tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम

tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम


१-दाँतों की खराबी

tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम, वास्तव में तंबाकू से कोई भी लाभ नहीं होता। लोग बिलकुल मिथ्या भूल में पड़कर उससे फायदा होना बताते हैं। कितने ही लोग कहते हैं कि तंबाकू से और चाहे जो नुकसान होते हों पर दॉत तो जरूर ही मजबूत हो जाते हैं । ठीक है, मैं भी कहता हूँ कि मिट्टी खाने से चाहे और बहुत से नुकसान पहुँचते हों, पर भूखा पेट तो जरूर भर जाता है ! क्यों, हसे क्यों ? मिट्टी खाने से पेट नहीं भरता 2 तंबाकू खाने-पीने से दाँत मजबूत होने की बात भी इसी तरह की है। दाँत उन लोगों के मजबूत होते हैं, जिनके दाँतों की जड़ें मजबूत होती हैं, जिनके मुँह की भीतर वाली चमढ़ी का पुर्त अच्छा होता है, जिनकी अन्न-नलिका और जठर नीरोग होते हैं। शरीर शास्त्र द्वारा यह बात सिद्ध हो चुकी है कि तंबाकू खाने पीने अथवा सूंघने से दाँतों की जड़ें ढीली पड़ जाती हैं, मसूढे खराब हो जाते हैं और अन्ननलिका तथा जठर की झिल्ली को खास तौर से हानि पहुँचती है । यदि तुम मेरे साथ चलोगे, तो मैं तुमको तंबाकू के दुर्व्यसन वालों के दाँत दिखा दूँगा । तुम देखोगे कि उनके दाँत तंबाकू न सेवन करने वाले मनुष्यो की अपेक्षा जरा भी अधिक मजबूत नहीं, बल्कि निर्बल हैं। दाँत निर्बल होने के और भी बहुतसे कारण हैं । इसलिए जिनके दाँत दॉतोन न करने से, किसी रोग से, शराब पीने से, अथवा ऐसे ही किसी कारण से बिगड़ गये हों, उनके साथ यह मिलान नहीं होना चाहिए। क्योंकि यदि तंबाकू का सेवन करने वाला दाँतों की रक्षा के अन्य नियमो का पालन करता हो, तो उसके दाँत वैसे नियमो के नहीं पालन करने वाले की अपेक्षा अच्छे हो सकते हैं, परन्तु दन्तरक्षा के नियमो के पालन करने वाले और व्यसनहीन पुरुप की अपेक्षा तो कदापि अच्छे नहीं हो सकते। 


कितने ही तंबाकू खानेवालोंकी डालें नहीं दुखतीं । ऐसे लोग कभी कभी यह समझ लेते हैं कि तंबाकू खानेसे डाढ़े नहीं दुखतीं । परन्तु इसका कारण यह है कि उनकी डाढोंके ज्ञानतन्तु तमाखुके जहरसे मूच्छित रहते हैं और इससे वे दुःखका अनुभव नहीं कर सकते । इसीको अज्ञानी लोग तंबाकूका फायदा समझ लेते हैं। ऐसा कोई बिरला ही तंबाकू खानेवाला होगा, जिसके दाँत बुढ़ापेमें सड़ न गये हो या गिर न गये हों। परन्तु ऐसे किसी बिरलेका उदाहरण देनेसे यह न समझ लेना चाहिए कि तंबाकू से दाँत खराब नहीं हो जाते या नहीं गिर जाते। वैसे तो कोई कोई शराबी भी दीर्घजीवी होते हैं, पर इससे यह नहीं माना जा सकता कि शराव पीनेसे लोग दीर्घजीवी होते हैं। यदि किसी गले तक ढूंस-ठूसकर खानेवालको दूसरे दिन अजीर्ण या अपच न मालूम हो, तो क्या यह समझना चाहिए कि गले तक दूंस-ठूसकर खानेसे अजीर्ण नहीं होता ? 

tambaku sevan ke dushparinam


यदि कोई चमारका बच्चा गन्दी जगहमें, कूड़े या कचरेके ढेरपर रात-दिन खेलता-कूदता हो और फिर भी बीमार न पड़ता हो, तो इनसे क्या यह निश्चय कर लेना चाहिए कि गन्दी जगह, कचरे या कूड़ेक टेरमें रहनेवाले बीमार नहीं होते ! ऐसे उदाहरणोंसे तो केवल यही सिद्ध होता है कि ऐसोंका शरीर-सगठन जन्मसे ही सुद्ध होनेसे रोगके कारण उपस्थित होनेपर भी रोग उनपर सहज ही आक्रमण नहीं कर सकता। इसी तरह यदि किसी शिरले तंबाकू खानेवालेके दौत ना या गिर न गये हों, तो मानना होगा कि उसका शरीरसद्गठन दृढ़ है अथवा उमने तन्दुरस्तीके दूसरे नियमोका पालन किया है। रिन्तु यह बात तो मिद्ध ही है कि तंबाकू खानेकी आदत यदि उसे न होती, तो उनके दाँत और भी अधिक मजबूत होते । 


किनी किली तमामु ग्यानेगालेके दाँत जल्दी नहीं गिर जाते, पर खगन तो जहर ही हो जाते हैं। यदि तुम ऐसे लोगोंके दाँत देखोगे, तो माटम होगा कि वे पोडे पड गये हैं, और उनकी जड़ें बिल्कुल निकामी हो गई हैं । दुनियाके प्राय. सभी डाक्टरोकी राय है कि तंबाकू जहरीली वस्तु है, माथ ही उनमें ढीला कर देनेका भी गुण है, इस डिए उनने दाँतोको जरूर हानि पहुँचती है। 


कृपाल ईश्वर या दयारती प्रकृतिने ऐसी योजना की है कि मनुष्यके टॉन जन तक वह जीता रहे तब तक अवश्य बने रहें । परन्तु यह बड़े दुखकी बात है कि लोग तंबाकू खा, पी, और सूचकर दाँतोको ४० या ५० वर्षकी ही अवस्थामें ही खराब कर डालते और गिरा देते है। 


२-तंबाकू से स्वर, इन्द्रियों और रुचि का विगाड़

tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम यह बताया जा चुका है कि तंबाकू खाने, पीने या सूंघनेसे दाँत बिगड़ते हैं । अब इससे होनेवाली जो दूसरी हानियाँ हैं, उनको सुनो । तंबाकू से मनुष्यका गला बिगडता है * । तुमने किसी तंबाकू सूंघनेवालेका गाना सुना है । यदि नहीं, तो मौका मिलनेपर ध्यान देकर सुनना । चाहे कितना ही अच्छा गानेवाला हो, पर उसका स्वर तुमको बहुत कुछ विगडा हुआ मालूम होगा । उसके स्वरकी मिठासमें तुम्हें न्यूनता जान पड़ेगी। जितने वकील, शिक्षक, व्याख्याता आदि तंबाकू सूंघनेके व्यसनी होते हैं, उनका गला थोड़ा बहुत विगडा हुआ अवश्य होता है। केवल तंबाकू झूचनेसे ही गला बिगड़ता है, यह वात नहीं है। तंबाकू खाने-पीनेसे भी गलेकी ऐसी ही दुर्दशा हो जाती है । तंबाकू पीने तथा खानेसे नाकके भीतरकी चमडी रूखी ( रुक्ष ) हो जाती है और इससे गला बिगड जाता है । धुऑ जहाँ जहाँ जाता है वहाँ वहाँ कालिख जमाये विना नहीं रहता. कारण धुएँमें जले हुए पदार्थक परमाणु रहते हैं । रसोईघरमें चूल्हेके पासकी भीतें और खिडकियाँ काली हो जाती हैं। तंबाकूके धुएँमें भी तंबाकूके जले हुए काले परमाणु होते है और वे जिस जिस भागको छूते हैं, वे सत्र भाग काले पड़े बिना नहीं रहते। तुमने कभी चिटम पीनेवालोंका काडा दुर्गन्धिमय कपड़ा देखा है ! यदि बिलकुल नये उजले कपड़ेकी साफी चिलम पीनेके काममें लाई जाती है, तो तीन चार दिनमें ही एक्दम काली दुर्गन्धिमय हो जाती है। क्यों कि, तमाखुके धुएँके परमाणु उसपर जम जाते हैं। तंबाकू पीनेगलोंके हाथ, दाँत तथा होठ धीरे धीरे काले पड़ जाते हैं। इस तरह जब तंबाकूका धुआँ कपड़ों, होंटो, देोतों और हाथोंको काला किये बिना नहीं रहता, तब नारके भीतरफी तथा छाती और फेंकडोंके अन्दरकी कोमल चमड़ीको क्यों न काला करे और इन अवयवोंकी चमड़ीपर उसके हानि पहुँचानेचाले काले परमाणु क्यों न ठहरें ! इस तरह नाक, गला और छातीके भीतरफ पोले भागको अर्थात् स्वर-नलिका तथा अन्न-नलिका आदि भागोको, जिनका निर्माण गरीरमें अनेक उपयोगी कामोके लिए किया गया है, तमाम्यू पीनेवाले जब धुआँ निकलनेका द्वार या चिमनी बना टते हैं, तब यदि उनका गला बिगड़ जाय और उनको अनेक प्रकारकी हानियों पहुँचें, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है । धुएँके इन जहरीले परमाणुओंको कुछ न कुछ अश रक्तमें भी मिल जाता है और सारे शरीरमें पि फैला देता है।  तंबाकू से तीसरा नुकसान यह होता है कि कान, त्वचा, आँख, जीभ और नाक इन पॉचो ज्ञानेन्द्रियोकी शक्ति घट जाती है। तमाखु का व्यवहार करनेवालोको सादा भोजन नहीं रुचता । उनको उसमें स्वाद ही नहीं आता। भोजनके जिन पदार्थों में, नमक, मिर्च, खटाई, गरम मसाला खूब पड़ा हो, वे ही उन्हें अच्छे लगते हैं। सादी वस्तुओंके स्वादका ज्ञान उनकी जीभको होता ही नहीं । धीरे धीरे यह हालत हो जाती है कि उन्हें अमृततुल्य स्वाद भी नहीं मालूम होता । जेलमें तंबाकू खाने-पीने-सूंघनेवाले कैदियोंको तंबाकू नहीं दी जाती है। इससे थोड़े ही दिनोंमें उनकी रुचि सुघर जाती है। इससे भी सिद्ध होता है कि तंबाकू से स्वादेन्द्रिय विगड़ जाती है। 

तंबाकू सूंघने की शक्तिको भी घटाती है। यदि रहनेके कमरेमें तुरी या अच्छी वास आती हो, तो उसका ज्ञान तंबाकू सूंघनेवालोको सब लोगोंसे पीछे होता है और कभी कभी तो होता ही नहीं है । * यह कोई कम हानि नहीं है । शरीरके आरोग्यको बिगाड़नेवाली अस्वच्छ हवाका ज्ञान तंबाकू सूंघनेवालोंको नहीं हो सकता और इससे यदि वे अस्वच्छ हवामें अपने समयका बहुतसा भाग वितायें, तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं। इसके सिवाय तंबाकू सूंघनेवालेके नाकमें मसेका रोग होनेकी भी अधिक समावना रहती है। 

तंबाकू से ऑखका भी तेज घट जाता है। बहुतसे लोग अज्ञानतावश यह समझ लेते हैं कि तंबाकू सूंघनेसे आँखका तेज वढता है । वास्तबम तंबाकू सूंघनेसे ऑखके ज्ञान-तन्तु निर्वल हो जाते हैं और आँखसे पानी सरने लगता है । तंबाकू सूंघनेवाले अज्ञानतावश समझ लेते हैं कि ऑखोंकी गरमी निकल रही है और यह मानकर वे तंबाकू सूंघनेका व्यसन दाल लेते हैं । धुओं उगनेसे भी आँखोंसे पानी बहता है। इनसे गरमी निकल जाना समझकर यदि आँखोका तेज बढ़ानेवाला मनुष्य में ही रहने लगे, तो वह अवश्य अधा हो जायगा। रोनेसे भी आँखोंसे पानी निकलता है, तब क्या रोनेसे आँखोंका तेज बढ़ता मान लेना चाहिए ? आँखोंको तर रखनेके लिए आँखोंके परदोकी मासप्रन्धियोंमें (glands) सचित हुआ जट, तंबाकू सँघनेसे अकारण ही बह जाता है। इससे प्रन्थियोंमें नया जल सचित करनेके लिए तन्तुओंको अधिक परिश्रम पड़ता है और इससे लाभके बदले हानि ही होती है। यदि किसी एक तंबाकू सँघनेवालेकी आँखोंका तेज साठ-सत्तर वर्यकी अवस्था तक घटा हुआ न माझ्म हो, तो इससे यह नहीं माना जा सकता कि तंबाकू सूचनेसे आँख बिगड़ती नहीं। दिमागको यदि मेहनत कम पडती हो और आँखोंके बलवान् रहनेके और कारण उपस्थित हों, तो यह सम्भव है कि तंबाकू दे॒वनेसे आँखोंको अधिक हानि न पहुंचे। परन्तु यह निश्चित है कि यदि तंबाकू सूंघनेका व्यसन न डाला जाता, तो आँखें और भी तेज होती । तंबाकू पीनेसे भी ऑखोंका तेज घटता है। जर्मनीके लोगोंका बहुत बड़ा भाग तंबाकू पीता है । जिसका परिणाम यह हुआ है कि वहाँ चश्मा लगानेका बहुत अधिक प्रचार हो गया है। 


तंबाकू सूंघने वालों के ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि वे कुछ न कुल बहरे हो गये हैं। तंबाकू खाने या पीनेवालेके कानोंको तो कम हानि पहुँचती है; पर तंबाकू सूंघनेवालेके कानोको तो अवश्य ही बहुत हानि पहुंचती है। 


इस प्रकार जब आँख, कान, नाक ओर जीभ इन चार इन्द्रियोको तंबाकू से हानि पहुँचती है, तब पाँचवीं स्पर्शेन्द्रियपर भी उसका बुरा असर पड़ता होगा, यह बात अनुमानसे समझी जा सकती है। और यदि त्वचाको कोई हानि न भी पहुँचती हो, तो भी चार इन्द्रियोको हानि पहुँचना कोई मामूली बात नहीं है। तंबाकूमे यदि किसी एक ही इन्द्रियको हानि पहुँचती हो, तो बुद्धिमान् आदमीको तंबाकूका व्यसन छोड़ देना चाहिए; पर जब चार चार इन्द्रियोंको, दाँतोंको और गलेको तंबाकू हानि पहुँचाती है, तव कौन बुद्धिमान् आदमी उसका सेवन करेगा ? कोई भी नहीं। 


प्लीमय में मि० कमिंग्ज नामका एक मनुष्य रहता था। बीस वर्षकी अवस्था तक उसकी आँखें विलकुल कमजोर न थीं। उसका शरीर सुदृढ़ और निरोगी था। इसके बाद उसे तंबाकू सूंघनेका व्यसन पड़ गया। पचास वर्षकी अवस्था होनेपर वह तंबाकू पीने लगा और खाने भी लगा। ३० वर्ष तक इन तीनों व्यसनोमें वह पड़ा रहा। इसका फल यह हुआ कि उसका शरीर बिलकुल ही वेकाम हो गया। इन्द्रियाँ बिगड़ती रहीं। चौवन वर्षकी अवस्थामें वह चश्माके बिना एक अक्षर भी न पढ़ सकता था। उसके दोनों कानोमें ऐसी आवाज आती थी, मानो अन्दर नगाड़े बज रहे हों। दाहिने कानसे तो वह बिलकुल ही बहरा हो गया था। इस तरह वह दस वर्ष बहरा रहा । अनन्तर डाक्टर मसीकी सलाहसे उसने तंबाकू खाना, पीना और सूंघना छोड़ दिया । छोड़नेके वाद पूरा एक महीना भी नहीं बीता कि उसे कानोंसे सुन पड़ने लगा। इसके बाद फिर उसकी यह इन्द्रिय कमी न बिगड़ी। यद्यपि चश्मा छोड़ देनेमें उसे कई महीने लगे; किन्तु आखिर वह छूट ही गया। 


इम मनुष्य को शराब पीने का अथवा और किसी तरहका कोई व्यसन नहीं था। जिस समय तंबाकू पीता था, उस समय जिस प्रकार खाता पीता था, उसी प्रकार तंबाकू छोड़ देनेपर भी खाता पीता रहा। इससे यह माननेमें कोई अड़चन नहीं मालूम होती कि तंबाकूके सेवनते ही उसकी इन्द्रिया बिगड़ गई थीं। 


इस प्रकारके अगणित दृष्टान्तोंसे डाक्टरो ने सिद्ध किया है कि तंबाकू इन्द्रियों को बिगाड़ती है। 


३-पचनक्रिया का बिगड़ना और झूठी प्यास

 tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम यह बतलाया जा चुका है कि तंबाकू मे दाँतों की जड़ें ढीली होकर वे निर्बल पड़ जाते हैं। जैसे कमजोर घोड़े से गाड़ी नहीं खिंचती, उसी तरह कमजोर दाँतो से अन्न जैसा चाहिए वैसा नहीं चवाया जाता और यह कम चबाया हुआ अन्न अच्छी तरह नहीं पचता । इस कारण तंबाकू का सेवन करने वालों की पाचनशक्ति अच्छी नहीं रह सकती । व्यसन के आरभ में दॉत इतना नहीं बिगड़ते, किन्तु ४०-५० वर्ष की अवस्था में अपश्य ढीले पड़ जाते हैं और गिरने लगते हैं। इसलिए तंबाकू का उपयोग करने वालों का पकागय ४०-५० वर्ष की अवस्था के बाद निस्सन्देह निर्बल हो जाता है। 


तंबाकू का व्यवहार करने वालों की पचनक्रिया बिगड़ने के और भी बहुत से कारण है । एक तो तंबाकू खाने-पीने वालो को बार बार थूकना पड़ता है । और थूक पचन क्रिया को सहायता देने वाला एक रस है। तंबाकू खाने पीने के कारण थूकने की आदत पड़ जाने से वह आवश्यकतानुसार जठर में नहीं पहुँचता और इससे अन्न अच्छी तरह नहीं पच सकता। यदि किसी तंबाकू खाने-पीने वाले को थूकने की आदत नहीं होती है, तो उसका जहर से भरा हुआ थूक जठर में जाकर पचनक्रिया में सहायता पहुँचाने के बदले उसे उल्टा विगाड़ता है। इतना ही नहीं, पेटमें वायु * बढ़ाता है और सच्ची भूख और रुचि का नाश हो जाता है। यदि तंबाकू के व्यवहार से पचनक्रिया अच्छी हो जाती होती और भूख बढ जाने लगती, तो कैदखाने में कैदियों को तंबाकू न मिलने से तथा बहुत से मनुष्यो को तंबाकू छोड़ देने पर अन्न अच्छी तरह न पचता । पर अब तक यह नहीं सुना गया । 


