जानिए, हम कैसे जीएं कि हमेशा खुश और सुखी रहें?
कैसा जीवन श्रेष्ठ है? हमें किस प्रकार जीना चाहिए? हम कैसे जीएं कि हमेशा खुश और सुखी रहें? ऐसे ही कई सवाल प्राय: अधिकांश लोगों के मन में घुमते रहते हैं। इन सवालों के जवाब सामान्यत: आसानी से नहीं खोजे जा सकते।
श्रेष्ठ जीवन वही व्यक्ति जी सकता है जो हर परिस्थिति में खुद की नजरों में भी सम्मानीय बना रहे। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि जो व्यक्ति समाज में, घर-परिवार में, मित्रों में सम्मान पाता है, अच्छे कर्म करता है, अन्य लोगों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता है, वही श्रेष्ठ और सुखी जीवन जी सकता है। इसके विपरित यदि कोई इंसान अपने बुरे कर्मों की वजह से हमेशा ही निरादर का पात्र बनता है या जिसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है, ऐसे इंसान का जीवन किसी मृत्यु के समान ही है।
जिन लोगों को अपने बुरे कर्मों की वजह से घर-परिवार और समाज से तिरस्कार झेलना पड़ता है उनके ऐसे जीवन से तो मृत्यु ही श्रेष्ठ है। जो व्यक्ति खुद के स्वार्थ की पूर्ति के लिए अन्य लोगों को कष्ट पहुंचा रहा है उसे कभी भी सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता है। वह सदैव अपमान ही प्राप्त करेगा। इसी वजह से ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे हमें हर स्थान पर सम्मान ही प्राप्त हो।
जो व्यक्ति लगातार अपमान झेलता है उसके लिए मृत्यु ही श्रेष्ठ उपाय है। क्योंकि मृत्यु को बस एक पल का कष्ट देती है जबकि अपमान जीवनभर हर पल पीड़ा पहुंचता है। ऐसा जीवन मृत्यु के समान ही है। अत: हमें ऐसे कार्यों से खुद को दूर रखना चाहिए जिनसे हम अपमान के पात्र बनते हो। ऐसे कार्य करें जिनसे राष्ट्रहित जुड़ा हो और दूसरों को प्रसन्नता प्राप्त हो। तभी हम श्रेष्ठ जीवन जी सकते हैं।
कैसा जीवन श्रेष्ठ है? हमें किस प्रकार जीना चाहिए? हम कैसे जीएं कि हमेशा खुश और सुखी रहें? ऐसे ही कई सवाल प्राय: अधिकांश लोगों के मन में घुमते रहते हैं। इन सवालों के जवाब सामान्यत: आसानी से नहीं खोजे जा सकते।
श्रेष्ठ जीवन वही व्यक्ति जी सकता है जो हर परिस्थिति में खुद की नजरों में भी सम्मानीय बना रहे। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि जो व्यक्ति समाज में, घर-परिवार में, मित्रों में सम्मान पाता है, अच्छे कर्म करता है, अन्य लोगों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता है, वही श्रेष्ठ और सुखी जीवन जी सकता है। इसके विपरित यदि कोई इंसान अपने बुरे कर्मों की वजह से हमेशा ही निरादर का पात्र बनता है या जिसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है, ऐसे इंसान का जीवन किसी मृत्यु के समान ही है।
जिन लोगों को अपने बुरे कर्मों की वजह से घर-परिवार और समाज से तिरस्कार झेलना पड़ता है उनके ऐसे जीवन से तो मृत्यु ही श्रेष्ठ है। जो व्यक्ति खुद के स्वार्थ की पूर्ति के लिए अन्य लोगों को कष्ट पहुंचा रहा है उसे कभी भी सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता है। वह सदैव अपमान ही प्राप्त करेगा। इसी वजह से ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे हमें हर स्थान पर सम्मान ही प्राप्त हो।
जो व्यक्ति लगातार अपमान झेलता है उसके लिए मृत्यु ही श्रेष्ठ उपाय है। क्योंकि मृत्यु को बस एक पल का कष्ट देती है जबकि अपमान जीवनभर हर पल पीड़ा पहुंचता है। ऐसा जीवन मृत्यु के समान ही है। अत: हमें ऐसे कार्यों से खुद को दूर रखना चाहिए जिनसे हम अपमान के पात्र बनते हो। ऐसे कार्य करें जिनसे राष्ट्रहित जुड़ा हो और दूसरों को प्रसन्नता प्राप्त हो। तभी हम श्रेष्ठ जीवन जी सकते हैं।
चाणक्य नीति - जानिए, हम कैसे जीएं कि हमेशा खुश और सुखी रहें?
Reviewed by Naresh Ji
on
February 23, 2022
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