इन 5 संकल्पों से करें नए साल की शुरुवात
नववर्ष का आगाज़ नए संकल्पों के साथ करना आने वाले कल को बेहतर बना सकता है। किंतु ऐसे कौन से संकल्प हो सकते हैं, जो साल-दर-साल जिंदग़ी को बेहतर बनाए। साथ ही इन संकल्पों की पूर्ति व्यक्तिगत रुप से ही फायदेमंद न हो, बल्कि उनका लाभ दूसरों को भी मिले।
धर्म के नजरिए से पांच बातें इंसानी जिंदग़ी को बेहतर बनाती है। इसलिए इन बातों को पांच तरह की संपत्ति भी माना गया है। इन संपत्तियों को पाने का संकल्प लेना ही किसी भी व्यक्ति को ताउम्र खुशियां देगा। जानते हैं कौन-सी है ये पांच संपत्तियां -
1.स्वास्थ्य
2.धन
3.विद्या
4.चतुरता
5.सहयोग
नए साल का पहला संकल्प स्वास्थ्य -निरोगी शरीर।
सुखी जीवन के लिए सबसे जरूरी है निरोगी शरीर। कमजोर, रोगी, बदसूरत शरीर आपकी खुशियों और कामयाबी में रोड़ा बन जाता है। धर्म के नजरिए से जरूरी है कि आप इन्द्रिय संयम रखें। सरल शब्दों में जीवनशैली और दिनचर्या को नियमित और अनुशासित रखें। व्यर्थ के शौक या मौज की मानसिकता शारीरिक और मानसिक ऊर्जा को नष्ट करती है।
इस तरह शक्ति का दुरुपयोग और समय गंवाना शरीर और मन को रोगी बना सकता है। इसलिए नए साल के लिए ऐसी बातों और आचरण से बचने और अच्छे स्वास्थ्य का संकल्प लें। तभी आप व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अच्छे नतीजे पाएंगे।
मशहूर होने के लिए अपनाएं ये दो तरीके
मशहूर होने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप किसी बड़ी सफलता, उपलब्धि, पद या शक्ति को पाएं। आज के दौर में धन, पद और प्रतिष्ठा तो कोई व्यक्ति गलत तरीकों से भी पा सकता है। लेकिन धर्म की नजर से यश और कीर्ति वास्तविक सुख और आनंद तभी देती है, जब वह सही आचरण, अच्छे कर्मों और भलाई से पाई जाए।
व्यावहारिक जीवन में अच्छे आचरण, कर्म और भलाई के भाव तभी संभव है। जबकि मन संवेदनाओं से भरा हो। किंतु मन में भावनाओं को स्थान तभी मिलता है, जब मन को काबू में रखा जाए।
हिन्दू धर्म ग्रंथ श्रीमद्भवत गीता में मन को ही वश में रखने के दो सूत्र बताए गए हैं। इनमें पहला है - वैराग्य और दूसरा है - अभ्यास। जानते हैं इनका व्यावहरिक नजरिए से अर्थ -
वैराग्य का शाब्दिक मतलब है - राग यानि मोह से छूटना। तन, मन और सामजिक दोषों से अलग रहते हुए सादा, संतोषी और शांतिपूर्ण जिंदगी बिताना वैराग्य का वास्तविक अर्थ है। इस बात का यह मतलब कतई नहीं है कि परिवार, समाज से कट कर एकाकी जीवन जीएं। बल्कि सही मायनों में वैराग्य वही सफल माना जाता है जो संसार में रह कर ही राग-द्वेष को मात देकर पाया जाए। इसके लिए सादा जीवन और उच्च विचार का सूत्र ही बेहतर उपाय है।
दूसरा सूत्र है - अभ्यास यानि बुराईयों और बुरे विचारों से दूर रहने का अभ्यास । जिसके लिए योग साधनाओं को श्रेष्ठ माना गया है। ऐसा अभ्यास बुरी आदत और भावनाओं से बचने का सबसे अच्छा तरीका है। इससे मन की चंचलता खत्म होती है और वह एकाग्र होता है। शास्त्रों में मन को संयमित रखने के सरल तरीकों में खासतौर पर ध्यान, जप, भगवत नाम का स्मरण व त्राटक बहुत प्रभावी माना गया है।
इस तरह इन दो तरीकों को अपनाकर पाई संयमित और व्यवस्थित जिंदगी किसी व्यक्ति के लिए वरदान साबित होती है। ऐसा जीवन न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि देने वाला होता है, बल्कि दूसरों के लिए भी आदर्श और प्रेरणा बन जाता है।
