जानिए, अच्छाई और बुराई में वास्तविक अंतर क्या है
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
(श्री रामचरित. सुं.कां.: 39.3)
अच्छाई-बुराई सबके अंदर छुपी है। अच्छाई को बढ़ाते जाओ तो बुराई भाग जायेगी। बुराई को बढ़ाते जाओ तो अच्छाई भागेगी नहीं, अच्छाई दबी रहेगी क्योंकि परमात्मारूपी तुम्हारा मूल स्वरूप अच्छाई से भरा है। जीव कितना भी पापी, पामर हो जाय फिर भी उसके अंदर से अच्छाई नष्ट नहीं होती। बुराई मिथ्या है, अच्छाई वास्तविकता है। कितना भी बुरा आदमी हो उसमें कुछ-न-कुछ अच्छाई रहेगी ही, अच्छाई को नष्ट नहीं कर सकता कोई। अच्छाई ईश्वरत्व है और बुराई विकार है।
विकार की जिंदगी लम्बी नहीं है। भगवान शाश्वत हैं, विकार शाश्वत नहीं हैं। आप सतत दो-चार घंटे क्रोधी होकर दिखाओ, चलो एक घंटा ही क्रोधी होकर दिखाओ, नहीं हो सकता। दो घंटे आप सतत कामी होकर दिखाओ, नहीं हो सकता।
कामविकार के समय में दो घंटे आप उसी भाव में नहीं रह सकते, क्रोध में दो घंटे नहीं रह सकते लेकिन शांति में आप वर्षों तक रह सकते हैं, आनंद में वर्षों तक रह सकते हैं। आनंद तुम्हारी असलियत है, अमरता तुम्हारी असलियत है, सज्जनता तुम्हारी असलियत है, पवित्रता तुम्हारी असलियत है क्योंकि तुम परमात्मा के वंशज हो, विकारों के वंशज नहीं हो बिल्कुल पक्की बात है। विकार धोखा है, आने-जानेवाला है। काम आया तुम कामी हो गये, काम चला गया तुम शांत। क्रोध आया तुम क्रोधी हो गये, क्रोध चला गया तुम वही-के-वही, मोह आया तुम मोहित हुए फिर तुम वही-के-वही, चिंता आयी तुम चिंतित हो गये फिर तुम वही-के-वही। तुम शाश्वत हो ये आने-जानेवाले हैं, इनका गुलाम क्यों मानते हो अपने को? अपनी असलियत को जान लो कि आप वास्तव में कौन हो, आपका वास्तविक स्वरूप क्या है, आप कितने महिमावान हो, आप कितने धनवान हो। आप अपनी महिमा को नहीं जानते इसीलिए परेशान रहते हो। सात्त्विक साधना और अपने दिव्य आत्मस्वभाव के प्रभाव को आप नहीं जानते।
यह जानते हुए भी कि परिस्थितियाँ सदा एक जैसी नहीं रहती हैं, आप परिस्थितियों के गुलाम हो जाते हो।
मानव तुझे नहीं याद क्या तू ब्रह्म का ही अंश है।
कुल-गोत्र तेरा ब्रह्म है, सद्ब्रह्म का तू वंश है॥
संसार तेरा घर नहीं, दो चार दिन रहना यहाँ।
कर याद अपने राज्य की, स्वराज्य निष्कंटक जहाँ॥

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