असफल होना नहीं चाहते तो इस एक आदत से बचें...

असफल होना नहीं चाहते तो इस एक आदत से बचें...
अपनी प्रशंसा अपने मुख से करना सीधे-सीधे अहंकार का अंकुरण करना है। सफलता को पचाना भी बड़ी ताकत का काम है। हम लोग अपने जीवन में जरा भी सफल होते हैंतो सबसे पहले इसे शोर और प्रदर्शन में तब्दील करते हैं। सुंदरकांड में हनुमानजी महाराज हमें सिखा रहे हैं कि सफल होने पर थोड़ा खामोश हो जाइए। हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करेतो कामयाबी में चार चांद लगना ही है।


लंका जलाकर और सीताजी को संदेश देने के बाद उनका रामजी की ओर लौटना सफलता की चरम सीमा थी। वह चाहते तो अपने इस काम को स्वयं श्रीरामजी के सामने बयान कर सकते थे। जैसा हम लोगों के साथ होता हैहम लोग अपनी सफलता की कहानी स्वयं दूसरों को न सुनाएंतो कइयों का तो पेट दुखने लगता है। लेकिन हनुमानजी जो करके आएउसकी गाथा श्रीरामजी को जामवंत सुना रहे थे।

तुलसीदासजी को लिखना पड़ा-

नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनय के चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।

हे नाथ! पवनपुत्र हनुमान ने जो करनी कीउसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जामवंत ने हनुमानजी के सुंदर चरित्र (कार्य) श्रीरघुनाथजी को सुनाए।।

आगे लिखा गया है- सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।। सुनने पर कृपानिधि श्रीरामचंद्रजी के मन को बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमानजी को फिर हृदय से लगा लिया। परमात्मा के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा पुरस्कार है।

असफल होना नहीं चाहते तो इस एक आदत से बचें... असफल होना नहीं चाहते तो इस एक आदत से बचें... Reviewed by Naresh Ji on February 16, 2022 Rating: 5

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