नए साल का दूसरा संकल्प - कमाना है पैसा
नववर्ष के संकल्पों की कड़ी में दूसरा महत्वपूर्ण संकल्प लें - धन पाने यानि पैसा कमाने का। पहले संकल्प-अच्छे स्वास्थ्य की तरह ही धन कमाने का संकल्प भी सुखी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि धन हर व्यक्ति की ज़िंदगी के लिए बहुत जरूरी है। चाहे वह अमीर हो या गरीब। धन की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता। इसलिए जानते हैं नववर्ष क्यों ले धन पाने का संकल्प? -
धर्म के नजरिए से धन जीवन के चार पुरुषार्थो में एक है। शास्त्रों में भी आनंद स्वरूप भगवान विष्णु की पत्नी महालक्ष्मी को ऐश्वर्य और वैभव की देवी बताया गया है। प्रतीक रूप में संकेत है कि वैभव, ऐश्वर्य के साथ आनंद और सुख का अटूट रिश्ता है।
व्यावहारिक रूप से भी खुशहाल जिंदग़ी के लिए धन को अहम माना गया है। जरूरतों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए धन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। धन पाने के लिए जरूरी है कर्म या परिश्रम की मानसिकता बनाना। निष्क्रिय व आलस्य से भरा जीवन मात्र दरिद्रता लाता है, जो दु:खों का कारण बनता है। वहीं मिले धन का भी वास्तविक आनंद तभी प्राप्त होता है, जब वह ईमान और अच्छे कामों से कमाया जाए।
अगर कोई व्यक्ति धन के अभाव में उपेक्षा भरे जीवन से दूर होना चाहता है, तो वह नए वर्ष में मेहनत और कर्मठता के साथ आवश्यकताओं की पूर्ति और कर्तव्यों को पूरा करने के लिए पैसा कमाने का सुखद संकल्प लें।
नववर्ष का तीसरा संकल्प - बनना है होनहार
नववर्ष पर लिए जाने वाले पांच संकल्पों में अच्छे स्वास्थ्य और धन प्राप्ति के अलावा तीसरा संकल्प भी हर इंसान की सफल ज़िंदगी में निर्णायक होता है। यह संकल्प है - विद्या यानि हर तरह से ज्ञान और दक्षता को प्राप्त करना।
व्यावहारिक रूप से विद्या पाने का मतलब मात्र किताबी ज्ञान नहीं। बल्कि तन, मन, विचार और व्यवहार से संपूर्णता को पाना है। असल में विद्या बुद्धि, चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करती है। यह व्यक्ति को दूरदर्शी, बुद्धिमान, विवेकवान बनाकर जीवन से जुड़े अहम फैसले लेने में मददगार साबित होती है। इस तरह अच्छे स्वास्थ्य और धन के साथ विद्या का भी ज़िंदगी में अहम योगदान होता है।
धर्म की दृष्टि से विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और सुख प्राप्त होते हैं। सार है कि विद्या व्यक्ति को गुणी, अहंकाररहित और विनम्र बना देती है, जिनसे व्यक्ति धर्म और कर्म के माध्यम से सभी सुख प्राप्त करने लायक बनता है।
नववर्ष में ध्यान रहे कि विफलता से बचने के लिए विद्या और ज्ञान को ही ढाल बनाएं। इसलिए बच्चों से लेकर बुजूर्गहर कोई यह प्रण करें कि किसी न किसी रूप में अध्ययन व स्वाध्याय को दिनचर्या का और लोक व्यवहार को जीवनशैली का अंग बनाना है।
नववर्ष का चौथा संकल्प- चतुर बन देगें निराशा को मात
नववर्ष के पांच संकल्प में पहला निरोगी जीवन, दूसरा धन संपन्नता और तीसरा विद्या से होनहार बनना हर किसी के जीवन को नई ऊंचाई देगा। किंतु इन तीन संकल्पों की पूर्ति में चौथा संकल्प असरदार भूमिका निभाता है। यह व्यावहारिक जीवन के लिए भी बहुत जरूरी है।
