिये उसे साफ, दुहरे-मोटे खादी के कपड़े (छन्ने) से छान लो। बहुत गॅदले पानी में 'फिटकरी' या 'निर्मली के बीज' छोड़ दो। मैल नीचे बैठ जाने पर पानी निथार लो या उबालकर पानी को रख दो, मैल नीचे बैठ जाएगा। इसे धीरे से छान कर काम मे लो। इस उपाय से सेग, हैजा एवं अन्यान्य संक्रामक रोगों से पूरा बचाव रहेगा।

(३६) पानी हमेशा छानकर पियें। इससे नहरवा न होगा, हैजेवमन प्रभृति अपच-जन्य रोगो से बचाव रहेगा। उबाल कर छाना हुआ पानी पचासों रोग मार भगाता है। गर्म पानी पीने और नहाने या व्रणादि साफ करने मे काम आता है।

(३७) बर्फ भूलकर भी मत पियो या खाओ। 'आइस्क्रीम' बड़ी खतरनाक है। खाने वालो का स्वास्थ्य चौपट कर देती है। गर्मी के दिनो मे भी बर्फ से प्यास नही बुझती। जितना अधिक इसका उपयोग करो, उतनी ही प्यास और बढ़ती जाती है। यहां तक कि बाद मे प्यास से जी-तक घबड़ा जाता है।'

(३८) स्नान के बाद थोड़ा धूप में खड़ा रहना अच्छा है। यदि गर्मी के दिन हों तो बिलकुल प्रातः सूर्योदय पर, सूर्य की रश्मियाँ अपने अर्धनग्न शरीर पर पड़ने दीजिये। जाड़ों में मालिश करके धूप में खड़े हो जाइये। २-२ मिनट बाद अपने को थोड़ा-थोड़ा घुमाते रहिये, ताकि शरीर का प्रत्येक भाग सूर्य-रश्मियों से स्नान-सिंचित हो सके। इस उपाय से हड्डियाँ शर्तिया मजबूत होती हैं।

(३६) जीवन के लिये प्रकाश में रहना अत्यावश्यक है। यदि किसी पौधे को गमले में लाकर अधेरो कोठरी में रख दो, तो वह एक ही दिन में पीला पड़ जाएगा। यही हाल मानव का भी है। याद रखें, कि बीमारियों के बीज अँधेरे में ही बढ़ते हैं, प्रकाश मिलने से वे नहीं बढ़,पाते, किन्तु उलटे जल्दी नष्ट हो जाते हैं। असूर्यपश्या ललनायें बहुत बीमार पड़ती हैं। स्वयं तो खुले प्रकाश रहो ही, साथ ही साथ ओढ़ने-बिछाने के कपड़ों को भी ३-४ दिन मे धूप अवश्य दिखा दो। धूप से शरीर-रोमकूप खुलजाते हैं व शरीर-रंग निखर आता है।

(४०) प्रतिदिन प्रातः सायं देवदर्शन, पूजा-पाठ, आरती प्रभृति धर्मकार्य अवश्य करो। २४ घण्टों में २ घण्टे इन पवित्र कार्यों में अवश्य ही बिताओ। याद रखो, इन कामों को करने से पागलपनं पास में नहीं फटकता। धार्मिक कार्य करते समय अन्य चिन्ताओं से अवश्य मुक्ति मिल जाती है। भगवान की मूर्ति के सामने अपने हृदय के गूढ़ से गृढ़, अत्यन्त गुप्त विचार भी हर एक व्यक्ति प्रकट कर देता है, अतः उसके मन का भार हलका हो जाता है, फलतः वह पागल नहीं हो पाता; चिन्तित-व्यक्ति ही प्रायः पागल होते हैं।

(४१) स्वस्थ रहने के नियम, भोजन हमेशा खूब चबा-चबाकर करो । चाहे वह रोटी हो या पूड़ी, खीर हो या हलवा; ठंडाई हो या दृध; चने हो या चबेने| यदि हम व्यवस्थित-रीति से नही चबाएगे, तो यह काम पेट में आँतों को करना होगा। आँते इस काम को भली-भाँति नही कर सकती, फलतः हमारे भोजन का बहुत-सा बिना पचा ही रह जाएगा।

(४२) लोग समझते हैं, कि बहुत खाने से शक्ति आती है, किंतु वह गलत है। हम जितना भोजन पचा सके, उससे ही हमें शक्ति प्राप्त होगी। मेरा अनुभव है, कि भली-भांति चबाया गया भोजन मात्रा में थोड़ा खाया जाता है और बड़ा स्वादिष्ट लगता है। बिना चबाया या थोड़ा चबाया भोजन अधिक खाया जाता है, और पूरा न पचने के कारण शक्ति की जगह अशक्ति प्रदान करता है। हमेशा चबा-चबा कर ही खाइये, चाहे थोड़ा ही क्यों न खाया जाए ?

(४३) लोग पूछते हैं, कि क्या हलुआ या खीर को भी चबाने की जरूरत है ? उनसे हमें जोर देकर कहना है, कि उन्हें भी खूब चबाइये; भली-भांति चबाने पर लार उसमें मिल जाती है, जो पेट मे पहुंच कर उसके पाचन मे विशेष सहायक होती है। हलुआ गरिष्ठ (देरसे पचने वाला) भोजन है; इसे तो और भी अधिक चबाकर खांए। इतना ही नहीं, किन्तु दूध को भी गट-गट करके एकदम न पी जाए। इससे वह पेट में जाकर दही-सा-जम जाताहै और देर में पचता है। दूध का हर एक घूँट थोड़ी देर मुँह में रखकर, इधर-उधर चलाकर ही पियें।

(४४) भोजन के विषय में आवश्यक हिदायते swasth rahne ke niyam -
१- घी और मैदा का भोजन अधिक मत करिये।
२- गेहूं से चोकर मत-निकालिये, वह कब्जनाशक है।
३- हमेशा वही चावल खाइये, जो हाथ से हलका साफ किया गया हो और उस पर लाल-रेशा भी हो।
४- छिलकेदार दालें कब्ज नही करती ।
५- मसालों का अत्यधिक प्रयोग मत करिये।
६- सप्ताह मे २ बार 'नीम के पत्तों की चटनी' अवश्य खाइये ।
७- यदि स्वस्थ रहना है, तो आंवलों का भी भोजन प्रयोग में रखिये।

