श्रवण कुमार की कथा

मातृपितृ भक्त श्रवणकुमार

श्रवणकुमार एक वैश्यकुमार था। इसके माता-पिता दोनों ही नितान्त वृद्ध और नेत्र से अन्धे थे। बुढ़ापे में उन दोनों का तीर्थाटन करने का विचार हुआ। श्रवणकुमार अपने माता-पिता की सेवा ही अपना परम कर्तव्य मानता था। इसलिए वह माता और पिता को बहँगी पर बैठाकर तीर्थों में भ्रमण कराने के लिए घर से निकल गया और वनों में पर्यटन करना प्रारम्भ किया।


इस प्रकार वह एक वन से दूसरे वन में घूमता हुआ तमसा नदी के तट पर आया और वहीं निवास करने लगा। संयोगवश उसी वन में अयोध्या के राजा दशरथ एक बार शिकार करने के लिए आए। वे शिकार करते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़कर रास्ते को छोड़ तमसा नदी के किनारे पहुँच गये।

इधर उसी समय श्रवणकुमार के माता-पिता को प्यास लगी। तब वह उन दोनों की प्यास को बुझाने के लिए पानी लाने के लिए तमसा के तट पर  गया। वहाँ जाकर उसने जब पानी में प्रवेश किया और लोटे में पानी भरने लगा तब पानी में बुड़बुड़, बुड़बुड़ आवाज होने लगी। उस आवाज को सुनकर राजा दशरथ ने समझा कि कोई जानवर पानी पी रहा है। इसी से  ऐसी आवाज हो रही है।

राजा दशरथ शब्दवेधी-बाण विद्या में अत्यन्त निपुण थे। उन्होंने उसी बुड़बुड़ शब्द को लक्ष्य करके तुरन्त बाण छोड़ा। किन्तु वहाँ तो कोई जानवर था ही नहीं। इसलिए वह बाण श्रवणकुमार के शरीर में लग गया और श्रवण हा हा करके पृथिवी पर गिर पड़ा। तब जानवर के स्थान पर मनुष्य की वाणी सुनकर दशरथ को महान आश्चर्य हुआ। वे तुरन्त दौड़ते हुए नदी के तट पर पहुँचे। वहाँ वे बाण से घायल श्रवण को पृथिवी पर गिरा हुआ देखकर अत्यन्त दुःखित हुए। वे श्रवण को उठाकर और गोद में लेकर उसका परिचय पूछने लगे।

श्रवण ने अपना परिचय देकर कहा-'राजन् ! मेरी अपनी मृत्यु का कोई दुःख नहीं है। लेकिन मेरे माता-पिता वृद्ध और अन्धे हैं और इस समय वे दोनों प्यासे हैं। इसलिए आप उन दोनों को पानी पिलाइए। वे प्यास से व्याकुल मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे।' राजा ने इस हृदयविदारक वचन को सुनकर महान कष्ट का अनुभव करते हुए फिर श्रवण से पूछा। कहो बालक! दूसरी कौन तुम्हारी अभिलाषा है जिसको मैं पूरा करूँ? श्रवण बोला मेरी दो ही अभिलाषायें हैं। एक तो अभिलाषा यह कि आप मेरे वृद्ध और अन्धे माता-पिता की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करें तथा दूसरी अभिलाषा यह कि आप आज से कभी भी वन के जानवरों की हत्या न करें। इतना वचन कहते हुए श्रवणकुमार का गला रुद्ध हो गया और कुछ ही क्षणों में उसने इहलीला को समाप्त करके अपने प्राण असमय में ही छोड़ दिए।

उसके बाद राजा दशरथ कमण्डलु में पानी लेकर श्रवण के माता पिता के पास पहुंचे। उस समय प्यास से व्याकुल वे दोनों श्रवण का नाम लेकर उसको बुला रहे थे। उस समय किसी के आने का सङ्केत पाकर "वत्स श्रवण'' इस प्रकार वे दोनों बोले। लेकिन उस समय श्रवण कहा! राजा धीरे से उन दोनों के पास जाकर "लीजिए यह पानी" ऐसा बोले। यह शब्द श्रवण का नहीं है ऐसा जानकर वे दोनों पूछे-कौन आप, हम दोनों को पानी दे रहे हैं। राजा ने उस समय अत्यन्त लज्जित और दुःखित होकर सब वृत्तान्त सुनाया।

उस समय उन दोनों के ऊपर वज्रपात ही पड़ गया। वृद्ध अवस्था। नेत्र से अन्धे । वन में निवास। वहाँ भी अकस्मात् बाण से मरे पुत्र का वियोग। ऐसी अनर्थ परम्परा! इस समय कौन पानी लेता है और कौन पीता है। दोनों ही व्याकुल होकर छाती पीटते हुए राजा से बोले-राजन्! तुम्हारे कारण ही पुत्र-शोक से पीड़ित हम दोनों इस समय प्राण छोड़ रहे हैं। इसलिए तुम भी पुत्र-शोक से प्राण छोड़ोगे।"

उस समय तक राजा दशरथ को कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए उन दोनों का श्राप भी राजा दशरथ के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ। उनके चार पुत्र हुए किन्तु शाप के कारण राम के वियोग से उनके भी पुत्र-शोक में ही प्राण गए, यह कथा प्रसिद्ध ही है।

त्रेतायुग की यह कथा बहुत पुरानी है। किन्तु श्रवणने अपने माता-पिता की जो अपूर्व सेवा की और जिस प्रकार उसने उन दोनों की सेवा में ही अपने प्राण छोड़े, उसका आज भी सैकड़ों कण्ठ से सब जगह गान होता है और श्रवण का नाम माता-पिता की भक्ति के विषय में जगत में अमर हो गया।

श्रवण कुमार की कथा श्रवण कुमार की कथा Reviewed by Chandra Sharma on October 29, 2020 Rating: 5

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