विद्वान् डाक्टरों का यह अनुभव सिद्ध कथन है कि तंबाकू के दुर्व्यसन से खाना पचने की बात तो दूर रही उल्टे अग्निमान्द्य का रोग हो जाता है। डाक्टर रशका कहना है कि इससे अपच का रोग हो जाता है और खाया हुआ पदार्थ बहुत देर से और बहुत अपूर्ण रीति से पचता है तथा मुँह का रंग बिगड़ जाता है । डाक्टर कलन कहते हैं कि तंबाकू सूंघने से अजीर्ण-विकार के सारे चिह्न होते हुए मैंने देखे हैं । डाक्टर हॉसेक का कहना है कि मन्दाग्नि रोग की अधिकता का कारण अधिकाश में तंबाकू का दुर्व्यसन है । प्रोफेसर हिचकाक कहते । हैं कि तमाम्पू ने अजीर्ण होता है। जर्नल आफ हेल्य कहता है कि तमा का पार करने वालों ने अधिकांश टोग अजीर्ण क रोग से पीदिन रहते हैं। टास्टर मॅफ जरिस्टर कहते हैं कि तमान्यू के व्यसन ते पचनेन्द्रिय सौर मन से रक्त बनाने वाली शक्ति गिरती है और अन्न में मनुष्य अजीर्ग रिकार के भयंकर दु.समागर में दून जाता है। टॉक्टर म्टीमन्नन करते हैं कि जठर और नाफ के दानतन्तुओं में सम्बन्ध होने तमा न बने के कारण प्राय: अपच रोग हो जाता है। 


हजारों टास्टरॉकी यही राय है—फिन फिनफे नाम लिये जायें और निन किन पत्यन मुनाप जाएँ । इतने ही प्रमाणों ने तुमको विश्वास हो गया होगा कि तमाबू पचन क्रिया जरा भी मदद नहीं पहुंचाती, बल्कि पचन क्रिपा को रिगारकर उले भयक्र गेग पैदा करती है। 


ग्न्तुि तमाम कार ज्यननी तो यही कहेंगे कि यह सत्र ढाक्टरो की वस्यक है, हमारा तो अनुभव है कि तंबाकू भोजन को भस्म क्र. टेनी है । ऐने दुगप्रहियों को जब अपनी मूलका कड्या फल भोग लेना पड़ता है, तब भी यह नहीं समझ पड़ता कि यह फर उनको टनकी मूडके ही कारण मिल रहा है । ऐसे लोगों के इस प्रकारके कयन का कारण मैं तुमको पहले ही नमज्ञा चुका हूँ कि तमान्यू में जठरके झानतन्नुओं में सूजन और जागृति पैदा करनेका गुण है और इमीने तमासूका रस या धुआँ जठरमें पहुंचनेपर उन ज्ञानतन्तुमें पबलाट मी मच जाती है और इससे भूख लगने जैसा झूठा भान होने लगता है । इनसे तमान्बु सानेवाले पहले साया हुआ अन्न पचाये बिना ही फिर सा लेने है। परिणाम यह होता है कि उनका जठर दिन दिन निर्बल होता जाता है और उन्हें क्रम-क्रमसे अपचका रोग हो जाता है । तंबाकू सूंघनेवालोंकी भी यही दशा होती है। तंबाकूकी एक चुटकी नाकसे चढ़ाते ही दिमागके ज्ञानतन्तु जाग्रत और उत्तेजित हो जाते हैं। इससे तंबाकू सूंघनेवाले मान बैठते हैं कि तंबाकू सूंघनेसे दिमाग शुद्ध रहता है और शरीरमें फुर्ती आ जाती है । ऐसी धारणाका कारण उनकी शरीरविद्यासम्बन्धी अज्ञानता है । परन्तु तंबाकूके विपसे धीरे धीरे उनके ज्ञानतन्तु निर्बल हो जाते हैं, मन्द पड़ जाते हैं और उनको सुस्ती जैसी मालूम होने लगती है। इस सुस्तीको दूर करनेके लिए व्यसनी लोग फिर अपने व्यसनका सेवन करते हैं और ज्ञानतन्तुओंके जाग्रत होनपर उनको मालूम होता है कि तंबाकूमें सचमुच ही शक्ति लानेका गुण है। वे यह नहीं सोचते कि घोड़ा चाबुक मारनेसे तेज जरूर चलने लाता है, पर इससे मजबूत नहीं बल्कि कुछ समयमें अड़ियल हो जाता है। यही दशा तंबाकू, शराब, गांजा, भाँग, अफीम आदिकी भी है । नशा करनेपर ज्ञानतन्तुओंको उत्तेजना पहुँचती है और इससे शक्ति आई हुई मालूम होती है, पर नशा उतरते ही ज्ञानतन्तु फिर सुस्त हो जात हैं और इससे नशेबाज उदास और सुस्त हो जाता है। इस उदासी और सुस्तीको दूर करनेके लिए वह फिर अपने नशेका सेवन करता है-नशेको लाभकारी समझकर सेवनकी मात्रा भी बढाता जाता है और इससे उसका दिमाग दिन-दिन निर्वल होता जाता है। 


जैसे तमान्यूने झूठी भूख लगती है, वैसे ही झूठी प्यास भी लाती है। यह बात सच है कि भोजन पचानेके लिए पानीकी जरूरत होती है; परन्तु घड़ी घड़ी प्यासका लगना रोगकी निशानी है। आरोग्यरखलाफ नियमानुसार सादा भोजन करनेवालोको घडी घड़ी प्यास नहीं लगती। * धात खानेवाले पशु भी घड़ी घड़ी पानी नहीं पीते। वे संबरे या गामको एक बार या कभी कभी दो बार पानी पीते हैं, अन्य समय पानी मिलनेपर भी वे नहीं पीते । गरज यह कि सच्ची प्यास लानेपर पानी पीना और गला सूखनेपर बार बार पानी पीना, इन दोनोंमें बडा अन्तर है। पहले लक्षणसे आरोग्य प्रकट होता है और दूसरेसे रोग । तमासे घड़ी घड़ी प्यास लगती है और पानी पीते रहनेपर भी प्यास बनी ही रहती है । विलायतमें इम प्यासको दूर करनेके लिए बहुतसे लोग शराब पीने लगते हैं + और एक नये व्यसनकी तौल गलेमें पहिन टेते है। 


४-तंबाकू तेज़ जहर है

 तंबाकू का व्यवहार करनेवाले पूछेगे कि तंबाकूमें ऐसी क्या चीज है जिससे उसके सेवनसे रोग हो जाते है ! इस प्रश्नका उत्तर सरल है । अफीम या संखिया खानेसे मनुष्य मर क्यों जाता है ? कारण, अफीम और सखिया जहर हैं। विच्छूके डंक मारनेसे मनुष्य चिल्लाता क्यो है और साँपके काट खानेसे मर क्यों जाता है ? कारण विच्छूके डकमें और सॉपके मुंहमें जहर है। जो वस्तु मनुष्य-शरीरमें अधिक मात्रामें पहुँचनेपर उसके प्राण ले लेती है और न्यून मात्रामें पहुँचनेपर वल, धातु आदिको क्षीण करके रक्तमें दूपण पैदाकर रोगी बना देती है, उसे जहर कहते हैं। तंबाकू भी अफीम या सखियाकी तरह एक प्रकारका जहर है और इस लिए यह भी यदि मनुष्यके शरीरमें जायगा, तो या तो उसे प्राणहीन कर देगा या बीमार बना देगा। बड़े बड़े डाक्टरों, वैद्यो, रसायनशास्त्रियों और वैज्ञानिकोंने सैकड़ो प्रयोगोसे इस बातको साबित कर दिया है कि तंबाकू कोई ऐसा वैसा साधारण जहर नहीं है, यह बड़ा ही तीक्ष्ण और प्राणनाशक विप है । 


अन्य अनेक वस्तुओंके समान तंबाकूका भी अर्क खींचा जाता है। यदि इस अर्कका केवल एक ही बूँद एक साधारण कदके कुत्तेको खिला दिया जाता है, तो वह तत्काल ही मर जाता है और दो बूंदोंसे तो बड़े बड़े कुत्ते मर जाते हैं | छोटे छोटे पक्षी तो तंबाकूके अर्ककी गन्धसे ही मर जाते हैं। डा० मसीने लिखा है कि मनुष्यके साथ रहनेसे जिन्हें तंबाकूका धुआँ सह्य हो गया था ऐसे कुत्तो और बिल्लियोंकी भी जीभोपर दो बूंद अर्क डाल देनेसे वे तीन चार पलमें ही मर गये हैं। डॉक्टर फ्रेंकलिन लिखते हैं कि पानीमें तंबाकूका धुआँ अच्छी तरह मिलनेके बाद उसके ऊपर जो तेल जैसा पदार्थ निकल आता है, उसे एक बिल्लीकी जीभपर चुपड़ दिया गया, तो वह तत्काल ही मर गई । अमेरिकाके इण्डियन लोग तंबाकूके पत्तोंमेंसे तेल निकालकर अपने तीरोंके फलोंपर लगाते हैं । उन तीरोंके शरीरमें घुसते ही आहत मनुष्य या पक्षी विषसे मूर्छित हो जाते हैं और हाथ-पाँव मारकर थोड़ी ही देरमें मर जाते हैं। डाक्टरोंने यह भी निश्चय किया है कि जिस आदमीको तंबाकू खानेका व्यसन नहीं है, यदि उसे कुछ अधिक मात्रामें तंबाकू खिला दी जाती है तो वह मर जाता है । पहले पहल यदि कोई अनम्यस्त लड़का दो तीन बीड़ियाँ एक साथ पी जाता है तो उसका सिर घूम जाता है, मस्तक, चक्कर आने लगता है और जहर चढ़नेके सारे लक्षण शरीरमें दिखाई देने लगते हैं। तंबाकू खानेवाले के बटुएमैसे यदि कभी तुमने सुपारीका टुकड़ा निकालकर खाया होगा, तो तुमको उलटी (1) जैसी हुए बिना न रही होगी। तंबाकूके पत्तोंको भिगोकर पेटपर वाँध देनेसे बहुतोंको खूब के होने लगती है और कितनोंहीके तो इससे प्राण भी चले जाते हैं। सेंटा सेंटील (Santa Santeuil) नामके एक फ्रेंच कविके शराबके प्यालेमें किसी मुर्खने सूंघनेकी तंबाकूकी डब्बी उड़ेल दी, इससे उसकी मृत्यु हो गई ! शराब पीते ही उसके पेटमें असह्य दर्द होने लगा, खूब के हुई और वह चौदह घटेके अन्दर मर गया। 