(४५) चटपटी मसालेदार चीजे कइयों को बड़ी प्रिय लगती हैं: किन्तु उनका अधिक प्रयोग हानिकर है। मिर्च का प्रयोग करना ही हो, तो 'लाल' की जगह 'काली' का प्रयोग करें। मसाला, खाने के समर्थक कहते हैं, कि उनसे पेट की गिलटियों का रस, और मुँह की लार भी खूब निकलते हैं। अतः भोजन शीघ्र पच जाता है। किन्तु हम उनकी इस युक्ति को इससे अधिक महत्वपूर्ण नही समझते कि 'यह तो  दुबले-पतले घोड़े को मार-मार कर तेज चलाना है।' अधिक मसाला खाने वालों की पाचन-शक्ति आगे चलकर क्षीण प्राय हो जाती है।

(४६) याद रखिये, कि यदि भोजन के साथ तरकारियॉ खा रहे हों, तो उनके साथ ही साथ दूध न ले। हाँ, भोजन के बाद दूध, ऊपर नं. ४३ में बताई गई विधि से थोड़ी मात्रा मे ले सकते है।

(४७) हमेशा सादी साफ पोशाक पहिनो। गांधी जी से शिक्षा लो। कपड़े गर्मी, सर्दी, बरसात से बचने और शरीर का पसीना सोखने को पहिने जाते हैं। अतः प्रदर्शन छोड़कर सादे कपड़े ही पहिनो। हवा मे सिर मत ढको, किन्तु कान ढके रहो। सर्दी में मौजे पहिन लो।

(४८) 'वस्त्र-परिधान' के विषय में अावश्यक सूचनायें --
१- कलफदार, गसे वस्त्र मत पहिनो, उनसे शरीर को वायु नही मिल पाती।
२- धोती कसकर मत बांधों। इससे श्वास में रुकावट होती है और पसलियां भी सिकुड़ती हैं। 

३- कपड़ो में हमारा शरीर-मल भिद जाता है,अंतः दूसरे-तीसरे रोज उन्हें बदलकर साफ करते रहो। 

४- कुर्ती, बनियान, तौलिया, धोती, अण्डरवीयर रोज धोलो।
५- बिछाने के कपड़े भी साफ सुथरे रखो।
६- सछिद्र, हवादार, ढीले कपड़े पहनो।

(४९) गहने अधिक मत पहनो और उन्हें हमेशा मत लादे रहो, इससे हमारे शरीर पर मैल जम जाता है। मध्यप्रांत मे पैरों में मोटे और पोले 'टोडर' और युक्तप्रांत मे 'झांझे' पहनी जाती है। हमेशा पहिने रहने से उनमे जू-खटमल तक भर जाते हैं। अतः आवश्यकता के समय उन्हे पहिनकर फिर उतारकर रख दो ।

(५०) 'माला' पहिनना भी अत्युत्तम है। जहां तक हो चम्पा, चमेली, गुलाब, जुही की मालाये पहिनो। रुद्राक्ष की माला साधु पहिनते है, उससे हजारो रोगों से बचाव रहता है। मोती की माला से पचासों ग्रह-बाधायें दूर हो जाती हैं और चन्दन की माला रक्तपित्त, क्षय, उरःक्षत, एवं पित्त-विकारों से बचाती है। रत्नों की मालायें आभूषणों में गिनी जाती हैं, उनसे सौभाग्य बढ़ता है।

विभिन्न रताभरण पहिनना। इनसे दरिद्रता तो मिटती ही है, साथ ही अनेक ग्रह-बाधायें भी मिटती हैं। जैसे 'माणिक्य' से सूर्यबाधा, 'चांदी या मोती' से चन्द्रफष्ट, 'मूंगा' से मंगल-पीड़ा, “पन्ना या सुवर्ण' से बुध-बाधा, 'पुखराज या मोती' 'से गुरु-उपद्रव, 'हीरा या चांदी' से शुक्र-विकार, 'नीलम या लोहे से' शनि-कष्ट, गोमेद या लाजवर्त से' राहु-बाधा 'वैडूर्य (लहसुनिया) से' केतु जन्य कष्ट दूर होते हैं।


(५१) जूते ऐसे पहिनों, जिनका चर्म मुलायम हो और पंजा चौड़ा हो। रबर के जूते आंखों को हानि पहुंचाते हैं। प्रातः सायं साफ घास में नंगे पैर घूमने से स्वास्थ्य बहुत ठीक रहता है। अधिक जूते या बूट मत पहिनो। आवश्यकता के समय ही जूते पहिनो। चट्टियां या खड़ाऊं इसके लिये अत्युत्तम हैं।

(५२) आँखों में अंजन या काजल लगाना। एक कहावत है। 'आंख का अंजन, दांत का मंजन, नितकर नितकर नितकर। नाक में अंगुली, कान में तिनका, मतकर मतकर मतकर ।' आंखों में सुरमा अंजना, मुसलमानी जमाने में खूब प्रचलित था। निस्संदेह इससे आंखे सुरक्षित रहती हैं। 'काला-सुरमा' बड़ा अच्छा रहता है। पानी बहना, दर्द, जलन, कीचड़ आना प्रभृति अनेक विकार उससे दूर हो जाते है। आंखों में हवा या धूप सहने की शक्ति भी बनी रहती है।

(५३) स्वस्थ रहने के नियम, शाम को भोजन कर लो और रात को १० बजे तक अवश्य सो जाओ। प्रातः शीघ्र उठो। यदि अच्छी नीद आएगी, तो प्रातः ही मन हरा-भरा रहेगा और सारा दिन आनन्द व्यतीत होगा।

(५४) रात को जल्दी सो जाओ और प्रातः शीघ्र उठो। दिन चढ़े तक सोते रहना बीमार बनना है। सूर्योदय के पश्चात् गाढ़ी नीद हरगिज़ नहीं पाती। रात को देर तक जागने वालों और प्रातः देरतक सोनेवालों.को 'कब्ज' हो जाता है और फिर यही रोग बढ़कर 'अपच' का रूप ले लेता है। आगे उदर-रोग होने लगते हैं। याद रखो, प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नियमित समय 'शौच' जाओ। ऐसा होने पर आंतो को नियमित समय पर' मलत्याग की आदत रहेगी।