यह चौथा संकल्प है- चतुराई सरल शब्दों में होशियार बनना। व्यावहारिक रूप से इसका मतलब बुद्धि के सदुपयोग से सकारात्मक नतीजे पाने से है। हालांकि यह गुण या कला स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति में मौजूद होती है, लेकिन इसका विकास व्यावहारिक ज्ञान के द्वारा ही संभव है। चतुर या होशियार बनने के लिए जरूरी है हर बात और विषय पर गंभीरता, खुले दिमाग और बारीकी से विचार करें। ऐसा अभ्यास सही या गलत का त्वरित निर्णय करना आसान बना देगा, जो आपकी कामयाबी के लिए कारगर साबित होता है।
अनेक मौकों पर देखा जाता है कि कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी सही फैसले लेकर सफलता पा लेता है, वहीं ज्ञानी व्यक्ति व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में मात खा जाता है। यह सभी चतुराई के रूप में बुद्धि के सही और समय पर उपयोग की समझ का नतीजा होता है।
धर्म का नजरिया जानें तो बुद्धि के छ: गुण बताए गए हैं- शुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थ विज्ञान और तत्वज्ञान। सार है कि बुद्धिमान बनने के लिए ज्ञान को जीवन में उतारना जरूरी है, जो सेवा से, सुनकर, समझकर, विचारकर, अपनाकर ही संभव है।
इस तरह नववर्ष में प्रण करें कि शिक्षा के साथ व्यावहारिक जीवन में भी भागीदारी करेंगें।
तो अव्वल बना देगा यह आख़री वादा
नए साल के पांच रिजोल्यूशन यानि संकल्प - पहला निरोगी काया, दूसरा अर्थ प्राप्ति या धन कमाना, तीसरा बुद्धि का विकास या विद्यावान होना और चौथा चातुर्य बल प्राप्ति या आधुनिक भाषा में प्रेक्टिकल बनना, इन चारों के मायने तभी है, जब पांचवा संकल्प लेकर उसे पूरी इच्छाशक्ति के साथ पूरा करने का प्रयास किया जाए।
संकल्पों की अंतिम और पांचवी कड़ी है - सहयोग की भावना। सहयोग यानि मदद और मदद में छुपा है परोपकार और भलाई का भाव। वैसे सहयोग का मतलब दूसरों की ही नहीं खुद की मदद से भी होता है।
जब व्यक्ति मदद की शुरूआत खुद से करें तो उसका फायदा दूसरों तक भी पहुंचता है। सरल शब्दों में अपनी कमियों, दोषों और कमजोरियों को पहचान उनमें पूरी सच्चाई और अनुशासन से सुधार करें। तभी आप दूसरों की सच्चे ह्रदय से मदद के लिए तैयार कर पाएंगे।
वहीं सहयोग के परोपकार और भलाई के रूप की बात करें तो यह धार्मिक ही नहीं व्यावहारिक रूप से भी आपकी शक्ति बन जाता है। धर्म के नजरिए से परोपकार को सज्जन लोगों की लत बताया गया है। दूसरों के लिए ज़िंदगी बिताना ही वास्तविक जीवन है। पुराणों में भी भगवान विष्णु के दस अवतार बताए गए हैं। ये अवतार भी परोपकार और भलाई की ही प्रेरणा देते हैं।
व्यावहारिक रूप से भी जो व्यक्ति विनम्र, मधुभाषी, खुशमिजाज, उदार, दयालु, सेवाभावना और अहं से दूर रहकर दूसरों की मदद को तैयार रहता है, तो अन्य लोग भी उस व्यक्ति के वशीभूत हो जाते हैं।ऐसे व्यक्ति की भी हर कोई किसी भी वक्त मदद को तैयार रहता है। वह हर स्थिति में स्नेह, यश और सम्मान का हकदार बन जाता है। ऐसे लोग जहां भी पहुंचते हैं, वहां पर उनके दोस्त, मददगार और प्रेमी बन जाते हैं।
इस तरह सहयोग के संकल्प के साथ नए साल में उस राह पर चलने की शुरूआत करें, जिस पर चलकर आपकी ईश्वर, प्रेम, शांति, स्वास्थ्य, ख्याति, सम्मान, यश और दौलत तक पहुंच आसान होगी। यह संकल्प निश्चित रूप से आपको पारिवारिक, सामाजिक और इंसानियत के पैमानों पर अव्वल बना देगा।

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