जिससे दूरी बनानी हो, उससे उसकी प्रिय वस्तु माँग लो।

जिससे दूरी बनानी हो, 

उससे उसकी प्रिय वस्तु माँग लो।


एक साधक जब सेवाकार्य करता तो कुछ तो उसका सहयोग करते व उसकी प्रसंशा करते मग़र कुछ उसके कार्य मे बेवजह मीनमेख निकालकर उसकी भर्त्सना करते। 


वह साधक बहुत परेशान हुआ कि क्या करे कि बिना लड़ाई झगड़े के उनसे दूरी बन जाये। वह गुरुजी के पास गया और व्यथा कह सुनाई।


गुरु जी बोले बेटा, जिस प्रकार पतित पावनी गंगा में नहाने से सबके पाप नहीं धुलते, केवल उनके पाप धुलते हैं जिनके मन मे प्रायश्चित होता है व सुधरने की सच्ची इच्छा होती है।


वैसे ही बेटे, इस आश्रम में आकर मुझसे गुरुदीक्षा लेने मात्र से सब साधक नहीं बनते, केवल वही बनते हैं जो स्वयं को मुझे समर्पित कर मेरे अनुशासन में चलना चाहते है, जो मेरे हाथों में मुझे सौंप देते हैं।


इसी तरह मेरे आश्रम में साधक व बाधक दोनो प्रकार के शिष्य हैं, जिस प्रकार गंगा किसी को स्वयं में प्रवेश हेतु नहीं रोक सकती वैसे ही मैं भी सभी शिष्यों का स्वागत करता हूँ।


लेक़िन तुम्हारी समस्या का हल अवश्य बताऊंगा जिससे तुम्हारा सेवा कार्य बाधित न हो:-

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एक सच्ची घटना सुनो,


एक सिद्ध शिष्य तपती गर्मी में भी  जब हिमालय के गहन ध्यान में डूबता तो उसके आसपास का क्षेत्र ठंडे वलय में परिवर्तित हो जाता। इस दौरान एक विषधर मणिधर नाग उसके वलय में बैठ कर ठंडक व शांति का लाभ लेता। मग़र बीच बीच मे फुफकारने की गंदी आदत के कारण उसका ध्यान भंग कर देता। शिष्य परेशान हो गया। गुरु के पास समाधान मांगने पहुंचा। गुरुदेब ने कहा जिसे स्वयं से दूर करना है उससे उसकी प्रिय वस्तु मांग लो। वह दूर हो जाएगा।


शिष्य दूसरे दिन जब ध्यान में बैठा तो वह मणिधर विषधर सर्प भी आ गया। उसने कहा मित्र तुम इतने दिनों से मेरी साधना का लाभ ले रहे हो, कुछ मित्रता के बदले तुम्हे भी उपहार मुझे देना चाहिए। उस सर्प ने कहा बोलो तुम्हे क्या चाहिए? शिष्य ने कहा तुम अपनी नागमणि मुझे उपहार में जब कल आओ तो दे देना। उस दिन के बाद वह सर्प पुनः कभी न आया।

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तुम अपने बाधक गुरुभाइयों से उनकी प्रिय वस्तु प्रेमपूर्वक अपने सेवाकार्य में मांगने लग जाओ, वह स्वतः तुमसे दूर हो जाएंगे। तुम्हारे बाधक गुरु भाइयों को उनके घर से लाया धन बहुत प्रिय है उसे माँग लो।


साधक शिष्य ने समस्त सहयोगी साधक गुरुभाइयों को अपनी योजना समझा दी, व बाधक गुरुभाइयों के समक्ष पहुंचे और प्रेमपूर्वक बोले आप सबकी मदद चाहिए, हम अमुक सेवाकार्य करने जा रहे हैं धन की कमी है आप सब जो घर से धन लाये हैं वह धन लेकर इस सेवा कार्य हेतु कल  सेवा क्षेत्र में पहुंच जाएं तो बड़ी कृपा होगी।


योजना कार्य कर गयी। सेवा क्षेत्र में सभी बाधक शिष्य बहाना बनाकर नहीं आये, व साधक शिष्य भाइयों ने निर्विघ्न सेवा कार्य खुशी खुशी पूर्ण कर लिया

जिससे दूरी बनानी हो, उससे उसकी प्रिय वस्तु माँग लो। जिससे दूरी बनानी हो, उससे उसकी प्रिय वस्तु माँग लो। Reviewed by Naresh Ji on March 07, 2022 Rating: 5

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