इस उम्र में पिटाई हो तो, बच्चे बिगड़ते नहीं है...
बच्चों की सही परवरिश उनका जीवन सुधार सकती है। यही परवरिश में जरा सी भी लापरवाही हो तो बच्चों का जीवन गलत दिशा में जा सकता है। माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे बच्चों को सही शिक्षा दी जाए और उनका जीवन सुखमय बनाए। बच्चों को शिक्षा देने के संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
पांच वर्ष लौं लालिये,, दस लौं ताडऩ देइ।
सुतहीं सोलह वर्ष में, मित्र सरसि गनि लेइ।।
सभी माता-पिता को चाहिए कि वे पांच वर्ष की आयु तक अपने बच्चों के साथ प्रेम और दुलार करें। इसके जब पुत्र दस वर्ष का हो जाए तो और यदि वह गलत आदतों का शिकार हो रहा है तो उसे ताडऩा या दण्ड भी दिया जा सकता है। जिससे उसका भविष्य सुरक्षित रह सके। जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए तो उसके साथ मित्रों के जैसा व्यवहार करना चाहिए।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब तक बच्चा पांच वर्ष का हो जाए तब तक माता-पिता को उससे बहुत प्रेम और दुलार के साथ पेश आना चाहिए। अक्सर ज्यादा लाड़-प्यार में बच्चे गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं और प्रेम से वे नहीं समझ रहे हैं तो उन्हें सजा देकर सुधारा जा सकता है। डरा-धमकाकर बच्चों को सही राह पर लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए उसके बाद उनके साथ मित्रों की तरह व्यवहार रखना चाहिए। इस उम्र के बाद बच्चों के साथ किसी भी तरह की ताडऩा या पिटाई नहीं की जानी चाहिए। अन्यथा बच्चा घर छोड़कर भी जा सकता है। जब बच्चा घर-संसार को समझने लगे तो उससे मित्रों की तरह व्यवहार रखना श्रेष्ठ रहता है।
बच्चों की सही परवरिश उनका जीवन सुधार सकती है। यही परवरिश में जरा सी भी लापरवाही हो तो बच्चों का जीवन गलत दिशा में जा सकता है। माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे बच्चों को सही शिक्षा दी जाए और उनका जीवन सुखमय बनाए। बच्चों को शिक्षा देने के संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
पांच वर्ष लौं लालिये,, दस लौं ताडऩ देइ।
सुतहीं सोलह वर्ष में, मित्र सरसि गनि लेइ।।
सभी माता-पिता को चाहिए कि वे पांच वर्ष की आयु तक अपने बच्चों के साथ प्रेम और दुलार करें। इसके जब पुत्र दस वर्ष का हो जाए तो और यदि वह गलत आदतों का शिकार हो रहा है तो उसे ताडऩा या दण्ड भी दिया जा सकता है। जिससे उसका भविष्य सुरक्षित रह सके। जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए तो उसके साथ मित्रों के जैसा व्यवहार करना चाहिए।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब तक बच्चा पांच वर्ष का हो जाए तब तक माता-पिता को उससे बहुत प्रेम और दुलार के साथ पेश आना चाहिए। अक्सर ज्यादा लाड़-प्यार में बच्चे गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं और प्रेम से वे नहीं समझ रहे हैं तो उन्हें सजा देकर सुधारा जा सकता है। डरा-धमकाकर बच्चों को सही राह पर लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जब बच्चा सोलह वर्ष का हो जाए उसके बाद उनके साथ मित्रों की तरह व्यवहार रखना चाहिए। इस उम्र के बाद बच्चों के साथ किसी भी तरह की ताडऩा या पिटाई नहीं की जानी चाहिए। अन्यथा बच्चा घर छोड़कर भी जा सकता है। जब बच्चा घर-संसार को समझने लगे तो उससे मित्रों की तरह व्यवहार रखना श्रेष्ठ रहता है।
चाणक्य नीति - इस उम्र में पिटाई हो तो, बच्चे बिगड़ते नहीं है...
Reviewed by Naresh Ji
on
March 01, 2022
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