(५५) हम रात में सोकर भी अपनी मांसपेशियों एवं मस्तिष्क को पूर्ण विश्राम नही दे पाते। प्रायः हम सोना भी नही जानते । बच्चों को देखो; उनसे सोना सीखो। सोते समय उनके हाथ पैर बिल्कुल ढीले रहते हैं। सोते में उनका हाथ उठाकर छोड़ दो तो वह फौरन नीचे गिर पड़ेगा। वे अपने शरीर की प्रत्येक मांसपेशी को पूर्ण विश्राम देते है। अमीरो को चिन्ता से ठीकतरह नीद ही नहीं आती।

(५६) जिन्हें रात को सोने के लिये नींद बुलानी पड़ती है, वे सचमुच दया के पात्र है। चिन्तातरों को नीद नहीं आती। याद रखो, कि चाहे दिन भर जो भी संकल्प-विकल्प आदि करते रहो, किन्तु सोते समय समस्त चिन्ताओ से मुक्त रहो। अन्यथा विभिन्न रोगों और यहां तक कि 'पागल-खाने' के महमान तक बन सकते हो।

(५७) रात में मिट्टी के तेल' का लैम्प या चिमनी आदि धुओं फैलाने वाली चीजें जलाकर मत सोओ। सोते समय कमरे के झरोखे, खिड़कियां एकदम मत ढक दो। हां, यह हो सकता है कि सीधी हवा का मोका न लो। रजाई में मुंह बन्द कर मत सोओ। भोजन करके तत्काल मत सोओ। हां, चाहो तो दोपहर में आधे घण्टे आराम करो।

(५८) निम्नलिखित श्लोक लिखकर अपने कमरे में टांग लें-
       'कुलिनं दन्त-मलोपधारिणं, यह्वाशिनं     
                   निष्ठुर-भापिणं च।
       सूर्योदये चास्तमिते शयानं, विमुञ्चति
                  श्रीर्यदि चक्रपाणिः ॥'
  अर्थात्
१- जो मैले कपड़े पहिने,
२- दांत मैले रखे।
३- पेड़ू हो।
४- कठोर-भापी, निन्दक हो।
५- सूर्योदय तक सोता रहे।
६- शाम को दोनों वक्त मिले 'सन्ध्या मे' सो जाए, वह 'विष्णु' ही क्यों न हो, अवश्य ही लक्ष्मी, कीर्ति और प्रतिष्ठा से विहीन हो जाएगा।

(५९) पैर धोने के विषय मे यह आयुर्वेदीय श्लोक याद कर लें --
     'पाद-प्रक्षालनं पाद-मल-रोग-श्रमापहम् ।
    चतुः प्रसादनं वृष्यं, रदोघ्नम् प्रीतिवर्धनम् ॥'

   अर्थात् जो व्यक्ति प्रातः सायं भोजन और सोने से पूर्व भली-भांति पैर धोता है, वह सौभाग्य-शील रहता है। पैरों के धोने से उनका मैल दूर होता है और पैरों के रोग तथा थकान दूर होते हैं। आंखों की शक्ति बढ़ती है और राक्षसो-बाधाओं का नाश होता है। क्रोध, उद्वेग प्रभृति दूर होकर प्रीति बढ़ती है। रात को दुःस्वप्न नहीं आते, स्वप्नदोष भी नहीं होता और नींद भी अच्छी पाती है।

(६०) 'उषःपान' (सूर्योदय होने के पहिले पानी पीना) और उसके अनुपम-गुण ।
१- सूर्योदय से ४८ मिनट (१ मुहूर्त) पहिले, तारों की झिलमिलाहट में चूसते-चूसते पावभर पानी पीने को 'उषःपान' कहते हैं। उससे बवासीर, सूजन, संग्रहणी, उदर, उदर रोग, बुढापा, कोढ, मुटापा, मूत्राघात, रक्तपित्त, कान, गले, सिर, योनि, पेडू के दर्द, नेत्ररोग, वात-पित्त, कफ विकार दूर हो जाते हैं। सौ-वर्ष तक सानन्द जीने के लिये इसका अभ्यास अवश्य करे ।
  
   जो लोग अभ्यास करते-करते नाक से 'उषःपान' करते हैं, उनके बाल सदा काले रहते हैं और शरीर पर झुर्रियाँ भी नहीं पड़ती। ध्यान रहे, कि घी-तेल पीने, जुलाब लेने, व्रण होने, मंदाग्नि, हिचकी एवं तीव्र रोगों में ऐसे उषःपान न करे, इससे हानि की संभावना है।

(६१) मुँह मे होने वाले रोगों से बचने के लिये मुँह मे तेल भरकर कुल्ला करो। अर्थात् विशुद्ध तिल-तेल मुह मे २-३ मिनट रखो और मुँह बन्द करके कुल्ला-सा करो। इससे मुंह का बद-जायका, दुर्गन्ध, रूक्षता, मुख-व्रण, सूजन और जड़ता दूर हो जाएगे। शांति मिलेगी तथा दांत मजबूत और सुन्दर रहेंगे।

(६२) 'पान खाना भी स्वास्थ्य में शामिल है। भोजन के बाद कफ बढ़ता है, अतः उसी दृष्टि से इसका प्रयोग भोजन के बाद ही माना गया है। किन्तु ताम्बूल की आवश्यकता पर एक श्लोक भी है --

    'रतौ सुप्तोत्थिते स्नाते, भुक्ते वान्ते च संगरे।    
    सभायां विदुपां राज्ञां,कुर्यात्ताम्बूल-चर्वणम् ॥'    
  अर्थात्
१- मैथुन-पूर्व ।
२- सोकर उठने पर ।
३- स्नान करके ।
४- भोजन करके या वमन के बाद ।
५- युद्ध के प्रसंग में और राजाओं और विद्वानो की सभा में अवश्य पान खावे। याद रहे, कि खाली पान औषधोपयोग के अतिरिक्त कभी न खाए। कपूर, कस्तूरी, जायफल, जावित्री, वर्तमान में 'जीन-तान' इसके सहयोगी हैं।

(६३) पान खाते समय इन बातों का ध्यान रहे --

१-पान का डंठल (कड़ाभाग) और सामने का नुकीला भाग न खाए।
२- अधिक चूना न डाले, नहीं तो मुहँ फट जाएगा। 

