शत्रु को चारों खाने चित्त कर देता है यह तरीका
इंसान सामाजिक प्राणी माना गया है। यही कारण है कि धर्म शास्त्रों में भी इंसान को अनुशासन और संयम से जीवन गुजारने के लिए आचरण और व्यवहार की मर्यादाएं नियत है। किंतु हर इंसान इनका पालन नहीं करता। बस, यही कारण आपसी टकराव, संघर्ष और कलह को पैदा करता है, जिससे मनचाहे लक्ष्य को पाना मुश्किल हो जाता है।यह स्थिति परिवार, समाज, कार्यक्षेत्र में बड़े या छोटे स्तर पर देखी जाती है। ऐसी हालात से निबटने के लिए ही हिन्दू धर्म शास्त्रों में बताए कुछ सूत्र कारगर साबित हो सकते हैं। अगर आप भी आज की चकाचौंधभरी जिंदगी की इस दौड़ में बने रहने या कामयाबी के ऊंचे मुकाम छूने की चाहत रखते हैं तो यहां बताया जा रहा है वह तरीका, जिसके आगे विरोधी भी नतमस्तक हो सकते हैं -
हिन्दू धर्म ग्रंथ महाभारत में लिखा है कि -
प्राप्यापदं न व्यथते कदाचि- दुद्योगमन्विच्दति चाप्रमत्त:।
दु:खं च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिता: सपत्ना:।।
सरल शब्दों में अर्थ है कि विपरीत हालात या मुसीबतों के वक्त जो इंसान दु:खी होने के स्थान पर संयम और सावधानी के साथ पुरुषार्थ, मेहनत या परिश्रम को अपनाए और सहनशीलता के साथ कष्टों का सामना करे, तो उससे शत्रु या विरोधी भी हार जाते हैं।
इस बात में संकेत यही है कि अगर जीवन में तमाम विरोध और मुश्किलों में भी मानसिक संतुलन और धैर्य न खोते हुए हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढऩे का मजबूत इरादा रखें तो राह में आने वाले हर विरोध या रुकावट का अंत हो जाता है।

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