मिट्टी के बर्तनों में क्यों खाना चाहिए और पकाना चाहिए

मिट्टी के बर्तनों में क्यों खाना चाहिए और पकाना चाहिए

* मिट्टी के पात्र के उपयोग के फायदे: मिट्टी पवित्र होती है। इसके साथ मिट्टी वैज्ञानिक भी होती है, क्योंकि; हमारा शरीर मिट्टी से बना है। हम जब मरते हैं और शरीर को जला देते है, तब 20gm मिट्टी में हमारा शरीर बदल जाता है। यदि इस राख का परीक्षण कराते है। तो उसमें कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, आयरन, सल्फर ऐसे 18 माइक्रोन्यूट्रिएंट्स निकलते हैं, एक मरे हुए आदमी की राख में। यह वही 18 माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो एक मिट्टी में भी होते हैं।
      मिट्टी पवित्र होती है और माइक्रोन्यूट्रिएंटस से भरपूर भी। इसलिए पुराने समय में भारत में मिट्टी की हांडी में ही दाल को पकाया जाता था। मिट्टी की हांडी में दाल को पकाने से दाल का एक भी माइक्रो न्यूट्रिएंटस कम नहीं होता और वही दाल अगर प्रेशर कुकर में बनाते हैं, तो उसके अधिकतर माइक्रोन्यूट्रिएंट्स मर जाते हैं। जैसे- यदि अरहर की दाल को  प्रेशर कुकर में पकाते है, तो उसके 87% माइक्रोन्यूट्रिएंट्स खत्म हो जाते हैं, सिर्फ 13% ही बचते हैं। उसका कारण यह होता है कि प्रेशर कुकर खाने के ऊपर दबाव बनाता है। जिससे उसके माइक्रोन्यूट्रिएंट्स नष्ट हो जाते हैं। खाना टूट जाता है और उसके मोलिकूल्स टूट जाते हैं। कुकर में दाल पकती नहीं बल्कि टूटती है और खाने में हम को ऐसा लगता है। जैसे हम पकी हुई दाल खा रहे हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है।

      पके हुए से मतलब यह होता है, जो माइक्रो नयट्रिएंटस आपके शरीर को कच्चे रूप में उपयोग में नहीं आते। उसको आप पकाकर उपयोगी बना ले, उसको आयुर्वेद में पका हुआ कहते है। इसलिए मिट्टी की हांडी में पकी हुई दाल क्वालिटी में बहुत ज्यादा ऊंची होती है और उसका स्वाद में भी बहुत स्वादिष्ट होती है। प्रेशर के मुकाबले।

      आज से लगभग 30 - 40 साल पहले भारत में हर घर में मिट्टी की हांडी में ही दाल को बनाया जाता था। इसलिए पहले लोगों को कभी डायबिटीज, घुटनों का दर्द, आंखों पर चश्मा ना लगना ऐसी बीमारियां ना लगना और लंबी दीर्घायु तक बिल्कुल स्वस्थ रहते थे। सिर्फ यही कारण था। यदि शरीर को माइक्रोन्यूट्रिएंट की पूर्ति समय पर होती रहे, तो आपका शरीर ज्यादा समय तक बिना किसी दूसरे की मदद के काम को करता है। पहले के लोग मिट्टी की हांडी में दाल ही नहीं, बल्कि दूध को भी हाड़ी में ही पकाते थे।

      हजारों सालों से मिट्टी के बर्तन क्यों इस देश में आए। हम भी एल्युमिनियम को बना सकते हैं। हिंदुस्तान में बॉक्साइट के खजाने भरे पड़े हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश में बॉक्साइट के बडे़ भण्डार है। हम भी बना सकते थे। अगर बॉक्साइट है, तो एल्युमिनियम बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। लेकिन हमने नहीं बनाया, क्योंकि; उसकी जरूरत नहीं थी। इसलिए देश में कुम्हारों की पूरी एक बडी़ जमात इस देश में खडी की गयी, मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए।

      अब यह कुम्हार जो मिट्टी के बर्तन बनाकर हजारों साल से हमें दे रहे हैं, हमारे स्वास्थ्य की रक्षा के लिए। हमने उनको नीची जाति बना दिया, हम ऐसे मूर्ख लोग हैं। हमने इस देश ऊँचा-नीचा ड़ाल दिया। उसी ने इस देश का सत्यानाश कर दिया। अगर प्रेशर कुकर बनाने वाली कंपनी को आप ऊंचा समझते हैं, तो यह कुम्हार नीचा कैसे हो सकता है।  जो सबसे ज्यादा वैज्ञानिक काम कर रहा है।  मिट्टी के बर्तन बनाकर आपके माइक्रोन्यूट्रिएंट को, आपके सुक्ष्म पोषक तत्वों को कम नहीं होने के लिए, मिट्टी का सलेक्शन करता है।

      आप जानते ही होंगे कि हर तरह की मिट्टी से बर्तन नहीं बनते। एक खास तरह की मिट्टी होती है, जो मिट्टी का बर्तन बनाने में प्रयोग की जाती है और एक खास तरह की मिट्टी होती है, जिससे हांडी बनती है और अलग खास तरह की मिट्टी होती है, जिससे कुल्हड़ बनता है। मिट्टी को पहचानना कि किस में कैल्शियम ज्यादा है, किस में मैगनिशियम ज्यादा है, इससे हांडी बनाओ और इसमें कैल्शियम, मैगनिशियम कम है, इसलिए इसका कुल्हड बनाओ। यह बहुत-बहुत बारीक और  विज्ञान का काम है। यह सब को कुम्हार कर रहे हैं, हजारों साल से कर रहे हैं, बिना किसी यूनिवर्सिटी में पड़े हुए, कर रहे हैं। तो हमें तो उनका वन्दन करना चाहिए, उनके सामने नमस्तक होना चाहिए। 

      दुर्भाग्य से, सरकार की कैटेगरी में वो लोग बैक वर्ड क्लास में आते है। सबसे बड़ी बात तो यह होती है। जब हांडी की लाइफ खत्म हो जाती है, तब यह हांडी फिर से मिट्टी में मिल जाती है और फिर उसी मिट्टी से नयी हांडी बन जाती है। इसके अलावा दुनिया में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है। प्रेशर कुकर के बारे में तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं कह सकते। बायो डिग्री बल है।

      मिट्टी की हांडी में दाल प्रेशर कुकर के मुकाबले थोड़ी देर से बनती है। हालांकि दाल के पकने का सिद्धांत ही वो ही होता है। जो दाल का बीज़ खेत में देर से पकता है, वह पकेगा भी देर से। इसके अलावा हमारे यहां कांसा, पीतल के पात्रों का भी उपयोग किया जाता है। यदि आप कांसा और पीतल के पात्रों में दाल को बनाते हैं। तो उसके सिर्फ 3% माइक्रो न्यूट्रिएंटस कम होते हैं, 97% मेंटेन रहते हैं और यदि पीतल के भिगोने में बनाते हैं, तो 7 % कम होते हैं, 95% बचे रहते हैं। लेकिन वही दाल अगर आप प्रेशर कुकर में बनाते हैं, तो सिर्फ 7% हैं, बाकी खत्म हो जाते हैं।

      अब आप खुद ही तय कर लीजिए, कि अगर आपको लाइफ में क्वालिटी चाहिए, तो आपको मिट्टी की हांडी की तरफ ही जाना पड़ेगा यानी भारत की तरफ वापस लौटना पड़ेगा, इंडिया से।
मिट्टी के बर्तनों में क्यों खाना चाहिए और पकाना चाहिए मिट्टी के बर्तनों में क्यों खाना चाहिए और पकाना चाहिए Reviewed by Chandra Sharma on September 21, 2020 Rating: 5

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