३- बिना सुपारी का पान तो कभी न खाए। इससे मुह का जायका बिगड़ जाता और जीभ कठोर हो जाती है।
४- रात को पान खाये-खाये मत सो जाओ। पान उगलकर, कुल्ला करके, खूब मुंह साफ कर लो; अन्यथा दांत सड़ जाएगे।
५- दिन भर बकरियों की तरह पान मत चबाते रहो।
६–कमजोर दांतवाले, नेत्ररोगी, विष-पीड़ित, बेहोशी वाले, नशैलची, भूखे-प्यासे, रक्तपित्त वाले, उरःक्षत वाले रोगी पान हरगिज न खाए।
७- पान की पहली और दूसरी पीक अवश्य थूक देनी चाहिये।

(६४) दिन छिप रहा हो, उस समय निम्नलिखित कार्य कदापि न करें-
   भोजन करना, मैथुन, सोना, पढना-लिखना और रास्ता चलना, क्योंकि; इनसे आयु घटती और रोग धेर लेते है। संन्ध्या समय संन्ध्या वन्दन, जाप्य, भगवन्नामस्मरण, सामयिक प्रभृति श्रेष्ठ आध्यात्मिक-शान्ति के कार्य ही करने चाहिए।

(६५) यदि तुम अपनी आंखों को सुरक्षित रखना चाहते हो, तो
१- तेज धूप में से आकर, ठंडे पानी से एकदम सिर मत धोओ।
२- गर्मी से तपे हुए एकदम नहाओ मत या नदी आदि में मत घुसो श।
३- दूर की और बारीक चीजें टकटकी बांधकर मत देखो।
४- अत्यन्त मत रोओ।
५- दिन में अधिक मत सोयो, रात में अधिक मत जागो।
६- नेनो मे जरा भी दर्द प्रभृति होने पर मैथुन हरगिज न करो।
७- अत्यन्त मैथुन से सदैव बचो। खटाई, कांजी, उड़द, आदि अधिक न खाओ।
८- आंसुओं का वेग मत रोको।
९- धूल-धुयें में अधिक न रहो ।
१०- वमन न रोको,जहरीली चीजों की भाफन लो।

(६६) नीचे लिखा दोहा हमेशा याद रखो और उस पर अमल करो --
   'छड़ी, छुरी, छतुरी, छला, छबड़ा पंच छकार ।
    इन्हें नित्य ढिंग राखिये, अपने अहो कुमार ॥"

१-लाठी से उत्साह, बल, स्थिरता, धैर्य-तेज रहता है। अतः लाठी चलाना सीखकर हमेशा पास रखो। इससे दुश्मन, दावागीर, कुत्ते, चोर-उचक्के, जानवरो आदि से बचाव रहता है। बूढों की तो यह जान है।
२- छुरी-चाकू आदि आत्मरक्षा किंवा दैनिक आवश्यकता की चीजे हैं।
३- छतरी से वर्षा, धूप, हवा, आंधी-धूल से बचाव रहता है। यह शीतहर, मंगल एवं नेत्रों की संरक्षक है।
४- छला-अंगूठी अनेक ग्रह-दोपहर हैं एवं समय पर धन की पूर्ति करते है ।
५- लोटा या सवारी ये छबड़ा के दोनो अर्थ हैं। शुद्ध
जल के लिये डोर-लोटा-छन्ना और सवारी के लिये बढ़िया 'छबड़ा' रखे। राजकुमार इन पांचों चीजों को रखते है। अब तो सभी राजकुमार हैं। अतः सब ही इन पर ध्यान रखें।

(६७) अधिक स्त्री-प्रसङ्घ से अवश्य बचिये । याद रखिये --
१- 'सद्यः शक्तिहरा' नारी शीघ्र ही शक्तिहारक है। २-अति प्रसङ्ग करने वाले क्षय के शिकार हो जाते हैं।
३- ऐसो के सन्तान नही होती, अथवा दीन-हीन दुर्बल सन्तति होती है।
४- जवानी अंगूठा दिखा जाती है । 

५- लावण्य-रूप, सौन्दर्य क्रीम-पाउडर लगाने पर भी नहीं पाते।
६- जवानी में ही चश्मा लगाना पड़ता है।
७- चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती और बाल शीघ्र सफेद होने लगते हैं।
८- थोड़े से श्रम से ही थकान-हांपनी आ जाती है। 

९- धातु-क्षीणता होती और टॉनिक लेने के लिये वैद्य और डाक्टरो की शरण लेनी होती है।
१०- इससे ज्वर, शूल, श्वास-कान, दौर्बल्य, वीर्य के साथ खून आना, वायुरोग, उदर-विकार प्रभृति पचासों कष्टप्रद रोग घेर लेते हैं। यदि राज रोग (राजयक्ष्मा, क्षय, टी. वी., वपेदिक) न चाहो तो इससे बचो।

(६८) वेश्यासेवन जीवन, स्वास्थ्य, समाज, देश, राष्ट्र घातक है। अतः इससे अवश्य-अवश्य बचिये । क्योंकि --
१– वेश्या यौवन और धन दोनों ही नष्ट कर देती है। २- जात-पात, कुल, इजत, धर्म और स्वास्थ्य की नाशक है।
३- सुजाक, आतशक (उपदंश) जैसे पुश्त दरपुश्त चलनेवाले, अत्यन्त भयंकर रोग-जाल चिपटा देती है।
४- ये 'आसना' है, कभी अपनी नही होती।
५- ठग, चोर, डाकू, उचक्के, बूढ़े, क्षयो, श्वास रोग-ग्रस्त प्रभृति गुण्डे-बदमाश रोगी उसके संपर्क में आते है। जिनसे पाप, व्यभिचार, रोग प्रभृति खूब पनपते है।
६- अपनी सन्तान बिगड़ती है।
७- बेचारी पत्नी भी रोग का शिकार हो जाती है। ८- विचार, विवेक नहीं रहता।
९- सभी प्रकार की खतरनाक शारीरिक एवं मानसिक हानियां होती हैं।

(६९) सुखी रहना चाहो तो 'परवी-गमन' से भी बचो।
१- इससे हर समय मन मे भय लगा रहता है, कि कोई देख-जान न ले।
२- पता लगने पर जान तक से हाथ धोना पड़ता है।
३-     यग्नारी पैनी छुरी, तीन ठौर ते चाय।
      धन छीने, जोपन हो, गुग नरक ने पाय ||
४- बाली, रावण, कीचक, अकबर जैस इस बुरी लत के कारण मारे गये या अपमानित हुए। इसलिए अपनी पत्नी को ही काम-शिक्षिता बनाकर उसी से कामानन्द प्राप्त करिये।

(७०) अप्राकृतिक मैथुन स्वास्थ्य-घातक है। इसे वे ही अपनाते है, जो शीघ्र ही दुनियां छोड़ देना चाहते है।
१- हस्त-मैथुन से लाखों नवयुवक 'नपुंसक' हो गये और फिर उनकी पत्नियां भी कुलटायें हो गई।
२- अप्राकृतिक मैथुन से वीर्य, तेज, स्मरण-शक्ति, प्रभाव, योग्यता आदि शीघ्र नष्ट हो जाते हैं और लिङ्गेन्द्रिय बेकार हो जाती है।
३- रोगी अनाड़ी, विज्ञापनबाज़ चिकित्सकों के फेर में पड़कर सदा के लिये रोग-ग्रस्त और बेकार हो जाते हैं।
४- कच्चे विपोपविष या धातुये, हानिकारक तिले, अनाइयों की बताई औषधियाँ लम्बे समय के लिये जीवन नष्ट कर देती हैं। अतः हस्तमैथुन, गुदामैथुन, पशुमैथुन, मुख-मैथुन प्रभृति अप्राकृतिक मैथुनो से अवश्य ही बचिये। अपनी सन्तान पर कड़ीनजर रखिये कि उसमे कोई ऐसी कुटेव न पड़ जाए। अन्यथा वह अकाल में ही काल-कवलित होकर आपको रोता छोड़ जाएगी।


(७१) यदि जीवन सानन्द बिताना चाहो तो नीचे लिखी बातों पर ध्यान रखों --
१- अपानवायु (पाद) को जानबूझकर कदापि मत रोको; अन्यथा अामान (पेट फूलना), थकान, पेट दर्द एवं वायु विकार हो जाएगे ।
२- जल-विसर्जन को इच्छा होने पर उसे दबाओ मत; अन्यथा आध्मान, पेट-दर्द, कब्ज, रद्दी डकारे आना और यहा तक कि मुंह से मल निकलना आदि भी होगा।
३– पेशाब का वेग रोकने से पेट में दर्द, मूत्र रुकना या रुक-रुककर होना, लिङ्गेन्द्रिय मे दर्द, सिर-दर्द, अफारा, जाँघों एवं पेडू में शूल आदि हो जाएगे। 

४-- जॅमाई रोकने से गर्दन की पिछली नस, मस्तक, गला आदि जकड़ जाते है । नेत्र, नासा, मुख, कर्ण-रोग पैदा होते है।
५- आंसू रोकने से नेत्र रोग, जुकाम, हृदय-रोग, अरुचि, भ्रम-रोग होते और सिर भारी हो जाता है। 

६- छींक रोकने पर मन्यास्तंभ, सिरदर्द, अदित (मुह टे़ढा हो जाना), लकवा, इन्द्रिय-दीर्वल्य आदि हो जाते है।
७- डकार रोकने पर अनेक वात रोग, हिचकी, खांसी, अरुचि, कम्प, हृदय-छाती का बंधना जैसे रोग हो जाते हैं।
८- वमन रोकने से खुजली, शीतपित्त, अरुचि, शोथ, पाण्डु, और यहां तक कि कोढ भी हो जाता है।
९- वीर्य के वेगरोध से नामर्दा, अण्डशूल, हृदयशूल,
सूजाक, और मूत्रावरोध, शुक्राश्मरी जैसे रोग होगे। 

१०- भूख-वेग रोकने से तन्द्रा, अंगमर्द (शरीर टूटना), अरुचि, अशक्ति, भ्रमादि ' रोग होंगे।
११- प्यास रोकने से कंठ और मुंह सूखते है। हृदयशूल होता व श्रम-श्वास बढ़ते है । 

१२-श्वास का वेग रोकने से हृदयरोग, वातगुल्म आदि होगे। १३- नींद को जबरन रोकने पर नेत्र-गस्नक विकार, जभाई और अंगनई रोग हो जाते हैं। सम-जन 

१३ वेगों को श्राप भूलकर भी हरगिज मत रोकिये।

(७२) हैजे से बचने के उपाय--
१- भूखें मत रहो।
२- मैले कपड़े न पहिनो।
३- ठंड से बचे रहो।
४- बाजारू मिठाइया, नई फल, दूध, कच्चा पानी इनसे बचो।
५- ताजा भोजन करो,गर्म पानी पियो।
६-कुत्रो मे 'पोटाश परमैगनेट' डालो ।
७- रोगी के साथ बिस्तरो पर मत बैठो।
८- कपूर हमेशा पास रखो।
९- फिनायल की गोलियां या नीम के पत्ते जेबों मे भरे रहो।
१०- हैजे के दिनों में भीड़ में या वैसे ही फालतू मत घूमो।
११- रोगी के बर्तन, वस्त्र, चारपाई, आसन, बिछौने काम मे न लो।
१२- मकान चूने और नील थोथे से पुनायो।

(७३) प्लेग से बचने के उपाय --
१- मकान चूना-नूतिया से पुना दो ।
२- नालियो मे फिनायल छिड़को ।
३- बिला-छेदो आदि को फिनायल छिड़ककर बन्द कर दो।
४- संडास की सफाई कराकर वहां फिनायल डलवाओ।
५- घर का फर्श गोबर-नील थोथे से लीपो।
६- मकान मे ओर बाहर नीम के पत्ते, राल, लोबान, गन्धक प्रभृति जलाओ।
७- सुगन्धित चोजे जलाओ, धूपखेयो, बिजली जलाओ।
८-कहते है, बिजली की रोशनी एवं धूप मे ये कीट नही पनपते।
९:-उबला पानी पियो और गर्म पानी से स्नान करो।
१०- नीम के पत्ते, करंज, तुलसी के पत्ते, चिरायता, कालीमिर्च; इनमे से १ या २-३ मिलाकर लो।
११- रोज अपने कपड़े गर्मपानी में उबालो। १२-गर्मागर्म सुपाच्य भोजन करो।
१३- हैजे मे बताये गये उपायों पर ध्यान रखो।
१४- बाहर से आते ही जूतो पर फिनायल छिड़को।
१५- मौजे पहनो और बिना जूते मत चलो। घर मे भी मौजे पहने रहो। कहते है, कि प्लेग-कीट १ फुट से ऊंचे नही उछल पाते, अतः इनसे सुरक्षा रहेगी।
१६- मरा चूहा मिट्टी के तेल मे तर करके फेक दो और उस स्थान पर भी मिट्टी का तेल छिड़को।
१७- रोग होने पर छिपाओ मत, रोगी को अस्पताल भेज दो।
१८- रोग के समय जंगल मे रहो।
१९- प्रतिदिन घुटनों तक तेल मलो।
२०- व्यायाम करो, ठंड से बचो, ऊनी वस्त्र पहिनो। ठंड में न फिरो।
२१- ठंडा-बासा भोजन न करो। चावल न खाओ।
२२- मन में हिम्मत रखो, घबराओ मत। २३-खाने-पीने का सामान खुला न रखो, ढककर रखो।
२४- जमीन पर मत सोओ, चारपाई पर ही सोओ और सोने से पूर्व गर्म पानी से पैर पोछ लो।

(७४) पतले दस्तों से बचाव --
१- शुद्ध वायु में रहो।
२- कच्चे सड़े-फल न खाओ।
३- शुद्ध, सुपाच्य आहार करो।
४- अशुद्ध जल और दूध न पियो।
५- भूख लगने पर भी थोड़ा भोजन करो।
६- तेज सर्दी या तेज गर्मी से बचो।
७- रात मे जल्दी सोओ; प्रातः शीघ्र उठो और दिन मे मन सोओ।
८- चटपटी, बासी चीजें, मसाले-मिर्च न खाओ।
९- सफाई रखो।
१०- उबला पानी ठंडा करके थोड़ी मात्रा मे पियो।
११- हैजे मे लिखे उपाय करो।

(७५) आंव-दस्तों से बचाव --
१- मक्खियों, मच्छरों और शाकभाजियो एवं भोजन पर बैठने वाले छोटे-छोटे कीटों से भोजन का बचाव रखो।
२- ताजा, हलका, सुपाच्य भोजन करो।
३-कब्ज हो तो 'अंडी का तेल' लेकर पेट साफ करो। 'आमातिसार में दस्त एकदम बन्द न करो। पहिले उक्त विधि से 'आंव' निकाल दो।
४- गीले वस्त्र न पहिनो । ठंड से बचो। सफाई रखो।
५- भोजन कम करो या मत करो। ईसबगोल दही मे मिलाकर खाओ।
६- पत्ते वाले साग बिल्कुल मत खाओ ।
७-उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी पियो।

(७६) मोतीफरा (टाईफाइड) से बचाव --
यह रोग पाचन की ही खराबी से होता है, वैद्य 'लंघन' कराते हैं। २-संस्कृत में इसे 'आंत्रिकज्वर'  (आंतो का बुखार) कहते हैं, इसमें आतें खराब हो जाती है और उनमे विप पैदा हो जाता है। ]
१- रोगी के मल-मूत्र, पसीने, वस्त्र, प्रभृति से बचो-बचाओ।
२-पानी उबला हुआ पियो व पिलाओ।
३- मक्खियों से सारा खान-पान सुरक्षित रखो।
४- रोगी को अलग एकान्त मे रखो ।
५- हैजे में बताई गई बाते यहां भी ठीक समझो।
६- रोगी का स्पर्श करके अपनी सफाई भी अवश्य कर लो।
७- मकान में हवा-प्रकाश रखो।
८ - सड़े पल, क्या दृध, दुप्पाच्य आहार न लो।
९- रोगी को अन्न न दो, धानकी लाई, फ्रूट-मखाने दो।

(७७) बच्चों को 'सूखा-रोग' से बचाने के सरल प्राकृनिक उपाय --
१- माता गर्भिणी होते ही ६ माह पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहे। इस विषय का उत्तरदाता पति ही है।
२- गर्भिणी ६ माह तक सड़ा-बुसा, बासा, गरिष्ठ भोजन न करे। यह भोजन पेट में सड़ांद पैदा करेगा और गर्भस्थ शिशु पर भी उसका बुरा प्रभाव होगा।
३- माता बाजारू-मिठाई, चाट, बिस्कुट, नानकताई, चाकलेट और शक्कर की रंगीन गोलियां आदि न खांए। मिठाई का अत्यन्त-सेवन इस रोग का मुख्य कारण है।
४- माता गर्भावस्था में कब्ज न रहने दे। फलाहार-दुग्धाहार योग्य मात्रा में अवश्य करे।
५- मां अपने को गर्म चीजो से बचावे।
६- गर्भिणी प्रतिदिन सितोपलादि चूर्ण, 'प्रवाल चन्द्रपुटी' प्रातः सायं दूध से लेती रहे।
७- गर्भिणी प्रातः वायुसेवन करे और हल्का व्यायाम भी करे।
अपक यौवनाओ में गर्भ रहने पर भी यह रोग हो जाता है। ऐसी भावी मातायें विशेष सावधान रहे।

(७८) चेचक से बचाने के उपाय --
१- नीम के कोमल-ताजे पत्ते ६ और ४ कालीमिर्च की ठंडाई प्रात: ७ दिन तक पिये।
२- या गोरखमुंडी के फूल १-१ तोले प्रतिदिन ठंडाई बनाकर पिये। इससे रक्तविकार एवं नेत्र पीड़ा भी मिटेगे।
३- गधी का दूध १-१ तोले प्रातः सायं पिलावे।
४- असली रुद्राक्ष ४-४ रत्ती, पानी मे घिसकर दिन मे ३-४ बार दे।
५- ज्वर होते ही शरीर पर मधु मल दे, तो चेचक नहीं निकलती।
६- चेचक के मौसम मे बिनौला, हरीदूव, मसूर की दाल, हल्दी को गोदुग्ध मे बारीक कूटपीस-छानकर शरीर पर उबटन करो। चेचक हरगिज न निकलेगी।

