इन बातों को अपनाएं, हमेशा रहेंगे खुश
जीवन में अपेक्षा दु:खों के अनेक कारणों में एक होती है। इसी तरह इच्छाओं का भी कोई अंत न होने से मृत्यु के पहले या बाद भी इंसान की अंतिम इच्छा के बारे में विचार किया जाता है। इन बातों का अर्थ यह नहीं है कि अपेक्षा या इच्छाओं को कष्टों का कारण मानकर कोई व्यक्ति कर्तव्यों या जिम्मेदारियों से मुंह मोड ले बल्कि ज्यादा अपेक्षा न रखते हुए नि:स्वार्थ भाव से काम और दायित्वों को पूरा करे।यह सब जानते हुए भी अनेक लोग उम्मीदों और इच्छाओं पर काबू न होने से जीवन को उलझन बना लेते हैं। जिससे वे अपने साथ ही दूसरों का जीवन भी अशांत कर देते हैं। इस अशांति से बचने के लिए ही हिन्दू धर्म शास्त्र गीता, वेद, उपनिषद आदि में जियो और जीने दो का संदेश देते हैं।
लिखा गया है -
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वेसन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्।।
इस सूत्र में सभी के सुखी होने और दु:ख से बचने की कामना की गई है। व्यावहारिक जीवन के लिए शास्त्रों में बताए ऐसे ही उपदेशों का ही सरल शब्दों में निचोड़ बताया जा रहा है कि इंसान अपना काम, सोच और व्यवहार कैसा रखे? जिससे उसकी इच्छाएं और अपेक्षा दायरे में रहे और वह भी दूसरों की उम्मीदों पर खरा उतर सके -
- किसी को किसी भी रूप में दु:ख न दें बल्कि सुख देने की कोशिश करें।
- सभी के साथ प्रेम रखें यानी बोल, व्यवहार और स्वभाव में प्रेम को स्थान दे।
- हमेशा मेहनत को ही सफलता का सूत्र बनाए और आलस्य से दूर रहें।
- लाभ के लिये मर्यादा और मूल्यों को कभी न भूलें।
- ऐसे कामों से बचें जो अपमान का कारण बने या चरित्र पर दाग लगे।
- बुरे समय या हालात में गहरे दु:ख या शोक में न डूबें। सुख-दु:ख में समान रहने का अभ्यास करें।
- बच्चों की तरह साफ मन और स्वभाव रखें, जो पल में ही कटुता भूल जाए।
- हिम्मत और साहस रखें।
- हमेशा ईश्वर पर आस्था और विश्वास रखें।
- मृत्यु को न भूलें और संसार को अस्थायी ठिकाना मानें। इससे अहंकार नहीं आएगा।

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