चाणक्य नीति - किसी का भी स्वभाव हंस के जैसा नहीं होना चाहिए...

किसी का भी स्वभाव हंस के जैसा नहीं होना चाहिए...
घर-परिवार और समाज में हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए, हमें अन्य लोगों के साथ कैसे रहना चाहिए, हमारा रिश्ता कैसा हो? इस संबंध आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-

यत्रोदकस्तत्र वसन्ति हंसा स्तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यं पुनस्त्यजन्त: पुनराश्रयन्त:।।


जिस स्थान पर जल रहता है हंस वही रहते हैं। हंस उस स्थान को तुरंत ही छोड़ देते हैं जहां पानी नहीं होता है। हमें हंसों के समान स्वभाव वाला नहीं होना चाहिए।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी भी अपने मित्रों और रिश्तेदारों का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। जिस प्रकार हंस सूखे तालाब को तुरंत छोड़ देते हैं, इंसान का स्वभाव वैसा नहीं होना चाहिए। यदि तालाब में पानी न हो तो हंस उस स्थान को भी तुरंत छोड़ देते हैं जहां वे वर्षों से रह रहे हैं। बारिश के बाद तालाब में जल भरने के बाद हंस वापस उस स्थान पर आ जाते हैं। हमें इस प्रकार का स्वभाव नहीं रखना चाहिए। हमारे मित्रों और रिश्तेदारों का सुख-दुख हर परिस्थिति में साथ नहीं छोडऩा चाहिए। एक बार जिससे संबंध बनाया जाए उससे हमेशा निभाना चाहिए। हंस के समान स्वार्थी स्वभाव नहीं होना चाहिए।
चाणक्य नीति - किसी का भी स्वभाव हंस के जैसा नहीं होना चाहिए...  चाणक्य नीति - किसी का भी स्वभाव हंस के जैसा नहीं होना चाहिए... Reviewed by Naresh Ji on March 01, 2022 Rating: 5

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