(७९) छूतदार-रोग और उनके रोकने के उपाय --
१- चेचक का रोग दानो के पीप द्वारा फैलता है।
२- हैजा और टाइफाइड (मोतीझरा) दरत और वमन से फैलते हैं।
३- डिपथीरिया (घट-सर्प) बीमार के थूक-खकार और पसीनों से दूसरों में फैलता है। इन सबसे बचने और बचाने का मुख्य उपाय यह है, कि जिन चीजों से उक्त रोगियों का स्पर्श मात्र भी हो गया हो, उन्हे सदा तीव्र-शोधक औषधों से साफ करके गर्म पानी में उबालें और धोकर धूप में सुखावे। हैजे और प्लेग से मरे रोगी के वस्त्र प्रभृति तो अग्निदेव के हवाले ही कर देने चाहिए।

(८०) याद रखो, कि संक्रामक रोगियो के वस्त्र सार्वजनिक उपयोग के स्थानों तालाबों, बावड़ियों, कुओ, नदियो आदि पर न धोवें, क्यो कि इससे रोग सर्वत्र फैल जाता है। संक्रामक रोग-ग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ-मानवों के सम्पर्क में भी तब नहीं रहना चाहिए। ऐसे समय में पीने का पानी खूब उबाल लेना आवश्यक है, इससे जल कीटरहित एवं विशुद्ध पेय हो जाता है।

(८१) 'गोबर' सफाई और स्वास्थ्य-रक्षण की दृष्टि से अत्यन्त लाभप्रद है। गोमय (गोबर) से लीपने की पद्धति भारत मे पुराने समय से अब तक चली आ रही है। गोवर रोगोत्पादक कारणों से बचाव रखता है और औपधरूप में भी उसका उपयोग होता है। मेरा अनुभव है, कि कोयलो एवं लकड़ियो से तैयार की गई औपधों की अपेक्षा, कंडो और खासतौर से 'अरने कंडों' से तैयार की गई औपधे अधिक प्रभावक प्रमाणित होती हैं।

(८२) 'चूना' वर्तमान समय मे उत्तम जन्तुन्न माना जाता है। हैजे-लेग आदि खतरनाक संक्रामक रोग-ग्रस्त रोगियों के मल-मूत्र, कफ प्रभूति पर चूना छिड़क देने से रोग-प्रसार का भी भय नहीं रहता। जो हो, गोबर का उपयोग न करने वाले इसका उपयोग करें और लाभ उठावें। चूने के कतिपय अनुभूत उपयोग हम कभी लिखेगे।

(८३) संक्रामक रोगों के फैलने के समय सफाई' और वायु-शुद्धि का ध्यान विशेष रूप से रखिए। कतिपय उपाय ये है- सप्ताह में १-२ बार गांव के अन्दर नीम के पत्ते, धूप, गन्धक, लोबान या राल; इनमें से कोई एक या २-३ चीज़ तक मिलाकर जलाते रहना चाहिए। इस तरह अपने घर की शुद्धि भी की जा सकती है, किन्तु तब स्वयं को कमरे से बाहर हो जाना चाहिए और फिर धूनी देनी चाहिए। धूनी जलाकर किवाड बन्द कर दें। उस उपाय से मक्खी और मच्छर आदि भी पैदा न होगे।

(८४) दूध सर्व-श्रेष्ट पेय है। इसमें प्रायः सभी पोषकतत्व है। छोटे बच्चे इसी के सहारे पलते है। दूध के उपयोग में निम्न निषित सावधानियां
रखो --
१- दूध दुहने का बर्तन अच्छा साफ हो।
२- दुहने वाला अपने हाथ धो-पोछकर साफ कर ले।
३- दुधारू पशुओं को स्वच्छ पौष्टिक शाहार दें।
४- जहां तक हो, धारोष्ण दूध ही पियो।
५- एक घन्टे बाद का दूध अवश्य उबाल लो।
६- दूध धीरे-धीरे पियो।
७- मैथुन के बाद या सोने से २ घन्टे पूर्व दूध जरूर पियो।
८- गर्मियों में दूध-पानी की लम्बी बनाकर पिया करो।

(८५) कृपया 'चाय' का प्रयोग कभी मत करिये। इसमे निम्नलिखित हानियां होती है --
१- चाय में जहर होता है, जो उबलते पानी में घुलकर मिल जाता है। इसके पेट मे पहुंचने से पाचन-शक्ति कमजोर हो जाती है।
२- चाय पीने की आदत से मनुष्य लाचार हो जाता है, बिना चाय पिये उससे कोई काम नहीं होता।
३- चाय पीने वाले बच्चों की ऊँचाई और वजन व्यवस्थित रीति से नहीं बढते। चौदह वर्ष की आयु से पूर्व इसे हरगिज न पियें या पिलाये। इसकी जगह आधापाव या पावभर उत्तम दूध पी लिया करें।

(८६) आप 'एल्युमिनियम' के बर्तनों में रखा हुआ आहार कदापि मत करिये, क्योंकि --
१- आप एक एल्युमिनियम के बर्तन मे १५ मिनट पानी गर्म करे, फिर उसे किसी बोतल में भर दे। आपको उसमे फिटकरी-सी धुली दिखाई देगी। यह एल्युमिनियम का 'हाइड्रोक्लोराइड' है, जो कि जहर है।
२- इसमें दूध, पानी, छाछ या चाय-कॉफी, कहवा या साग, तरकारी दाल आदि जो कुछ भी उबालेगे, यह सब जहरीला हो जाएगा।
३- यदि गाजर वगैरह का अचार इन पात्रों में रखें तो आठवा भाग एल्युमिनियम मिल जाएगा।
४- खट्टी चीज रखकर खाओगे, तो कै-दस्त होंगे या पेट दर्द होगा।
५- नमक या क्षार वाली कोई भी चीज उस पात्र मे रखने पर वह जल्दी ही विषमय हो जाएगी।
६- पानी भी खराब हो जाता है। बर्तन में दानें से पड़ जाते है। 
७- इसमे रखा भोजन करने एवं चाय-कहवा आदि पीने से अनेकों रोग-ग्रस्त हो गये और अनेकों की पाचन शक्ति घट गई ।
८- इसका विष फिटकरी जैसा थोड़े सफेद रंग का होता है, किन्तु शरीर पर जहर-सा प्रभावक है।