तंबाकूका व्यसन-मामूली ही क्यो न हो-उससे नुकसान हुए विना नहीं रहता। डाक्टर रशका कहना है कि तंबाकूके साधारण व्यसनसे भी अजीर्ण, सिरदर्द, चक्कर और फेंफड़ेकी बीमारी हो जाती है। यह भी कहते है कि ज्ञानतन्तुओसे सम्बन्ध रखनेवाले जितने रोग होते हैं, उनमेंसे अधिकाश तंबाकू से होते हैं। डाक्टर उडवर्डका कहना है कि तंबाकू से मगजमें रक्त चढ़ जानेका रोग, गला बैठ जानेका रोग, पित्तका उन्माद, क्षय, मृगी, मस्तकपीड़ा, कंप, चक्कर, अजीर्ण, भगंदर और विक्षिप्तता आदि रोग हो जाते हैं। डाक्टर ब्राउन नामके एक और प्रसिद्ध डाक्टरका कहना है कि तंबाकू खाने, पीने या सूंघनेसे चक्कर, सिरदर्द, मूर्छा, पेटमें पीड़ा, निर्बलता, कप, स्वरमें घरघराहट, अस्वस्थ निद्रा, भयानक स्वम, स्वभावमें चिड़चिड़ापन, वायु, मनमें उदासीनता, और कभी कभी विक्षिप्तता भी हो जाती है । इस तरह तंबाकू से न जाने कैसे कैसे और कितने भयंकर रोगोके हो जानेकी संभावना रहती है। छुटपनमें शौकसे या किसीके बताये झूठे लामोके लालचसे लोग तंबाकूकी आदत डाल लेते हैं, परन्तु अनन्तर ऐसे ऐसे रोग हो जानेसे उनका मनुष्य-जन्म निरर्थक सा हो जाता है। कैसे दुःखकी बात है कि हमारे देशके हजारों वालक, लाखों युवा और प्रौढ पुरुष इस तंबाकूके व्यसनके जालमें फंसकर नष्ट हो रहे हैं। जिनके शरीरके सुधारसे, मनके विकाससे, बुद्धिकी उन्नतिसे भविष्यमें देशोनतिकी आशा है, ऐसे हजारों विद्यार्थी इस जहरीली वस्तुका व्यसन डालकर शरीर, मन और बुद्धिको बिगाड़ बैठते है, यह देशके लिए साधारण हानि नहीं है। tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम।


५-तंबाकू से अकालमृत्यु

बोस्टन के प्रसिद्ध डाक्टर एस० कूपरको दिनभर तंबाकू सूंघते रहनेकी आदत थी। इससे उन्हें दिमागकी बीमारी हो गई और उसीमें उनकी अकालमृत्यु हुई। मरनेके वाद देखा गया कि उनकी नाक और दिमागके बीचकी खोखली जगहमें तंबाकू (हुलास ) का एक वड़ासा गोला बनकर अटक रहा है । मस्तिष्कविद्या-( Phrenology ) अर्थात् मस्तक ( सिर ) और मुंहकी आकृति देखकर मनुष्यके गुण-दोपोंकी परीक्षा करनेकी विद्याके धुरन्धर विद्वान् प्रोफेसर नेल्सन साइजरने लिखा है-" आजकल अत्यन्त तन्दुरुस्त और बलवान् दिखाई देनेवाले मनुष्योंकी भरी जवानीमें मृत्यु हो जाना एक साधारण सी बात हो गई है। ऐसे बहुतसे मनुष्योंकी मृत्यु हृद्रोगसे या दिमागमें रक्त चढ़ जानेके रोगसे बतलाई जाती है। परन्तु यदि तुम इन लोगोकी मृत्युके सम्बन्धमें अच्छी तरह छान-बीन करोगे, तो मालूम होगा कि सौमेंसे पंचानवे मनुष्य तंबाकू, काफी या गरम मसालेका बहुत अधिक उपयोग करते थे। हृदय और शरीरके अन्य मुख्य अवयवोंकी सुचारु क्रिया जिन ज्ञानतन्तुओंपर अवलम्बित है, उनको तंबाकू, काफी या गरम मसालेसे बड़ी हानि पहुँचती है और इससे इनका नित्य व्यवहार करनेवालोंके हृदय या मस्तिष्कपर अक्सर एकाएक धक्कासा लगता है। नित्य शरीर अच्छा रहता है, किन्तु एक दिन अचानक ऐंठन या पेटमें शूल होनेसे शरीर खिचने लगता है, हृदयकी क्रिया बन्द हो जाती है, मनुष्य धपसे जमीनपर गिर जाता है और प्रायः उससे एक अक्षर भी नहीं वोला जाता | न्यूयार्क टाइम्सके सम्पादक डिकन्स तथा हेनरी जे० रेमेण्ड और अन्य सैकड़ों मनुष्योंकी मौतें इसी तरह हुई हैं। ऐसे भी अनेक उदाहरण मेरे अनुभवमें आये हैं कि हृदयमें कोई रोगसा या दर्दसा होता हुआ जानकर पहलेसे ही कई लोगोंने तंबाकू और काफी छोड़ दी और उसके बाद १०, २० या ३० वर्ष तक उन्हें कभी वैसा दर्द न हुआ । ब्रुकलिनके बैंकका एक डायरेक्टर बहुत तन्दुरुस्त दिखाई देता था। उसे बीड़ी पीनेकी आदत थी । एक दिन खानेके बाद बीड़ी पीते पीते उसने हाथ फैला दिये, मुंहसे बीड़ी गिर पड़ी, वराण्डेमें चित हो गया और दो मिनटमें उसके प्राण निकल गये।  


tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम पढ़े।  प्रोफसर सलिमेनने येल कालेजके एक तरुण विद्यार्थीका करणाजनक उदाहरण दिया है। वे कहते हैं कि जब वह कालेजमें भरती हुआ था, तब उसका शरीर बहुत ही मजबूत और हृष्टपुष्ट था । परंतु इसके बाद उसे तंबाकूका व्यसन लग गया। वह सारे दिन वीड़ी फूंकने लगा। परिणाम यह हुआ कि थोड़े दिनोंमें ही वह मर गया। बेंगोरकी पाठशालाके प्रोफेसर पोण्डने भी इसी तरह मरे हुए एक दो विद्यार्थियोंके प्रमाण दिये हैं। इस प्रकार तमाखुके व्यवहारसे मनुष्य अपने ही हाथों अपनी हत्या करता है। 


जर्मनीमें वहाँके बड़े बड़े डाक्टरोंके मतसे १५ से २० वर्षकी उम्रके जितने मनुष्य मरते हैं, उनमेंसे लगभग आधे तमाखके व्यसनसे स्मृति और वुद्धिका विगाड़। उत्पन्न हुए रोगोंके कारण मरते हैं। वे स्पष्ट शब्दोमें लिखते हैं कि " तंबाकू से रक्त जल जाता है, और दाँत, आँखें तथा दिमाग बहुत ही खराब हो जाते हैं। अवलोकनसे पता लगा है कि तमाखुके व्यापारियों और बीड़ी बनानेवालोंके चेहरे निस्तेज, फीके और रक्तहीन होते हैं। उनमें विरले ही वुढापे तक जीते हैं। किसानोका अनुभव है कि जिस नमीनमें तंबाकू बोई जाती है वह जहरीली हो जाती है और जमीनका कस और चीजोंके बोनेकी अपेक्षा इससे बहुत अधिक चूसा जाता है। तंबाकूमें नीचे लिखी जहरीली चीजें हैं-कार्वोलिक एसिड, सत्स्यूरेटेड हाईड्रोजेन, प्रसिक एसिड, पिरिडाइन और पिकोलाइन । इनमेंसे कुछ देरमें और कुछ जल्दी ही अपना प्रभाव दिखाते हैं। 


६-स्मृति और बुद्धि का बिगाड़

संक्षेप में मैं तुम्हें बतला चुका हूँ कि तंबाकू खाने, पीने या सूंघनेसे अनेक प्रकारके रोग हो जाते हैं, तथा इन्द्रियोंकी शक्ति शिथिल हो जाती है और शरीरशास्त्रका यह नियम है कि जब शरीर रोगसे विगड़ता जाता है या निर्वल पडता जाता है, तव मानसिक शक्ति -स्मरणशक्ति तथा बुद्धि घटती जाती हैं। अँगरेजों में एक कहावत है A sound body has a sound mind. अर्थात् नीरोग सशक्त मनुष्य की ही मानसिक शक्तियाँ बलवान् होती है, रोगी और अशक्त मनुष्य की नहीं। इसका कारण स्पष्ट है। शरीरके सारे अवयवोंका पोषण, प्रतिदिन बननेवाले नये रक्तसे होता है और हमारे मस्तिष्कका भी पोषण -जिसपर कि सारी मानसिक शक्तियाँ अवलम्बित हैं-शुद्ध रक्तसे ही अच्छी तरह होता है। रोगी मनुष्यकी पचनशक्ति निर्वल पड़ जाती है, इससे नया रक्त बहुत थोड़ा बनता है और जो थोड़ासा बनता है, वह भी अशुद्ध और बलहीन होता है। ऐसा निर्वल और उसपर भी थोड़ा रक्त मगजके पोषणके लिए मिलनेसे मगजका निर्बल होता जाना स्वाभाविक है। निर्वल मस्तिष्कमें बलवान् मानसिक शक्तियोंकी आशा रखना उसी तरह वृथा है, जिस तरह तेलहीन दीपकसे मसालके समान उजेला पानेकी आशा। हम लोगोंके शरीरमें मस्तिष्क बहुत ही उच्च श्रेणीकी शक्तियोवाला, सुकुमार और आश्चर्यजनक अवयव है। हमारे शरीरमें जितना नया रक्त रोज वनता है, उसका छठा भाग मस्तिष्कके पोषणमें खर्च होता है और शेप ५ से अन्य अवयवोका पोपण होता है। मतलब यह कि यदि शरीरमें छः तोले रक्त वनता हो, तो एक तोला मस्तिष्कके पोपणमें और पाँच तोले शरीरके अन्य अवयवोंके पोपणमें खर्च होता है। यह तो हुई नियमित रीतिसे चलनेवाले मनुष्यकी वात, परन्तु यदि कोई मनुष्य अनियमित आचरणवाला हो- अर्थात् मानसिक परिश्रम अधिक करता हो, चिन्तित रहता हो, चिड़चिडा और क्रोधी हो, बहुत अधिक विचार करता हो, खूब थक जाने तक विद्याभ्यास करता हो और किसी दुर्व्यसनमें फँसा हो, तो उसके मगजके पोषणके लिए रक्तका छठा भाग ही बस नहीं है, उसको उसकी मेहनतके अनुसार अधिक रक्तकी जरूरत होती है। तंबाकूके सेवनसे पाचनशक्ति बिगड़ जाती है और इससे इतना पर्याप्त और शुद्ध रक्त तयार ही नहीं होता, जो मस्तिष्कके पोपणमें काम आवे । इससे मस्तिष्क दुर्बल पड़ता जाता है और मानसिक शक्तियाँ निस्तेज होती जाती हैं। 


tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम डाक्टर आलकॉटका कहना है कि तंबाकूके सेवनसे शरीरको अन्य जो जो हानियाँ पहुँचती हैं, उनकी अपेक्षा स्मरणशक्तिकी हानि बहुत अधिक है। मस्तिष्क और ज्ञानतन्तुओके लिए तंबाकूकी सुँघनी सबसे अधिक हानिकारक है । डाक्टर रशका कहना है कि बहुत अधिक तंबाकू सूंघनेके कारण डाक्टर मेसिलॉकके वापकी याददाश्त चालीस वर्षकी अवस्थामें ही नष्ट हो गई थी। सर जान प्रिंगलकी स्मरणशक्ति भी तंबाकू सूंघनेके अधिक व्यसनसे खराब हो गई थी और तंबाकू सूंघना छोड़ देनेपर फिर सुधर गई थी। 


डाक्टर स्टिवन्सन कहते हैं कि तंबाकू से मस्तिष्ककी शक्ति निर्बल पड़ जाती है, समझनेकी शक्ति घट जाती है और स्मरणशक्ति दुर्वल हो जाती है। डाक्टर कलनका कहना है कि ऐसे अनेक उदाहरण मैं दे सकता हूँ कि बुढापा आनेसे पहले ही जिनकी स्मरणशक्ति तंबाकू से नष्ट हो गई है, बुद्धि मारी गई है और ज्ञानतन्तु अतिशय दुर्वल हो गये हैं। 


किन्तु तंबाकूके व्यसनसे केवल शक्ति ही नहीं बिगड़ती, बुद्धिको भी हानि पहुंचती है। डाक्टर स्टिवन्सन कहते हैं कि तंबाकू बुद्धिका नाश करती है। तंबाकू सूंघने, खाने या पीनेसे मस्तिष्क और ज्ञानततुओंको हानि पहुँचती है। गवर्नर सलिवान अपने अनुभवसे कहते हैं कि तंबाकू मुझे जड़ और सुस्त बनानेमें, मेरे विचार-प्रवाहमें वाधक बननेमें और विषयोके विश्लेषण और विचारोके वर्णन करनेकी मेरी मानसिक शक्तिको निर्वल बनानेमें कभी अम्ममतिहरडई । प्रोफेसर हिचकॉकका कहना है कि शराव, अफीम और तंबाकू बुद्धिपर हानिकारक प्रभाव डालती हैं । इद्रियोंको तत्काल हानि पहुँचाती हैं। 


यूरोप और अमेरिकाके अनेक स्कूलों और कालेजोंमें तंबाकू पीनेवाले और न पीनेवाले विद्यार्थियोकी अनेक वार जाँच की गई है, जिससे पता लगा है कि न पीनेवाले ही प्रायः ऊँचे नम्बरोंमें पास हुए हैं तथा पास होनेवालोंमें अधिक संख्या न पीनेवालोकी ही निकली है और फेल होनेवालोंमें पीनेवाले अधिक निकले हैं। इससे स्पष्ट है कि तंबाकू बुद्धिनाशक है। 


मेरे मित्रो, तुमने तंबाकूके व्यसनके फायदे देखे ? जिस बुद्धि और मनके द्वारा जगतके सब कार्य अच्छी तरहसे सम्पन्न किये जा सकते हैं, वही तंबाकूके व्यसनसे बिगड़ जाती है । शास्त्रका वचन है-'बुद्धिनाशात् प्रणश्यति' अर्थात् बुद्धिके नाशसे मनुष्य नष्ट हो जाता है। 

७ आलस्य, गन्दगी, अविवेक और अनीति

 तंबाकू से बुद्धि बिगड़ती है और बुद्धि विगड़नेसे मनुष्यका विनाश होता है, यह पिछले अध्यायमें बताया जा चुका है। अब बुद्धि बिगड़नेसे विनाशकी सभावना किस तरह धीरे धीरे होती है, यह जरा विस्तारके साथ बताया जाता है। बुद्धिके विगड़ जानेका अर्थ है उद्योग, स्वच्छता, और सदाचार आदि उन अच्छे अच्छे गुणोंका नाश हो जाना -जो मनुष्यमें मनुष्यता लाते हैं और जो मनुष्यको सुखी बनाते हैं और उनके बदले आलस्य, अहदीपन, गन्दगी और दुराचरण आदि लक्षणोंका आ जाना, जो मनुष्यको पशुसे भी नीचा बना देते हैं, हजारो प्रकारके दुःख देते हैं और मृत्युके बाद भी उसकी दुर्दशा करते हैं। तंबाकूके व्यसनसे इनके अतिरिक्त और भी दुर्गुण हम लोगोंमें घर करते जाते हैं, इसमें जरा भी सन्देह नहीं। तंबाकूके व्यसनवाले चाहे जितनी शेखी मारें कि तंबाकू से काम करनेकी स्फूर्ति होती है और दूसरोंकी अपेक्षा हम अधिक काम कर सकते है, पर अनुभवसे यही सिद्ध होता है कि तंबाकूके व्यसनमें फंसे हुए लोग बड़े ही आलसी होते हैं, कोई काम करना हो तो तंबाकू खाये, पीये या (धे बिना काममें उनका जी ही नहीं लगता। इसे स्फूर्ति और उद्योग कहें या जड़ता और आलस्य ? तंबाकू खाने-पीनेका व्यसन मनुष्यको जितना जल्द आलसी बना देता है, उतना जल्द कोई दूसरा व्यसन नहीं बनता। तुमने वीमार आदमीको उद्योगी और स्फूर्तिवाला देखा है ? तंबाकूके व्यसनसे जब मंदाग्नि और मस्तिष्कके विविध रोग पैदा हो जाते हैं, तब मनुष्य जी लगाकर शारीरिक या मानसिक परिश्रम कर ही कैसे सकता है । इस प्रकार तन-मनकी निर्बलतासे तंबाकूके व्यसनमें फंसे लोग धीरे धीरे आलसी हो जाते हैं। 


ससारमें आलस्य मनुष्यका एक बड़ा शत्रु है। पहले तो आलस्यसे, गन्दगी बढ़ती है । आलसी लोग चिलमकी राख या वीडीके टुकड़े वाहर न फेंककर घरके भीतर ही डाल देते हैं। घड़ी घड़ी थूकने या नाक छिकरनेके लिए भला कौन जावे ? बाहर घरके भीतर ही वे थूकते छिकरते हैं और इससे घर बहुत गन्दा हो जाता है। यही नहीं तमा२३ तंबाकू से हानियाँ खूके व्यसनसे खासकर तंबाकू खाने या सूंघनेसे मुँह, नाक, दाढी, मूंछ तक मैले रहते हैं। तंबाकू पीनेसे हाथ गन्दे और दुर्गन्धियुक्त रहते हैं। गन्दगी बढनेसे मनुष्य अनीतिमान् हो जाता है। क्यों कि स्वच्छता और नीतिका वहुत गाढा सम्बन्ध है। मन, शरीर और अपनेसे सम्बन्ध रखनेवाली वस्तुओंको स्वच्छ रखना, यह नीतिका प्रधान अग है किन्तु तंबाकूके व्यसनमें फंसे हुए लोग अपने शरीरको और अपनेसे सम्बन्ध रखनेवाली वस्तुओको साफ नहीं रखते और इससे मनकी स्वच्छता भी धीरे धीरे नष्ट हो जाती है । अँगरेजीमें एक कहावत है-Cleanliness is next to Godliness अर्थात् ईश्वरताको प्राप्त करनेकी पहली सीढी स्वच्छता है । अस्वच्छतासे सदाचरणका नाश होता है। 


तंबाकूके व्यसनसे मनुष्यमें असभ्यता और अविवेक आ जाते हैं । दूसरोके सहवासके समय तंबाकू खा-पीकर गन्दगी फैलाना और वायुको-जिसमें लोग साँस ले रहे हैं-जहरीला बना देना क्या असभ्यता या अविवेक नहीं है ? तंबाकूकी पिचकारी चलानेसे या बीड़ीका धुआँ उड़ानेसे पास बैठनेवालोका जी दुखता और उकता उठता है। दूसरोको दुःख पहुंचाना सज्जनताका लक्षण नहीं। नीतिका यह स्पष्ट नियम तंबाकूके व्यसनमें फंसे लोग भूल जाते हैं। इस नियमका भग करना सभ्यताका भंग करना है। सभ्यता और विवेक सदाचरणके स्तभ हैं। जिनमें ये गुण नहीं, वे नीतिमान् नहीं माने जा सकते । 


यही नहीं, डाक्टर स्टिवेसन कहते हैं कि तंबाकू से बहुतसे लोग खासकर अनुभवहीन युवक दुराचारोमें रत हो जाते हैं और इससे उनके तथा उठती हुई सन्तानके स्वास्थ्य, नीति और सुखमें बड़ा व्याघात पहुंचता है। 


