टूथ पेस्ट और टूथ ब्रश का इस्तेमाल क्यों नही करना चाहिए
* दांतो की सफाई के लिए घरेलु औषधि: छोटी-छोटी कुछ बातें भी आप अपने जीवन में करो और एलोपैथिक में से निकले। एलोपैथिक से निकले हुए जितने भी प्रोडक्ट होते हैं। इनको अपने जीवन में इस्तेमाल मत कीजिए। जैसे- टूथपेस्ट।
यह भारत का नहीं है, बल्कि एलोपैथिक का है, जो यूरोप से आया है और यूरोप वाले टूथपेस्ट इसलिए घिसते हैं, क्योंकि; उनके मसूड़े बहुत हार्ड होते हैं। क्योंकि वो लोग बर्फ के नजदीक रहते हैं। मसूड़े कड़क हैं। इसलिए ब्रश प्लास्टिक का भी चलेगा। उससे घिसेगे तो ज्यादा तकलीफ भी नहीं आएगी और दूसरा उनके पास दांत साफ करने के लिए और कुछ नहीं है। बेचारे परेशान होते हैं, कि नीम या बबूल का दातुन मिले और यूरोप में दोनों ही नहीं होते। वो चाहते हैं, कि दंत मंजन मिले और दंत मंजन मिलने के लिए 18 जड़ी बूटियों की आवश्यकता होती है। जो वहां पर मिलेगी नहीं। तो उनके पास एक ही विकल्प है, 'सोडियम लॉरेल सल्फेट'। माने डिटर्जेंट पाउडर, माने शैंपू उसी को घिसते हैं, दांत पर और बनाते है, झाग और थूकते हैं, वॉश बेसिन में।
यह कॉलगेट, क्लोजअप, सिबाका यूरोप की मजबूरी है, उनके पास कुछ नहीं है। इसके विपरीत हमारे पास बहुत कुछ है। आयुर्वेद में दांत साफ करने के लिए 12 तरह की जड़ी बूटियां बतायी गयी है। 12 तरह के वृक्ष की डंडी हर महीने में अलग-अलग दातुन।
चेत्र के महीनें में नीम का दातुन और बैसाख में बबूल की दातुन, आषाढ़ में आम की दातुन और हर महीने में विशेष तरह की दातुन। इतना माइक्रो स्टडी किया गया हजारों साल। चेत्र के महीनें में शरीर की प्रकृति ऐसी रहती है, जो नीम ही है, जो उसको बैलेंस करता है। तो उस महीने नीम की दातुन करिंए, बैसाख के महीने में ऐसी प्रकृति होती है, जो बबूल ही बैलेंस कर सकता है, तो उस महीनें बबूल का दातुन और आषाढ़ में ऐसा है, जो आम का दातुन सम कर सकता है, तो उस महीनें आम का दातुन।
इतने बड़े विज्ञान को छोड़कर, हम लोग फंस गए कोलगेट में। हम तो मजबूर नहीं है। गांव-गांव में नीम और बबूल मिलता है। तो नीम और बबूल का दातुन कीजिए। अगर नहीं मिलता है, तो दंत मंजन करिंए।
टूथ पेस्ट और टूथ ब्रश का इस्तेमाल क्यों नही करना चाहिए
Reviewed by Chandra Sharma
on
September 21, 2020
Rating:

No comments: