गृहस्थी में हो ये भूख तो सुखी रहेंगे पति-पत्नी...
सही भूख हो तो रूखी रोटी भी छप्पन भोग का मजा दे जाती है, वरना छप्पन भोग भी अपच कर जाएंगे। भूख का अर्थ है जीवन के प्रति एक तीव्र आवश्यकता। गृहस्थी एक भूख है। अगर जीवन में यह भूख नहीं हो तो गृहस्थी के सारे सुख बेस्वाद हो जाएंगे। गृहस्थी की भूख को बढ़ाने में आपसी संतुलन और प्रेम टॉनिक का काम करते हैं। ये भूख तो बढ़ाते ही हैं, स्वाद भी इन्हीं में निहित है।
यदि इसमें प्रेम है तो स्वाद है, वरना यह बेस्वाद है। कुछ लोगों ने अपनी गृहस्थी को मन और विचार में उठी भूख की तरह बना लिया है। बिना स्वाद के खाए चले जा रहे हैं। आज भी घरों में अन्न का केंद्रीय नियंत्रण महिलाओं के हाथ में रहता है। वे चौके-चूल्हे ही नहीं, वहां से संस्कारों का संचालन भी करती हैं।
इसीलिए घर की स्त्री सम्मानित, संतुष्ट व स्वावलंबी होनी चाहिए, लेकिन उन्हें चौके तक ही सीमित कर दिया जाए, यह भी उचित नहीं। उनका यही ममता भरा भाव जब देहरी पार आकर सार्वजनिक जीवन में उतरेगा तो समाज में व्याप्त स्वार्थपरकता, निष्ठुरता, हिंसा और विलासिता का वातावरण भी नियंत्रित होगा।
पांडवों को देखिए, पांचों भाइयों की गृहस्थी में प्रेम और रिश्तों का संतुलन देखिए। पांचों भाइयों की एक पत्नी थी द्रौपदी। पांचों भाइयों की अपनी अलग-अलग गृहस्थी भी थी। फिर भी देखिए, पांचों भाइयों का प्रेम द्रौपदी के लिए एक समान था। पांचों कभी द्रौपदी को अकेला नहीं छोड़ते थे। ना ही अपनी अन्य पत्नियों के लिए उनके मन में प्रेम कम हुआ। ये सिर्फ प्रेम के कारण ही संभव है। अर्जुन, भीम की तो दो से अधिक पत्नियां थीं फिर भी द्रौपदी का स्थान सबसे अलग था।
इसका सिर्फ एक कारण था, उनकी गृहस्थी वासना पर नहीं टिकी थी। शरीर से परे भावनाएं उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण थी। एक-दूसरे के प्रति सम्मान, एक दूसरे की भावनाओं का आदर, एक दूसरे के प्रति प्रेम ही आधार था।
सही भूख हो तो रूखी रोटी भी छप्पन भोग का मजा दे जाती है, वरना छप्पन भोग भी अपच कर जाएंगे। भूख का अर्थ है जीवन के प्रति एक तीव्र आवश्यकता। गृहस्थी एक भूख है। अगर जीवन में यह भूख नहीं हो तो गृहस्थी के सारे सुख बेस्वाद हो जाएंगे। गृहस्थी की भूख को बढ़ाने में आपसी संतुलन और प्रेम टॉनिक का काम करते हैं। ये भूख तो बढ़ाते ही हैं, स्वाद भी इन्हीं में निहित है।
यदि इसमें प्रेम है तो स्वाद है, वरना यह बेस्वाद है। कुछ लोगों ने अपनी गृहस्थी को मन और विचार में उठी भूख की तरह बना लिया है। बिना स्वाद के खाए चले जा रहे हैं। आज भी घरों में अन्न का केंद्रीय नियंत्रण महिलाओं के हाथ में रहता है। वे चौके-चूल्हे ही नहीं, वहां से संस्कारों का संचालन भी करती हैं।
इसीलिए घर की स्त्री सम्मानित, संतुष्ट व स्वावलंबी होनी चाहिए, लेकिन उन्हें चौके तक ही सीमित कर दिया जाए, यह भी उचित नहीं। उनका यही ममता भरा भाव जब देहरी पार आकर सार्वजनिक जीवन में उतरेगा तो समाज में व्याप्त स्वार्थपरकता, निष्ठुरता, हिंसा और विलासिता का वातावरण भी नियंत्रित होगा।
पांडवों को देखिए, पांचों भाइयों की गृहस्थी में प्रेम और रिश्तों का संतुलन देखिए। पांचों भाइयों की एक पत्नी थी द्रौपदी। पांचों भाइयों की अपनी अलग-अलग गृहस्थी भी थी। फिर भी देखिए, पांचों भाइयों का प्रेम द्रौपदी के लिए एक समान था। पांचों कभी द्रौपदी को अकेला नहीं छोड़ते थे। ना ही अपनी अन्य पत्नियों के लिए उनके मन में प्रेम कम हुआ। ये सिर्फ प्रेम के कारण ही संभव है। अर्जुन, भीम की तो दो से अधिक पत्नियां थीं फिर भी द्रौपदी का स्थान सबसे अलग था।
इसका सिर्फ एक कारण था, उनकी गृहस्थी वासना पर नहीं टिकी थी। शरीर से परे भावनाएं उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण थी। एक-दूसरे के प्रति सम्मान, एक दूसरे की भावनाओं का आदर, एक दूसरे के प्रति प्रेम ही आधार था।
गृहस्थी में हो ये भूख तो सुखी रहेंगे पति-पत्नी...
Reviewed by Naresh Ji
on
February 19, 2022
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