८-धर्मवृत्ति और सद्गुणोंका नाश

 यह बतलाया जा चुका है कि तंबाकूके व्यसनसे सदाचार या नीति नष्ट होती है। सदाचार या नीति धर्मका पाया है और इस कारण सदाचारसे नष्ट मनुष्य धार्मिक नहीं हो सकते । योग-साधकोंने योगशास्त्रके आरममें ही तंबाकूका स्पर्श करनेका निषेध किया है । कारण, तंबाकू रजोगुण और तमोगुणको बढाती है और धर्मवृत्तिको नष्ट करती है। प्रायः प्रत्येक धर्ममें तंबाकू जैसे व्यसनोसे दूर रहनेका उपदेश दिया है । मुसलमान धर्ममें तंबाकू पीनेकी छूट नहीं है। मैथोडिस्ट ईसाइयोने तंबाकूका तीव्र विरोध किया था। जॉन इलियट, विलियम पॅन और वास्ली जैसे ईसाई धर्मके उपदेशक भी तंबाकूके कट्टर शत्रु थे। तंबाकू जैसी सदाचार नष्ट करनेवाली और मलिनताको बढ़ानेवाली वस्तुका सेवन करता हुआ मनुष्य यथार्थ धार्मिक नहीं रह सकता । वाहरसे मैला रहनेवाला मनुष्य मनको कैसे स्वच्छ रख सकता है ? सात धातुओंसे बने हुए शरीरको तंबाकूके जहरीले परमाणुओसे अशुद्ध और विपमय बनानेवाला मनुष्य मनके दोषों या मनपर जमे हुए सूक्ष्म मैलको कैसे देख सकता है ? और यदि देख भी सके, तो उसमें उस मैलको दूर करनेकी प्रवृत्ति कैसे पैदा हो सकती है? मनकी अशुद्धि शास्त्रोंमें पाप कही गई है । पापरूप मैलसे भरा हुआ मनवाला तथा विषरूप मैलसे भरा हुआ शरीरवाला व्यसनी मनुष्य अत्यन्त पवित्र, अत्यन्त शुद्ध और सर्वगुणसम्पन्न परमेश्वरपर कैसे प्रीति पैदा कर सकता है । परमेश्वरपर सच्ची प्रीति हुए बिना अचल धर्मवृत्ति नहीं होती। इस नियमसे तंबाकूके व्यसनमें फंसे हुए लोग धार्मिक या धर्मप्रवृत्तिवाले नहीं हो सकते । 


ससारमें जन्म लेने, बड़े होने, पैसा कमाने, सासारिक सुखदुःख भोगने और कोई भी अच्छा काम किये विना मर जानेके लिए यह मनुष्य-योनि नहीं मिली है। कुत्ते भी जन्म लेते हैं, इधर उधरके टुकड़े खाकर मौटे ताजे बनते हैं, दुःख-सुखसे दिन पूरा करते हैं और मृत्यु आनेपर मरते हैं। तव मनुष्य-योनि और पशु-योनिमें अन्तर ही क्या रहा ? पशुओंकी अपेक्षा बुद्धि आदि मानसिक शक्तियों मनुध्यको विशेष मिली हैं। वह पशुओंकी अपेक्षा श्रेष्ठं तभी गिना जाता है, जब कि इन शक्तियोका उपयोग अपने और ससारके कल्याणके लिए पशुओकी अपेक्षा अच्छा करता है। तुमको यदि किसीने साज-सामानसे सजा हुआ सुन्दर बँगला रहनेके लिए दिया हो और उसमें रहकर तुम उसे साफ न रक्खो, उसमें कुत्ते बिल्लियोंको मैला कर जाने दो, कीमती साजसामानकी हिफाजत न रक्खो, हाँडी झाड़ आदि सजावटकी चीजोको तोड़-फोड़ डालो, जगह जगह कूड़े-करकटके ढेर लगा दो, फुलबाड़ीका सत्यानाश कर दो, तो क्या तुम इन कामोके लिए जवाबदार नहीं होगे? इसी प्रकार यदि मनुष्य अपने शरीर-रूपी वॅगलेकी, जो उसे मिला है, हिफाजत न करे, तंबाकूके व्यसनसे रोग और जहररूपी कूड़े-करकटसे उसे गंदा और मैला कर दे, बुद्धि, धर्मवृत्ति आदि मन और हृदयकी ऊँची शक्तिरूपी साज-सामानको नष्ट कर दे, दुष्ट दुर्गुणरूपी कुत्ते-बिल्लियोको उसमें जगह जगह मैला कर जाने दे, अर्थात् मन और शरीरको मैला और पापमय कर दे, ऊँचे सद्गुणरूपी फूलो-फलोंके वृक्षोंको बढ़ने न देकर हृदयरूपी वागमें दुरा२६ धर्मवृत्ति और सद्वणोंका नाश। चाररूपी काँटोके झाड़ उगने और बढ़ने दे, गरज यह कि शरीरका अच्छा उपयोग करनेके बदले उसका मरणपर्यन्त दुरुपयोग करे, तो वह क्या प्रकृति या ईश्वरके निकट जबाबदार नहीं होगा ? अवश्य होगा। मनुष्य-योनि इसलिए नहीं मिली है कि दुर्व्यसनमें फँसकर शारीरिक और मानसिक शक्तियॉ इच्छानुसार विगाड़ डाली जायँ, किन्तु इसलिए मिली है कि उसका अच्छा उपयोग किया जाय। उसका जितना ही अच्छा उपयोग किया जाता है, उतना ही अधिक सुख मिलता है। तंबाकूके दुर्व्यसनियोंको अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियोंको व्यसनद्वारा नष्ट कर डालनेसे जो जो दुःख मिलते हैं, वे सब मैं तुमको बता चुका हूँ। ये सब दुःख एक एक करके आते हैं। आरभमें यह चेतावनी मिलती है कि शरीरको बिगाड़कर तुम ईश्वरी नियमोंको तोडते हो । इस चेतावनीपर यदि तुम ध्यान नहीं देते, तो बड़े बड़े रोगोंके द्वारा चेताबनी मिलती है । इसपर भी यदि नहीं चेतते, तो शरीरके स्थूल दुःखोके उपरान्त सूक्ष्म दुःख सिर उठाते हैं और इसपर भी न चेतनेवाले मनुष्यको अन्तमें आत्मसम्बन्धी दुःख होते हैं, अर्थात् सद्गुण, धर्मवृत्ति आदि परम कल्याणकारक गुणोंका नाश हो जाता है। यह कोई ऐसी वैसी हानि नहीं है। इस हानिके आगे शारीरिक और मानसिक दुःख तो किसी गिनतीमें ही नहीं हैं। परम कल्याणकारक गुणों और धर्मवृत्तिके रक्षणके लिए महापुरुषोंने ऐसे बड़े बड़े शारीरिक और मानसिक दुःख, जो दूसरोंसे सहे न जा सकें, सहे हैं । सद्गुणों और धर्मवृत्तिकी रक्षाके लिए देह, प्राण, धन, विभव, बड़े बड़े राज्य, प्राणसे भी प्रिय स्त्री, पुत्र, कुटुम्बीजन, मित्र और सर्वस्खको तिनकेके समान माना है। अर्थात इन सबके नाशकी परवाह नहीं की है, किन्तु अपने सद्गुणों और धर्मवृत्तिका नाश नहीं होने दिया है। बड़ी बड़ी लालचो और भयोसे भी वे नहीं डिगे हैं। इस प्रकार ससारके महापुरुषोंने जिन सद्गुणों और धर्मवृत्तियोकी रक्षाके लिए बड़े बडे सुखोंको भी छोड़ देना और असह्य संकटोंको भी सहन कर लेना योग्य समझा है और समझते हैं, उन सद्गुणों और धर्मवृत्तियोका मूल्य कितना अधिक होना चाहिए यह तुम सहज ही समझ सकते हो। इस लिए लालचमें पडकर तंबाकूका व्यसन अपने पीछे लगा लेना और सद्गुणों तथा धर्मवृत्तियोंका नाश कर देना, यह कितनी बडी भारी भूल है, इसे सामान्य बुद्धिवाले मनुष्य भी समझ सकते हैं। क्या कोई विचारवान् मनुष्य एक पैसेका लाभ और लाख रूपयेकी हानि करना चाहेगा? कभी नहीं । किन्तु तंबाकूके व्यसनी ऐसा ही करते हैं। 


९-रही सही हानियाँ

इस अध्यायमें मैं उन हानियोंको वतलाना चाहता हूँ, जो तंबाकूके सम्बन्यमें कहनेसे छूट गई हैं। किसी किसी मनुष्यके सिर तथा नाकके भीतरके खोखलेपनमें सूक्ष्म जन्तु होते हैं । वहुतसे डाक्टरोकी राय है कि इन जन्तुओंके होनेका कारण तंबाकू सूंघनेका व्यसन है। वे कहते हैं कि सूंघनेकी सुगन्धित तंबाकूपर मक्खियाँ आदि आकर बैठती हैं और अंडा देती हैं। ये अंडे तंबाकू सूचनेवालेके नाकके द्वारा सिरके खोखलेपनमें चले जाते हैं और उनसे जन्तुओकी उत्पत्ति होती है तथा अनेक प्रशायी यदना हनिकी संभावना रहती है। कहा जाता है कि इसी कारणसे तंबाकू घनेवार को नानूर हो जाता मूठे और नागरिक परिश्रम करने वालों की अपेक्षा मानसिक परिश्रम करने वाले विद्वान् मनुष्यों को या कम शारीरिक परिश्रम करने वाले को तमागले अधिक नुकसान पहुँचता है। 


