आयुर्वेदानुसार खाना कब, कितना और कैसे खाना चाहिए
* खाना खाने के नियम: वागभट्ट जी कहते है, कि मनुष्य शरीर की जठराग्नि की तीव्रता दोपहर को 12:00 से 1:00 के बीच में थोड़ा कम होना शुरू होती है, तो उस समय थोड़ा हल्का भोजन करिए और अगर ना भी खाएं, तो भी अच्छा है। या खाली फल खाए, या जूस, मट्ठा, वगैरह पी ले।
वागभट्ट जी कहते हैं, कि हमें प्रकृति से बहुत कुछ सीखने की जरूरत होती है। जैसे-दीपक। भरे तेल का दीपक जब आप जलाते है, तो तब दीपक की पहली लौह खूब तेज से जलती है और अन्तिम लौह भी तेजी से जलती है। माने जब दीपक बुझने वाला होता है, तो बुझने से पहले वह बहुत तेज जलता है और यह ही पेट का नियम भी होता है।
जठराग्नि सुबह बहुत तेज होती है और दोपहर के समय कुछ धीमी और शाम के समय फिर बहुत तीव्र होती है, जिस समय सूर्य अस्त होने लगता है। इसीलिए कहते है कि शाम का खाना सूरज के रहते-रहते ही खा लेना चाहिए। सूरज डूबा तो अग्नि भी डूबी अर्थात शाम का भोजन सूर्यास्त से एक घंटा पहले ही कर लेना चाहिए।
वागभट्ट जी के अनुसार, शाम का खाना सूरज अस्त के बाद दुनिया में कोई भी नहीं खाता। यह प्रयोग यदि आप गाय, भैंस पर करेंगे, तो गाय, भैंस भी सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं खाती। कोई जानवर, कोई जीव सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाते। फिर आप लोग क्यों खाते हैं।
यदि आपको शाम का भोजन करने के बाद फिर भूख लगती है, तो उस समय आप कोई भी तरल पदार्थ। जैसे- दूध, ले सकते हैं। शाम को खाना खाने के बाद यानी सूर्यास्त के बाद हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ ऐसे हार्मोन या एंजाइम या रस पैदा होते हैं, जो दूध को पचाने में सक्षम होते हैं। इसलिए सूर्यास्त के बाद जो भी चीज खाने या पीने वाली है, वह दूध है।
जिन लोगों को डायबिटीज, अस्थमा जैसी बीमारियां है या वात का कोई भी गंभीर रोग है, तो आज से ही वो लोग यह सूत्र लागू कर लिजिए, तो आपको अपनी इन सभी बीमारियां में बहुत फायदा होगा और जल्दी ही वह सभी बीमारियां खत्म हो जाएगी।
वागभट्ट जी कहते हैं, कि हमें प्रकृति से बहुत कुछ सीखने की जरूरत होती है। जैसे-दीपक। भरे तेल का दीपक जब आप जलाते है, तो तब दीपक की पहली लौह खूब तेज से जलती है और अन्तिम लौह भी तेजी से जलती है। माने जब दीपक बुझने वाला होता है, तो बुझने से पहले वह बहुत तेज जलता है और यह ही पेट का नियम भी होता है।
जठराग्नि सुबह बहुत तेज होती है और दोपहर के समय कुछ धीमी और शाम के समय फिर बहुत तीव्र होती है, जिस समय सूर्य अस्त होने लगता है। इसीलिए कहते है कि शाम का खाना सूरज के रहते-रहते ही खा लेना चाहिए। सूरज डूबा तो अग्नि भी डूबी अर्थात शाम का भोजन सूर्यास्त से एक घंटा पहले ही कर लेना चाहिए।
वागभट्ट जी के अनुसार, शाम का खाना सूरज अस्त के बाद दुनिया में कोई भी नहीं खाता। यह प्रयोग यदि आप गाय, भैंस पर करेंगे, तो गाय, भैंस भी सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं खाती। कोई जानवर, कोई जीव सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाते। फिर आप लोग क्यों खाते हैं।
वाग्भट्ट जी कहते हैं, कि प्रकृति के नियम का पालन कीजिए, रात का खाना सूरज के रहते-रहते खा लीजिए और सुबह का खाना सूरज निकलने के 1 प्रहर बाद यानी 3 घंटे तक कभी-भी कर लीजिए। खाने के केवल दो ही टाइम बताए गए हैं, सुबह और शाम।
यदि आपको शाम का भोजन करने के बाद फिर भूख लगती है, तो उस समय आप कोई भी तरल पदार्थ। जैसे- दूध, ले सकते हैं। शाम को खाना खाने के बाद यानी सूर्यास्त के बाद हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ ऐसे हार्मोन या एंजाइम या रस पैदा होते हैं, जो दूध को पचाने में सक्षम होते हैं। इसलिए सूर्यास्त के बाद जो भी चीज खाने या पीने वाली है, वह दूध है।
जिन लोगों को डायबिटीज, अस्थमा जैसी बीमारियां है या वात का कोई भी गंभीर रोग है, तो आज से ही वो लोग यह सूत्र लागू कर लिजिए, तो आपको अपनी इन सभी बीमारियां में बहुत फायदा होगा और जल्दी ही वह सभी बीमारियां खत्म हो जाएगी।
एलडीएल, एचडीएल के लेवल में भी बहुत अधिक सुधार होगा और एचडीएल बढ़ना ही चाहिए। एलडीएल और वीडिएल कम होना चाहिए। वागभट्ट जी के इस सूत्र का जितना संभव हो, आप उसका पालन कीजिए,आप देखेंगे कि आप जीवनभर स्वस्थ और दुरुस्त रहेगें।
आयुर्वेदानुसार खाना कब, कितना और कैसे खाना चाहिए
Reviewed by Chandra Sharma
on
August 28, 2020
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