हमारा गुस्सा हमेशा यमराज के समान ही होता है...
सामान्यत: कुछ बुराइयां सभी में होती हैं, कुछ आदतें दुर्गुण की श्रेणी में मानी गई है। क्रोध या गुस्सा भी एक बुराई के समान ही है। क्रोध के संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
तुषना वैतरणी नदी, धरमराज सह रोष।
कामधेनु विद्या कहिय, नन्दन बन संतोष।।
क्रोध हमेशा ही यमराज के समान ही होता है। तृत्णा वैतरणी नदी है और शिक्षा या विद्या कामधेनु के समान है। इसके साथ ही संतोष नन्दन वन है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारा क्रोध हर परिस्थिति में नुकसान दायक ही रहता है। क्रोध के वश में होकर इंसान अक्सर कुछ गलत कर बैठता है। जिस प्रकार यमराज इंसान के शरीर को नष्ट कर देते हैं ठीक उसी प्रकार क्रोध भी यही काम करता है। हमारी इच्छाएं या मनोकामनाएं कभी समाप्त नहीं होती है। ये ठीक वैसी ही हैं जैसी वैतरणी नदी। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वैतरणी नदी को कोई पार नहीं कर सकता है। उसी प्रकार हमारी इच्छाओं को पार करना असंभव सा ही है, ये कभी समाप्त नहीं होती हैं।
आचार्य के अनुसार शिक्षा या विद्या कामधेनु के समान होती हैं। ये हर परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करती है और परेशानियों से बचाती है। शिक्षा के प्रभाव से व्यक्ति जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त कर सकता है। हर परिस्थिति में व्यक्ति को संतोष रखना चाहिए। संतोष से ही सुख और आनंद प्राप्त होता है। चाणक्य ने संतोष को देवराज इंद्र की वाटिका के समान माना है। इंद्र की वाटिका परम सुख देने वाली मानी गई है। ठीक इसी प्रकार संतोषी व्यक्ति भी हमेशा ही आनंद प्राप्त कर सकता है।
सामान्यत: कुछ बुराइयां सभी में होती हैं, कुछ आदतें दुर्गुण की श्रेणी में मानी गई है। क्रोध या गुस्सा भी एक बुराई के समान ही है। क्रोध के संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
तुषना वैतरणी नदी, धरमराज सह रोष।
कामधेनु विद्या कहिय, नन्दन बन संतोष।।
क्रोध हमेशा ही यमराज के समान ही होता है। तृत्णा वैतरणी नदी है और शिक्षा या विद्या कामधेनु के समान है। इसके साथ ही संतोष नन्दन वन है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारा क्रोध हर परिस्थिति में नुकसान दायक ही रहता है। क्रोध के वश में होकर इंसान अक्सर कुछ गलत कर बैठता है। जिस प्रकार यमराज इंसान के शरीर को नष्ट कर देते हैं ठीक उसी प्रकार क्रोध भी यही काम करता है। हमारी इच्छाएं या मनोकामनाएं कभी समाप्त नहीं होती है। ये ठीक वैसी ही हैं जैसी वैतरणी नदी। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वैतरणी नदी को कोई पार नहीं कर सकता है। उसी प्रकार हमारी इच्छाओं को पार करना असंभव सा ही है, ये कभी समाप्त नहीं होती हैं।
आचार्य के अनुसार शिक्षा या विद्या कामधेनु के समान होती हैं। ये हर परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करती है और परेशानियों से बचाती है। शिक्षा के प्रभाव से व्यक्ति जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त कर सकता है। हर परिस्थिति में व्यक्ति को संतोष रखना चाहिए। संतोष से ही सुख और आनंद प्राप्त होता है। चाणक्य ने संतोष को देवराज इंद्र की वाटिका के समान माना है। इंद्र की वाटिका परम सुख देने वाली मानी गई है। ठीक इसी प्रकार संतोषी व्यक्ति भी हमेशा ही आनंद प्राप्त कर सकता है।
चाणक्य नीति - हमारा गुस्सा हमेशा यमराज के समान ही होता है...
Reviewed by Naresh Ji
on
March 01, 2022
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