चाणक्य नीति - पराए घर में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि...

पराए घर में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि...
कष्ट, दुख, परेशानियां तो हमेशा ही बनी रहती हैं। इस प्रकार की कुछ परिस्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है तो कुछ हमारे कर्मों से ही उत्पन्न होती हैं। जाने-अनजाने हम कई ऐसे कार्य कर बैठते हैं जो कि भविष्य में किसी कष्ट का कारण बन जाते हैं। इस संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं-

कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्।
कष्टात् कष्टतरं चैव परगेहे निवासनम्।।



इस श्लोक का अर्थ है कि पहला कष्ट है मूर्ख होना, दूसरा कष्ट है जवानी और इन दोनों से कष्टों से बढ़कर कष्ट है पराए घर में रहना।

आचार्य चाणक्य के अनुसार किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा दुख है मूर्ख होना। यदि कोई व्यक्ति मूर्ख है तो वह जीवन में कभी भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। वह जीवन में हद कदम दुख और अपमान ही झेलना पड़ता है। बुद्धि के अभाव में इंसान कभी उन्नति नहीं कर सकता। दूसरा कष्ट है जवानी। जी हां जवानी भी दुखदायी हो सकती है। क्योंकि इस दौरान व्यक्ति में अत्यधिक जोश और क्रोध होता है। कोई व्यक्ति जवानी के इस जोश को सही दिशा में लगाता है तब तो वह निर्धारित लक्ष्यों तक अवश्य ही पहुंच जाएगा। इसके विपरित यदि कोई इस जोश और क्रोध के वश होकर गलत कार्य करने लगता है तब नि:सेदह वह बड़ी परेशानियों में घिर सकता है। इन दोनों कष्टों से कहीं अधिक खतरनाक कष्ट है किसी पराए घर में रहना। यदि कोई व्यक्ति किसी पराए घर में रहता है तो उस इंसान के लिए कई प्रकार मुश्किलें सदैव बनी रहती हैं। दूसरों के घर में रहने से स्वतंत्रता पूरी तरह खत्म हो जाती है। ऐसे में इंसान अपनी मर्जी से कोई भी कार्य नि:सकोच रूप से नहीं सकता है।
चाणक्य नीति - पराए घर में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि...  चाणक्य नीति - पराए घर में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि... Reviewed by Naresh Ji on March 02, 2022 Rating: 5

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