(८७) भोजन करने से पूर्व इन बातों पर भी अवश्य ध्यान रखें --
१- स्वभाव से हितकर चीजें जैसे- सांठी चावल, गेहू, जौ, मूँग,अरहर, मिश्री, सेंधा नमक, सन्तरा, अनार, आम, आंवला, अंगूर, दाख, मुनक्का, किशमिश, पिण्डखजूर या छुवारा, पपीता, टमाटर, पालक, गाजर, फालसे, खिरनी, नीबू, बधुआ, परवल, पत्तागोभी, गोदुग्ध, गोघृव, केला, पोदीना आदि उचित और नियमित मात्रा में अवश्य ही खाते रहे। इनसे जीवन निर्वाह सुविधापूर्वक होता है।
२- स्वभाव से अहितकारी आहारों से अवश्य बचिये। जैसे- भेड का दूध, सरसों का साग, मैदा एवं उससे बने पदार्थ, कटहल, अधिक मात्रा मे उड़द और उससे बनी चीजें, राब, मशीन से कुटा चावल, मक्का, अरबी-घुइयां आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। इनमें से कुछ चीजो का उपयोग जब-कभी थोड़े-बहुत स्वाद के लिये करने में कोई हानि नहीं होती।
३- संयोग-विरुद्ध पदाथों से बचिये। जैसे दूध के साथ निम्नलिखित चीजों में से कोई भी मिलाकर मत खाइये। मूली, जामुन, सूखे साग, केला, उडद और उससे बनी चीजें, तेल, दही, नमक, कुलयी, तिलकुट, नीबू, बोरई, टेंटी, अनारादि।

   दही के साथ केला या कटहल न खांए । मधु के साथ गर्म पानी, कटहल, मूली, गर्म चीजें मिलाकर न खांए श। ये मिश्रण स्वास्थ्य-घातक है।

(८८) निम्नलिखित ढंग की चीजे हरगिज न खावे और न पिए--
१- कांसी (फूल) के बर्तन में रखा हुआ, १० दिन का घी, जो रंग-बिरंगा हो।
२- पीतल आदि पात्र मे रखा हुआ घी-खटाई आदि; जो बे-स्वाद और बदरंग हो गया हो।
३- गर्मी के मौसम में अथवा गर्म बीजों से या गर्म करके (शहद) न खांए।
४- एक बार ताजा बनाया गया भोजन, फिर दुबारा आग पर गर्म न हो।
५- घी-मधु या घी-तेल या घी-जल बराबर-बराबर मिलाकर मत खाओ।
६- गरिष्ठ, दुप्पाच्य, भारी, पेट में पढी रहने वाली अजीर्ण-कारक चीजे न खाओ।
७- सडे-गले, दगीले, बांसे, बदजायके फल-शाक भूलकर भी न खांए।
८- चलितरस दाल, बासा भात, बासा साग, तिबासी-छाछ उम्र घटाती है।
९- सडे़ खरबूजे, सडे़ श्रास, खीरा-ककढी प्रभृति हैजा पैदा करते है।
१०- मैला-बदजायका, दुर्गन्धित, कीड़ेवाला बरसाती नदी का पानी न हो।
११- भांग, गांजा, तम्बाबू आदि नशीली चीज कभी व्यवहार में मत लो।

(८९) भोजन में निम्नलिखित नियमों का अवश्य पालन करों --
१- भूख लगने पर भोजन करो पानी न पियो, नही तो 'जलोदर' हो जाएगा।
२- प्यास लगने पर पानी ही पियो, भोजन न करें अन्यथा 'गुल्म हो जाएगा।
३-भोजन के बाद शीघ्र मैथुन करने से पेट-दर्द होता हे या फोते बढ़ जाते हैं।
४-अधिक मीठा मत खाओ। इससे चनुने-कृमि, मदाग्नि, उदरविकार, ज्वर, कास-श्वास, गलगंड, मुटापा, प्रमेह, कफरोग आदि बढ़ते है।
५- हमेशा समय पर दिन में २ बार खाओ। ६ से ८ घंटे का अन्तर रखों।
६- पेट के चार-भाग करो। २ भोजन से व १ पानी से भरों और १भाग खाली रखो।
७- एकदम बहुत गर्म या एकदम बिल्कुल ठंडा भोजन मत करो। गर्म अन्न बलनाशक व ठंडा दुप्पाच्य है। पसेवसे भीगा-गला भोजन ग्लानिकारक है।
८- एक थाली में कइयों के साथ भोजन न करो। झूठा पानी कभी मत पियो ।
९- प्रातः सुपाच्य, शक्तिवर्धक थोडा-सा नाश्ता करके पानी पी लिया करो ।
१०- भोजन में गिलास के गिलास न गटको। भोजन के घंटे भर बाद जल पियो।

(९०) खान-पान के विषय में ये बातें अवश्य ही याद रखो swasth rahne ke niyam --
१- दूध पीकर फौरन पान न खाओ, दही न खाओ, खटाई न खाओ। खाना हो तो १०-१५ मिनट बाद खाओ।
२- भोजन करके मैथुन, कसरत, सवारी, लिखना, गाना, दौड, पढना-पढाना, रोना, परिश्रम आदि न करो। कम से कम इनमे १-१ घण्टे का अन्तर रखों।
३- लेटे, चलते, टेढे-बैठे भोजन न करों न पेय-द्रव्य ही पियो।
४- तिल्ली बढ गई हो, तो पानी पीते समय बायें हाथ से उसे दबा रखों।
५- भोजन के बाद कफहारक सुगन्धित-पदार्थ लोग, जायफल, सुपारी, पान प्रभृति खाओ। पान मे सुपारी अवश्य रखो।
६- केला, ककडी, मूली, खाली पेट न खाओ। पानी भी खाली पेट न पियो। हाँ; अनार, अंगूर, सन्तरा, नीबू खाली पेट भी ले सकते हो।
७- दोपहर को मसालेदार मट्ठा और शाम को मलाईदार दूध पियो।
८- गर्मियों के सिवाय भोजन करके किसी भी मौसम मे दिन मे मत सोंए।
९- भोजन करने के बाद आंखों पर हाथ फेरो, नेत्र-ज्योति बढेगी।
१०- भोजन के बाद पेट पर हाथ फेर कर १०० कदम टहलो। खाया हुआ हजम हो जाएगा।

मित्रो,  यहाँ पर आपको स्वस्थ रहने के नियम / swasth rahne ke niyam बताए गए है, इन नियमों का पालन कीजिये और हमेशा स्वस्थ रहिये

स्वस्थ रहने के नियम / swasth rahne ke niyam स्वस्थ रहने के नियम / swasth rahne ke niyam Reviewed by Chandra Sharma on December 28, 2020 Rating: 5

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