पिसा हुआ आटा 15 दिन के बाद न खाएं। जानिए क्यों

* ज्यादा पुराना पीसा आटा इस्तेमाल न करें: क्या आप जानते है, कि पॉव रोटी बनने के बाद और खाने तक 90 दिन तक निकल जाते हैं। अमेरिका और यूरोप में। क्योंकि गेहूं हर जगह होता ही नहीं है। किसी-किसी जगह पर होता है। तो गेहूं बड़े-बड़े ट्रक में भरकर वहां तक जाता है, जहां पर गेहूं को पीसने वाली चक्कियां लगी होती है यानी फ्लॉर मिल्स लगी हुई होती है। वहां उनका आटा बनता है और फिर वहां पर आटा पैक होकर, वहां तक जाता है, फिर जाकर उससे डबल रोटी बनती है, फिर वहां से बनकर वो कहीं और जाती है। इसी चक्कर में 90 दिन तक निकल जाते हैं।

      आयुर्वेद शास्त्र में वागभट्ट जी कहते हैं कि आटे को जितना ताजा इस्तेमाल किया, उतना ही बेहतरीन होगा। आटे के बारे में वो कहते हैं कि जितना ताजा इस्तेमाल करें, उतना ही बेहतरीन होता है। और रोटी को तो 48 मिनट के अंदर ही खा लेना चाहिए और पिसा हुआ आटा 15 दिन से ज्यादा पुराना कभी भी नहीं खाना चाहिए। वो भी गेहूं के आटे के लिए। ये चना, मक्का और ज्वारी के आटे को तो केवल 7 दिन ही पुराना ही खा सकते हैं। क्योंकि इसकी माइक्रोन्यूट्रींट कैपिसिटी कम होती चली जाती है।

      भारत में हजारों लाखों वर्षों से ताजा आटा से रोटी बनाने की परंपरा है, चक्की से। चक्की क्या चीज बनाई है, हमारे ऋषि-मुनियों ने। यह दुनिया की ऐसी अद्भुत मशीन है, जो आपको ताजा आटा तो देती ही है, आपके शरीर के स्वास्थ्य के लिए और आपके अंदर की मांसपेशियों को हमेशा फ्लैक्सिबल रखती है। हमारे घरों में यह चक्की चलाने का काम जो हमारी माताएं करती रही हैं। हमने इन माताओं पर छोटा-सा एक परीक्षण किया। जब हमने गांव की माताओं और बहनों पर अध्ययन किया, जो चक्की चलाती हैं, तो उनके बारे में पता चला जो माता और बहने चक्की चलाती हैं, किसी को भी सीजेरियन डिलीवरी नही हुयी है।

      चक्की चलाने वाली माताओ के पैरों में दर्द भी नहीं है, कभी भी कंधा नहीं दुखता, गर्दन नहीं दुखती, नींद अच्छी आती है, डायबिटीज नहीं होती, हाइपरटेंशन नहीं होता, ब्लड प्रेशर नहीं बढ़ता। कम से कम 50 बीमारियां उन्हें नहीं होती और जो माता पिसा हुआ आटा लाती है, उनके घरों में डायबिटीज, अर्थराइटिस, हाइपरटेंशन और कई तरह की बीमारियां होती है। इसका एक ही मैन कारण है, जब हम चक्की चलाते हैं, तब सबसे ज्यादा दबाव हमारे पेट पर ही पड़ता है, हाथ पर भी इतना नहीं पड़ता, जितना ज्यादा दबाव पेट पर पड़ता है और मां के पेट में एक एक्स्ट्रा ऑर्गन होता है, जो पिता के पेट में नहीं होता, जिसको 'गर्भाश्य' कहते हैं।

      यह गर्भाश्य पेट के बिल्कुल बीच में रहता है। चक्की चलाते समय सबसे ज्यादा जोर वहीं पर रहता है और गर्भाश्य के बारे में आयुर्वेद के सारे रिसर्च और आधुनिक विज्ञान के सारे रिसर्च यही कहते हैं कि गर्भाश्य के आस-पास के एरिया में जितना हलन-चलन हो, उतनी ही इसकी फ्लैक्सिबिलिटी होती है। यह गर्भाश्य का सबसे बड़ा गुण होता है, इसी गुण के कारण बच्चे का जन्म होता है। और इस गुण को बनाए रखने में सबसे बड़ी भूमिका हलन-चलन की होती है।

      इसका नतीजा यही निकलता है, कि जो माता चक्की चलाती है, उनको सीजेरियन डिलीवरी नहीं होती, क्योंकि; गर्भाश्य की फ्लैक्सिबिलिटी मेंटेन है और आसानी से बच्चा बाहर आ जाता है, बिना किसी ऑपरेशन के। 

      पुराने समय में माताओं के 8 से 10 बच्चे होते थे। लेकिन फिर भी ऑपरेशन नहीं होता था, इसका मेन कारण यही है, क्योंकि वो मातांए गर्भावस्था में भी चक्की चलाती रहती थी। जिससे बच्चा बिना सीजर के जन्म लेता था। आयुर्वेद तो यहां तक कहता है, कि मां का गर्भ सातवें महीने तक चक्की चलाने की अनुमति देता है। मां को सातवें महीने तक चक्की चलावाई जा सकती है, फिर उसको बंद कर देना अच्छा होता है और 7 महीने की चक्की पर्याप्त होती है, ताकि वह बच्चा बिना सीजर के हो और जो बच्चे बिने सीजर के है, उनको जीवन को देख ले और जो बच्चे ऑपरेशन से होते हैं, उनके जीवन को देख ले, जमीन आसमान का अंतर है। सीजर बच्चें ज्यादा बीमार हैं, समय-समय पर बीमारियां हैं। जो बिना सीजर के बच्चें है, वह सभी स्वस्थ रहते हैं, दुरूस्त रहते है। ब्रेन का डेवलपमेंट भी उनका अच्छा होता है, दूसरे बच्चों की अपेक्षा।
पिसा हुआ आटा 15 दिन के बाद न खाएं। जानिए क्यों पिसा हुआ आटा 15 दिन के बाद न खाएं। जानिए क्यों Reviewed by Chandra Sharma on August 27, 2020 Rating: 5

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