ल्लिने ही टोग बचपन ने तनाफे व्यमनी होते हैं। उन्हें प्रत्यक्ष में तमाजू ने कोई बड़ी हानि पोनी दुई न देखकर लोग यह अनुमान बाधने हैं कि तमा ने कोई नुकसान नहीं होता । यह ठीक है कि शारीरिक संगठनमें अन्नर होने के कारण अद्भुतसे मनुष्योंको तमासे होनेवाली कोई बड़ी हानि प्रयत्न नहीं होनी, तथापि इससे यह न समझ लेना चाहिए कि उनको तमास घोड़ी भी हानि नहीं पहुँचाती। कोई मेहतर यदि गरीरने पुष्ट दिखाई दे, तो यह न समझ लेना चाहिए कि गन्दगीने धारिमें रोग नहीं होते हैं। रोतकी स्वन्ध हगामें सारा दिन पसीना बहानगाले खेतिहर, मजूर तथा अन्य अधिक शारीरिक परिश्रम करनेवाले तमास्के व्यसनी होनेपर भी, कोई भारी रोगसे पीडित नहीं दिवाई देते। इनका मुख्य कारण सन्छ हवामें सांस लेना और शारीरिक श्रम करना है। स्वच्छ हवा और कसरत तो शरीरमें पैदा हुए रोगोंके लिए गमबाण औषधि है-श्रेठ पौष्टिक दवा है। तमा नबने अधिक हानि विद्यार्थियोंको पहुँचाती है। निर्बल शरीर और निर्बट मस्तिष्क्यालोंके लिए तो यह और भी अधिक भयानक है। 


तमाके व्यसनमें फंसे हुए लोगोंकी सन्तान प्रायः निर्बल होती है और यदि स्त्री और पुरय दोनोंको तमासू खानेका व्यसन होता है, तो उनके बहुधा संतान होती ही नहीं है। इस देशमें स्त्रियाँ प्रायः तंबाकू नहीं पीतीं । पर तंबाकू सूंघनेका व्यसन बहुतसी स्त्रियोमें देखा जाता है । कहीं कहीं स्त्रियाँ तंबाकू खाया भी करती हैं । तंबाकू से होनेवाले नुकसानोंके विषयमें डाक्टर निकोल्स लिखते हैं-"तंबाकू यद्यपि शराब जैसी हानि नहीं पहुँचाती, तथापि वह जीवनका अत्यन्त क्षय करती है। वह खानेकी चीज़ नहीं, किन्तु विष है। किसी भी दवासे जानतन्तुओको लगातार उत्तेजित करते रहना रोगकी नीव डालना है। तंबाकू से सारा शरीर तंबाकूमय हो जाता है। तंबाकू प्रत्येक ज्ञानतन्तुको विपाक्त कर देती है और सतान पैदा होनेमें बाधक वनती है। जहाँ पुरुष और स्त्री दोमेंसे एक ही तंबाकूका व्यसनी होता है, वहाँ यह परिणाम इतना अधिक प्रत्यक्ष नहीं होता, पर जहाँ स्त्री पुरुप दोनो इस व्यसनसे जकड़े होते हैं वहाँ प्रजाकी वृद्धि होना अवश्य रुक जाता है। अमेरिकामें तंबाकूके कारखानोंमें काम करनेवाली स्त्रियाँ प्रायः वंध्या होती हैं। जिस राष्ट्रके स्त्री और पुरुष दोनों -तंबाकू पीते हैं उसकी आवादी घट जाती है, इसलिए तंबाकू शराबसे भी अधिक हानिकर है।" 


समाखूसे विद्यार्थियोंके दिमागको जरा भी लाभ नहीं पहुँचता। डाक्टर निकोल्स कहते हैं कि " शेक्सपिअर, वेकन और पूर्वके सब विद्वान् चाय, काफी अथवा तंबाकूके बिना ही मानसिक कार्य बहुत ही सुन्दरता और उत्तमतासे सम्पादित करते थे, बड़ी बढ़िया बढ़िया कल्पनायें उनके मस्तिष्कसे द्भूत होती थीं। चाय, काफी, तंबाकू ये मनुष्यजीवनके लिए आवश्यक उपकरण नहीं हैं । इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि इनके व्यसनोंसे दूर रहकर हम 


१०-औरों का अपकार

 व्यसनी अपने दुष्ट व्यसनसे अकेले अपने आपका ही नहीं, औरोका भी बिगाड़ करता है। क्योकि प्रत्येक बुरा काम-चाहे वह मनसे किया गया हो, चाहे वचनसे, चाहे शरीरसे, चाहे गुप्त और चाहे प्रकट-सारी दुनियाको नुकसान पहुंचाता है। जगत्रूपी बड़े शरीरका प्रत्येक प्राणी एक एक अवयव है और जिस प्रकार शरीरके प्रत्येक स्थानकी चोट सारे शरीरपर असर करती है, वैसे ही जगत्के एक प्राणीका किया हुआ काम जगत्के सारे प्राणियोको हानि पहुँचाता है। इसलिए ससारमें किसीको भी मनमाना काम करनेका अधिकार नहीं है। ईश्वरकी अच्छीसे अच्छी रचना जो यह शरीर है, अथवा विद्वानोके शब्दोमें जो यह ईश्वरका मन्दिर है, इसे बिगाडनेका किसीको भी अधिकार नहीं है। इसे दुर्गणोसे, दुराचारोसे या व्यसनोसे नष्ट करनेवाले मनुष्य मनुष्य नहीं, विवेक बुद्धि-हीन पशु जैसे हैं, जो अपने मल-मूत्रसे चाहे जैसी अच्छीसे अच्छी जगहको भी बिगाड़ देते हैं। 


पहले तो तंबाकूके व्यसनी अपना शरीर विगाड़ते हैं। इससे उनके सारे शरीरमें जो विप भर जाता है, वह वास, वचा आदिके रास्तोसे बाहर होकर हवामें फैलता है और उस हवामें जो लोग साँस लेते है उन्हें रोगी बनाता है। उनके मल-मूत्र आदिसे रोगोंके कारण बढते रहते हैं । इस तरह दूसरे निर्दोप मनुष्योको वे बिना किसी अपराधके रोगी बनाते हैं। तंबाकूके व्यसनियोका शरीर रोगी होनेसे उनका वीर्य भी लण होता है और इससे उनकी सन्तान तन्दुरुस्त नहीं होती। ऐसे बालकोंका शरीर, मस्तिष्क और रक्त निर्बल होनेसे उनकी आयु थोड़ी होती है और उसे भी वे बडे दुःखोंसे पूरा करते हैं । इसके बाद उन वाटकोंके सयाने होनेपर उनकी भी सन्तान रोगी होती है। पिताके पाप इस तरह पीढ़ी दर पीदी सन्तानमें उतरते आते हैं। 


अक्सर पिता जैते शरीर, मन, बुद्धि, और स्वभाव सन्तानको प्राप्त होते हैं। इमलीके वीजसे इमलीका ही पेड़ होता है, इमलीके ही पत्ते लगते हैं और इमलीके ही फल फलते हैं, मीठे आमके नहीं। इसी तरह आदतका बीज भी पुत्रमें पहुँचता है और प्रायः वही आदत उसकी सन्तानमें भी देखी जाती है। इस आदतका वीज बचपन या युगवस्थामें किसी भी समय अकुरित हो सकता है। आगे New Age 'न्यू एज' नामक अगरेजी पुस्तकसे एक प्रमाण दिया जाता है "एक अंगरेज हररोज आधी रातको नींदमेंसे उठकर एक प्याला चाय पिया करता था। चाय पीनेके बाद वह फिर सो जाता था और सबेरे तक शान्तिपूर्वक सोता रहता था। उसके एक लड़का पैदा हुआ । पैदा होते ही लड़केकी माँ मर गई और कुछ दिनोंमें बाप भी मर गया । इससे उसे अपने काकाके पास रहना पड़ा। अपने काकाके साथ वह हिन्दुस्थान आया। जब वह बीस वर्षका हुआ, तब एक रातको वह एकाएक जाग उठा और उसे बड़ी इच्छा हुई कि मैं एक प्याला चाह पीऊँ। उसने इच्छा रोकनेका यत्न किया, पर नींद न आनेसे आखिरकार वह उठा और चाय तैयार करके पी गया । इसके वाट बिस्तरेपर लेटते ही उसे नींद आ गई। उसके मनपर इस वातका कोई विशेष असर न पडा । परन्तु दूसरे दिन रातको वह फिर जाग पड़ा और उसे फिर चाय पीने की इच्छा हुई। आखिर उसने फिर चाय पी और चाय पीते ही वह सो गया। दूसरे दिन जब उसने यह बात अपने काकासे कही, तब उसने बताया कि तेरे वापको भी आधी रातको सोतेसे उठकर चाय पीनेकी आदत थी और वह लगातार वीस वर्ष तक रही थी। अब तक इस लड़केको अपने वापकी उक्त आदतकी बिलकुल खबर न थी । आगे तीसरे चौथे दिन भी उसका यही दशा हुई और इस तरह उसे प्रति दिन आधी रातको उठकर चाय पीनेकी आदत पड़ गई। अनन्तर वह विलायत लौट गया । वहाँ उसकी शादी हुई और उसे एक लड़का पैदा हुआ। लड़केकी उम्र छः वर्षकी होनेपर पिता मर गया। इस छः वर्षके लडकेको भी अपने बाप या दादाके इस तरह चाय पीनेकी जरा भी खवर न थी। फिर भी, जब वह लडका जवान हुआ, तब एक दिन वह भी आधी रातको जाग पडा और चाय पीनेकी प्रबल इच्छा होनेसे उसने चाय पी | इस प्रकार नित्य आधी रातको सोतेसे उठकर चाय पीनेकी उसे भी आदत पड़ गई।" 


यदि इसी प्रकार पिताका शराव, गाँजा, तंबाकू या अफीमका व्यसन पुत्रमें भी आ जाय, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? इस प्रकार व्यसनी मनुष्य केवल अपने आपको ही नहीं, वरन् भावी पीढियोको भी हानि पहुँचाता है। क्या तुम इस पाप या दोपको छोटा मानते हो ? 


