बेहतर शुरूआत का यही है सही वक्त
शास्त्रों में धार्मिक कर्मों खासतौर पर देव उपासना व साधना के शुभ फल पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त का विशेष महत्व बताया जाता है। इसे सबसे शुभ व पवित्र समय भी माना जाता है। किंतु आज के दौर की व्यस्त जीवनशैली खासतौर पर युवाओं को इस खास वक्त का लाभ उठाने से दूर कर रही है।
ब्रह्ममुहूर्त धर्म, अध्यात्म ही नहीं व्यावहारिक नजरिए से भी फायदेमंद माना गया है। इसलिए जानते हैं ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलूओं को -
धार्मिक महत्व - व्यावहारिक रूप से यह समय सुबह सूर्योदय से पहले चार या पांच बजे के बीच माना जाता है। किंतु शास्त्रों में साफ बताया गया है कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है।
मान्यता है कि इस वक्त जागकर इष्ट या भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है। क्योंकि इस समय ज्ञान, विवेक, शांति, ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर, सुख और ऊर्जा के रूप में ईश्वर कृपा बरसाते हैं। भगवान के स्मरण के बाद दही, घी, आईना, सफेद सरसों, बैल, फूलमाला के दर्शन भी इस काल में बहुत पुण्य देते हैं।
पौराणिक महत्व - वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्री हनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।
व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।
इस तरह युवा पीढ़ी शौक-मौज या आलस्य के कारण देर तक सोने के बजाय इस खास वक्त का फायदा उठाकर बेहतर सेहत, सुख, शांति और नतीजों को पा सकती है।
बेहतर शुरूआत का यही है सही वक्त
Reviewed by Naresh Ji
on
February 17, 2022
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