जब भी असफल या निराश हों, सबसे पहले ये करें....
जब कभी हम परेशान होते हैं तो परेशानी दूर करने का निदान ढूंढ़ते हैं। ऐसा करना भी चाहिए। ऐसा करते हुए एक काम और किया जाए। उस परेशानी के कारण को भी पकड़ें। यहां यह ध्यान रखें कि कारण दूसरों में न ढूंढे़।
जब भी हम निराश हों, असफल हों, दुखी हों तो सीधे अपने भीतर छलांग लगाएं और टटोलें कि इसके पीछे हम कहां हैं। अब जैसे-जैसे हम गहराई में उतरकर अपने पर ही काम करेंगे, हमारी मुलाकात हमारी इंद्रियों से होगी। इंद्रियां भी चूंकि एक नहीं हैं, इसलिए उनमें से उस एक को पकड़ो, जो सबसे ज्यादा ताकतवर है और विषयों से जुड़कर हमें परेशान कर रही है।
लेकिन उससे झगड़ा न किया जाए, क्योंकि उसकी शक्ति हमारी कमजोरी बनती है। उसका अनियंत्रण ही हमारी परेशानी का कारण है। जीवन में गुरु अपने शिष्यों की कमजोरियों को इंद्रियों के माध्यम से पकड़ते हैं और उसी कमजोरी को शक्ति में रूपांतरित कर देते हैं।
इंद्रियों को हमारा दुश्मन बनाने की जगह दोस्त बनाने की कला एक सच्चा गुरु जानता है। इंद्रियों से जितना अधिक झगड़ा करेंगे, उतनी ही परेशानी हम और बढ़ा लेंगे। हम भीतर ही भीतर खुद से उलझने लग जाएंगे। इंद्रियां हमारी खुशी और परेशानी के लिए एक पुल की तरह हैं। वे एक रास्ते के माफिक हैं। हम उनसे झगड़ा करके पुल को ध्वस्त कर लेते हैं और रास्ते को ऊबड़-खाबड़ बना लेते हैं।
कोई कभी उनसे भी झगड़ा करता है, जो काम आने वाले लोग हों। इंद्रियां जितना काम बिगाड़ती हैं, उससे ज्यादा काम बना भी सकती हैं। इसलिए इंद्रियों को समझें तो सुख और दुख के कारण समझ में आ जाएंगे तथा निदान भी सही हो जाएगा।
जब भी असफल या निराश हों, सबसे पहले ये करें....
Reviewed by Naresh Ji
on
February 11, 2022
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