आजकल हमारे देशके भिन्न भिन्न स्थानोमें प्लेगका प्रकोप रहता है। कहा जाता है कि इस रोगके उत्पादक एक प्रकारके सूक्ष्म जन्तु होते हैं, जो मनुष्यके शरीरमें प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं। आरोग्यशास्त्रका नियम है कि रोगोंका हमला उन मनुष्योपर अधिक होता है, जिनके शरीरका रक्त बिगड़ा हो, जिनकी पाचनशक्ति दुर्वल हो गई हो, जिन्हें दस्त साफ न आता हो और जो कमजोर हो गये हों। इसके विरुद्ध आरोग्यशास्त्रके नियमोंके अनुसार आचरण करनेवाले स्वस्थ लोगोपर रोगोंका आक्रमण वहुत ही कम होता है। व्यसनोसे मनुष्य अशक्त हो जाता है और इसीसे उसे रोगोका शिकार वनना पडता है। शायद अब तुम यह प्रश्न करोगे कि यदि नीरोगी मनुष्योपर रोगोका हमला नहीं होता है, तो तुम व्यसनियोंपर ही सारे ससारमें रोग फैलानेका दोष क्यों महते हो। इसका उत्तर यह है कि व्यसनरहित मनुष्य भी आरोग्य शास्त्रके जिन नियमोको भङ्गकर अपने शरीरको ऐसा बना लेते हैं कि रोग उन्हें सहज ही अपना शिकार बना सकते हैं, व्यसनी भी उन नियमोको तोडकर तन्दुरुस्ती बिगाड़ लेते हैं और साथ ही व्यसनके कारण उनके शरीर बहुत ही अधिक क्षीण हो जाते हैं और तब उन्हें रोग अधिक धर दबाते हैं। व्यसनी और नियंसनी मनुष्यकी तुलना घास और लकड़ीसे की जा सकती है। आगकी चिनगारी पड़ते ही घास एक दम जल उठती है और तब पास पड़ी हुई लकड़ीको भी जलाने लगती है। यही नियम व्यसनी और निर्व्यसनी मनुष्योंपर लागू होता है । रोग पहले व्यसनी मनुष्यको पछाड़ता है और तब उसके ससर्गमें रहनेवाले निर्व्यसनी मनुष्य भी उस रोगके शिकार बन जाते हैं। 


प्लेग, हैजा आदि छूतके रोग पहले मनुष्यके शरीरमें ही पैदा होकर वाहर फैलते है और फिर अनुकूल स्थान पाकर वढ़ते जाते हैं। रोगोंके न जाने कितने कारण मनुष्य-गरीरके दुष्ट मलमें तथ उच्छ्वास, पसीना, मूत्र आदि शरीरसे बाहर निकलनेवाले रोगयुक्त स्थूल तथा सूक्ष्म परमागुओमें छुपे रहते हैं और ये सब कारण अधिकाशमें व्यसनों और दुराचारोंसे ही उत्पन्न होते हैं। ये परमाणु उन व्यसनियोंके शरीरमेंसे जितने वाहर फैलते हैं, उतने दूसरे स्थानोंसे शायद ही फैलते हों और इस तरह यदि हम व्यसनियोके शरीरको रोगोंका उत्पादक और पोपक कहें, तो अतिशयोक्ति न होगी । कारण उन्हीके शरीरमें रोगोंकी उत्पत्ति होती है, वहीं उनका पोषण होता है और उन्हींके शरीरमेंसे निकलकर रोग संसार भरमें फैल जाते हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि व्यसनी ही अनेक प्रकारके रोगोंके पिता हैं और उन्हींके कृपाप्रसादसे हजारों प्राणी रोगोंके शिकार बना करते हैं। 


तंबाकूके व्यसनसे वीमारियाँ ही नहीं फैलती हैं, और भी बड़ी वड़ी हानियाँ होती हैं । इससे देशको दुष्काल और भूखो मरनेकी भयकर आपत्तिका सामना करना पड़ता है । देशकी सम्पत्ति घटती है, निर्धनता वढती है, मनुष्यकी आयुका यथेष्ट उपयोग नहीं होता, और कभी कभी निर्दोष मनुष्योको हजारो लाखों रुपयोंका नुकसान पहुँच जाता है । ऐसा कोई रोग नहीं, ऐसा कोई महाभयंकर सकट नहीं, जिसके सीधे अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे व्यसनी अर्थात् ईश्वरके नियमोको तोड़नेवाले मनुष्य कारण न हो । दुःख पापका फल है और ईश्वरके नियमोका पालन न करना ही पाप है । व्यसन ईश्वरीय नियमोंके विरुद्ध हैं, इसलिए पाप हैं और व्यसनसे जो आपत्तियाँ आती हैं वे उसका फल हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं । 


ससारमें तंबाकूकी खपत बहुत अधिक है और इस लिए लाखो नहीं करोड़ो मनुष्य तंबाकू पैदा करने और उसका व्यापार करनेमें कमर कसे रहते हैं । इन सबके प्रयत्नका फल क्या है ? देवताओ और दैत्योंने समुद्रको मथकर जैसे हालाहल नामका महाभयकर विप निकाला था, औगेका अपकार। जिसके विपले प्रभारले सारी पृथ्वीका नाश होने लगा था, वैसे ही करोड़ों मनुष्योंके प्रयनका फल यह हालाहाल तंबाकू है, जो हजारो छोटे बड़े रोगोंको टत्पन्न करती है, बड़ी बड़ी प्लेग हैजा जैसी बीमारियोको फैलाती है और सद्गुणोका नाश करके दुराचारका प्रचार करती है । 


तंबाकू पैदा करनेमें जो जमीन और मेहनत लगाई जाती है, वह यदि अनाज पैदा करनेमें लगाई जाती, तो आज ससारमें अनाज बहुत सस्ता होता और यह असख्य गरीब मनुष्योको-जिनको भरपेट सानेको नहीं मिटना-यानेको मिलता और भूखों मरनेकी आपत्ति घट जानी । ममस्त पृनीमें कितनी जमीनमें तमासूकी खेती होती है, इसके जाननेका कोई माधन नहीं, अर्थात् देशको या ससारको इससे कितनी हानि पहुँचती है, इसका ठीक ठीक हिसाब निकाला नहीं जा सकता; चिन्नु मान लो कि हिंदुस्तानमें कममे कम दस लाख बी जमीनमें तंबाकू बोई जाती है । इस जमीनमें यदि अनाज बोया जाय, तो वर्षमें तीन चार पैदा होनेसे हरेक धीमें बीस बीस मन अनाज पैदा हो और इस प्रकार दस लास बीचे जमीनमें दो करोड़ मन अनाज पैदा हो और इसमे अनाजका संकट कम हो जाय । प्रति दिन एक सेर और सालमें ९मन अनाज एक मनुष्यके उदरपोपणके लिए पर्याप्त है । सो इस दो करोद मन अनाजसे कोई वीस लाख मनुष्योंका भरण-पोपण सालभर हो मस्ता है। ३० करोड मनुष्योमेंसे यदि ५ करोड़ मनुष्य भी बीड़ी पीते हों और प्रत्येक मनुष्य एक महीनेमें केवल एक ही दियासलाई खर्च करता हो, तो सालमें साठ करोड़ दियासलाइयाँ इस काममें फँक दी जाती हैं, जिनका मूल्य प्रति दियासलाईका मूल्य दो पाई गिननेसे ६२ लाख रुपया हो जाता है और यह प्रायः सारा ही रुपया व्यर्थ ही विदेशोको चला जाता है। एक आदमी यदि केवल एक पैसे रोजकी बीडी या तंबाकू पीता है, तो सालमें इस व्यसनके लिए वह ६ रुपया खर्च कर डालता है और यदि उसकी जिन्दगी ४० वर्षकी गिनी जावे, तो वह अपने जीवन में लगभग ढाई सौ रुपया तंबाकू देवीके चरणोमें अर्पण कर देता है, जब कि अपने कुटुम्बियोको वह एक एक पैसेके लिए तरसाता है और बाल-बच्चोंकी दवा-दारूमें एक रुपया खर्च करना भी उसके लिए भारी होता है। इस तरह इस तंबाकूके दुर्व्यसनसे देशका करोडो रुपया प्रतिवर्ष व्यर्थ व्यय होता है और इससे देश निर्धन बनता जा रहा है । 


अतएव जैसे वन तैसे इसे छोड़ देनेका यत्न करना चाहिए । इस यत्नमें तुम्हारा मन कमजोरी दिखायेगा, वह अपने निश्चयसे हट जानेके बहुतसे मौके पावेगा; पर तुम्हें चाहिए कि तुम शूरवीरकी तरह अटल रहो और इसे छोड़कर ही चैन लो । यदि छोड़नेका सकल्प करके तुमने एकाध बार भी मनकी निर्वलताके कारण इसका सेवन कर लिया, तो निश्चय जानना कि तुम फिर मनकी प्रबल इच्छाको न रोक सकोगे । पर यदि एक बार मनको दबा लोगे, तो दुवारा दबानेमें उतनी कठिनता न पड़ेगी और इस प्रकार दृढ़ निश्चयसे तंबाकूका व्यसन छूट जायगा । डाक्टर केलागका कथन है कि 'तंबाकूका व्यसन एक बारगी छोड़ना चाहिए। क्रम क्रमसे छोड़नेमें सफलता प्राप्त नहीं होती। एक बारगी छोड़ देनेसे कोई हानि नहीं होती, उल्टे प्रक्रिया साक्षरती है और समग्र शरीरकी तन्दुरुस्ती बढ़ती है।" 

tambaku sevan ke dushparinam समाप्त। 

tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम tambaku sevan ke dushparinam / तम्बाकू सेवन के दुष्परिणाम Reviewed by Swati Gandhi on January 11, 2021 Rating: 5

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