गुरुभक्त आरुणि
प्राचीन समयमें एक धौम्य नामके महान ऋषि थे। उनके आश्रममें बहुत से ब्रह्मचारी विद्याभ्यास करते थे। उन ब्रह्मचारियों में तीन ब्रह्मचारी विशेष रूप से बुद्धिमान तथा गुरुभक्त थे। आरुणि, उपमन्यु तथा वेद उनके नाम थे।
*
एक बार आचार्य धौम्यके खेत में सिंचाई के लिए पानी चलाया जा रहा था। वहाँ कभी खेत का एक बाँध टूट गया। बाँध के टूट जाने पर पूरा पानी खेत से बाहर जा रहा है, यह सुनकर महर्षि धौम्यने आरुणि से कहा। वत्स आरुणि! खेत में बाँधके टूट जाने से समूचा जल खेत से बाहर निकल रहा है। इसलिए जल्दी जाओ। बाँध बाँधो। पानी रोको। नहीं तो बहुत बड़ी हानि हो जायगी।
*
आचार्य का आदेश सुनकर आरुणि उसी समय खेत पर चला गया। बाँध को बाँधने के लिए प्रयत्न करना शुरु किया। बहुत से उपाय किये। किन्तु उसका सब प्रयत्न व्यर्थ हो गया। पानी का वेग बहुत तेज था। इसलिए वह अकेले पानी को रोकने में सफल नहीं हुआ।
*
तब आरुणि सोचने लगा। अब क्या करूँ? कैसे बाँध बाँधू? जल के प्रवाह को कैसे रोकूँ ? पानी को रोकने के लिए गुरु की आज्ञा है। तब यह काम किए बिना आश्रम में कैसे जाऊँगा? इसलिए मैं ही बाँध पर सोकर अपने शरीर से पानीको रोकता हूँ। ऐसा सोचकर वह वहीं सो गया और अपने शरीर से पानी को रोक दिया। इस उपाय से जब उसकी इच्छा सफल हो गयी तब उसके मन में महान आनन्द हुआ।
*
फिर भी सन्ध्या हो गयी। चारो ओर अन्धेरा छा गया। परन्तु आरुणि आश्रम पर नहीं लौटा। इस कारण महर्षि धौम्य के मन में महती चिन्ता हुई। उन्होंने शिष्यों से पूछा-आरुणि कहाँ है? वे बोले। आचार्य! सुबह ही आपने उसको पानी रोकनेके लिए खेत पर भेजा। उस समय से हम लोगों ने उसको आश्रम में नहीं देखा। इसलिए उसे वहीं होना चाहिये।
*
यह सुनकर शिष्यवत्सल महर्षि बहुत विकल हुए। वे तुरत आरुणि को खोजने के लिए शिष्यों के साथ खेत की ओर चल दिये।
किन्तु वहाँ उन्होंने आरुणि को न देखकर उसे ऊँचे स्वर से बुलाया आरुणि! वत्स आरुणि, कहाँ हो? क्या कर रहे हो?
*
आरुणि गुरु का वचन सुनकर बोला-गुरुजी ! मैं यहीं खेत में स्वयं बाँध बनकर लेटा हुआ हूँ। उसके वचन को सुनकर गुरुजी स्वयं उसके पास गये। वहाँ उसको खेत में उस प्रकार पड़े हुए देखकर उनके मन में महान आश्चर्य हुआ। वे उसकी इस अलौकिक गुरुभक्ति को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उस समय उसका "उद्दालक" नाम रख दिया। उसके बाद गुरु के आशीर्वाद से आरुणि थोड़े समयमें ही सभी विद्याओं में पारङ्गत होकर "उद्दालक ऋषि" इस नामसे प्रसिद्ध हुआ।
गुरुभक्त आरुणि की प्रेरणादायक कहानी
Reviewed by Chandra Sharma
on
October 29, 2020
Rating:

No comments: