आदिकवि वाल्मीकि।
बालकों! क्या तुम लोग जानते हो कि संसार के सभी कवियों में कौन कवि आदि कवि माना जाता है और कौन सा काव्य आदिकाव्य कहा जाता है? ये ही महर्षि वाल्मीकि संसार के सभी कवियों में आदि कवि माने जाते हैं और इन्हीं के द्वारा विरचित 'श्रीमद्रामायण काव्य" आदिकाव्य कहा जाता है।
इस प्रकार की इनकी कथा सुनी जाती है। ये वाल्मीकि अपनी युवावस्था में बहुत क्रूर स्वभाव के तथा निर्दयी थे। ये वनेचरों के साथ घूमते हुए हमेशा दूसरों का धन लूटते थे, दूसरों के प्राणों को पीडित करते थे, पशुओं और पक्षियों को मारते थे तथा उन्हीं के मांस से अपना पेट भरते थे और अपने परिवार को पालते थे। यही उनका दैनिक काम था। कैसा था उनका यह निन्दनीय और घृणास्पद जीवन!
एक बार वन में घूमते हुए वाल्मीकि को कुछ महर्षि मिले। । उनको देखकर वे उनको भी मारने के लिए प्रवृत्त हुए। उसके बाद वे महर्षि उनसे बोले-अरे, शिकारी ! तुम प्रतिदिन पाप करके अपने कुटुम्ब का पालन करते हो। किन्तु जब तुम इस पाप का फल भोगोगे तब तुम्हारा कुटुम्ब भी क्या उस फल को भोगने के लिए तैयार होगा?
शिकारी बोला-अवश्य होगा। ऋषि बोले-घर जाकर अपने कुटुम्ब से पूछो। तब शिकारी ने घर जाकर अपने कुटुम्बियों से पूछा। तब उसके कुटुम्बी लोगों ने कहा-हम लोग तुम्हारे द्वारा उपार्जित धन के फल को भोगेंगे किन्तु पाप के फल को नहीं भोगेंगे, यह सुनकर शिकारी निराश और दुःखित होकर ऋषियों के पास आया और पूरा वृत्तान्त सुनाया। उसके बाद ऋषियों ने शिकारी को समझाया! मूर्ख! तुम जो पाप के कर्म करते हो उनका फल तुम अकेले ही भोगोगे और बहुत बड़ा कष्ट पाओगे। इसलिए आज से यह सब चोरी करना, लूटना, किसी को पीड़ा पहुँचाना और प्राणियों को मारना, छोड़कर पुण्य कर्मों को करो। दुर्जनों की सङ्गति छोड़कर सज्जनों की सङ्गति.करो। मांस छोड़कर कन्द, मूल फल इत्यादि खाओ। भगवान का भजन करो। महात्माओं की सेवा करो। राम नाम का जप करो तथा सब प्राणियों पर दया करो। इन्हीं कर्मों से तुम्हारा पापों से उद्धार होगा, सभी प्रकार का कल्याण होगा और अन्त में भगवान की प्राप्ति होगी।
ऋषियों के इन उपदेशमय वचनों को सुनकर शिकारी के हृदय में पद्बुद्धि का उदय हुआ। उसने सभी पाप के कर्मों को छोड़कर उसी दिन से नमसा नदी के तीर पर आश्रम बनाकर तपश्चर्या करना आरम्भ किया। उसके बाद कुछ समय में वह तप और ज्ञान के प्रभाव से महर्षि हुआ।
एक बार इस महर्षि ने अपने आश्रम के पास घूमते हुए एक शिकारी द्वारा मारे जाते हुए क्रौञ्चपक्षियों के एक जोड़े को देखा। इसे देखकर शोक से पीडित महर्षिके मुख से अकस्मात् एक श्लोक निकला। (वह श्लोक यह था-)
अरे निषाद! तुमने क्रौंच पक्षी के इस मिथुन-जोड़े में से एक को, जो काम सुख में विभोर था, मार डाला। इसलिए तुम अपने जीवन में अनन्त काल तक कभी भी स्थिरता और शान्ति से जीवित नहीं रहोगे।
तब वाल्मीकि को कविता के निर्माण में समर्थ देखकर ब्रह्माजी उनके पास आकर बोले-महर्षि! काव्य के निर्माण में तुम समर्थ हो। इसलिए राम की कथा लिखो। उसके बाद वाल्मीकि ने महर्षि नारद के सहयोग से राम की कथा को जानकर "रामायण" नाम के महाकाव्य की रचना की। इसीलिए ये आदिकवि कहे जाते हैं और रामायण आदि महाकाव्य कहा जाता है।

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